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NDA की आंधी में मायावती के प्रत्याशी ने मारी बाजी, रामगढ़ से एक सीट जीतने में कैसे मिली कामयाबी? वो भी 30 वोटों से

बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड लहर के बावजूद मायावती की बसपा एक सीट जीतने में कामयाब रही. यही वो सीट है जिस पर शुक्रवार काउंटिंग के दौरान बवाल मचा. पुलिस वाले भी घायल हुए. अंत में रामगढ़ पुलिस को स्थिति संभालने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा. यही वजह है कि बसपा प्रत्याशी सतीश कुमार कल से सुर्खियों में हैं.

NDA की आंधी में मायावती के प्रत्याशी ने मारी बाजी, रामगढ़ से एक सीट जीतने में कैसे मिली कामयाबी? वो भी 30 वोटों से
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( Image Source:  Facebook Satish Kumar yadav )

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पक्ष में ऐसी लहर चली, जिसके सामने कोई नहीं टिक पाया. यहां तक कि लालू परिवार का किला भी ध्वस्त हो गया. बावजूद इसके मायावती की बसपा रामगढ़ से चुनाव जीतने में कामयाब हुई. सिर्फ 30 वोटों से मिली इस जीत की क्या थी रणनीति? जानें पूरा विश्लेषण.

बिहार चुनाव 2025 में एनडीए ने जिस तरह ऐतिहासिक जीत हासिल की, उसने लगभग पूरे राज्य का चुनावी नक्शा ही बदल दिया. इस भगदड़ के बीच मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने एक ऐसी सीट जीतकर सबको चौंका दिया, जिसे देखकर सियासी भी हैरान रह गए. बसपा प्रत्याशी ने सिर्फ 30 वोटों के अंतर से चुनावी जीत हासिल की. सवाल उठता है कि एनडीए की आंधी में जहां दिग्गज तक धराशायी हो गए, वहीं बसपा सतीश कुमार कैसे एक सीट बचाने में कामयाब रही? जानें, इसके पीछे मौजूद कई दिलचस्प फैक्टर स्थानीय समीकरण, जातीय ढांचा, वोटों का बंटवारा और एंटी-इनकंबेंसी का प्रभाव.

बूथ-स्तरीय समीकरण बने निर्णायक

इस सीट पर BSP के उम्मीदवार ने बड़े स्तर की नहीं, बल्कि सूक्ष्म बूथ रणनीति अपनाई. कुछ खास गांवों और मोहल्लों में उन्होंने मजबूत पकड़ बनाई, जहां उनका सामाजिक आधार परंपरागत रूप से मजबूत रहा है. यही छोटे-छोटे पॉकेट अंत में 30 वोट से जीत दिला दी.

विपक्षी वोटों का तीखा बंटवारा

रामगढ़ सीट की चुनावी लड़ाई बहुकोणीय थी. इस सीट पर RJD, NDA, AIMIM और Independents प्रत्याशियों में टफ फाइट था. इन सभी के उम्मीदवारों के मैदान में होने से एंटी-NDA वोटों का विभाजन हुआ और इससे बसपा को अप्रत्याशित बढ़त मिली.

स्थानीय पकड़ और सामाजिक समीकरण

बसपा उम्मीदवार सतीश कुमार की लोकल लेवल पर पकड़ अच्छी थी. सभी वर्गों के बीच पहचान भी अच्छी थी. उनकी कमजोरी यही थी कि बिहार के लिहाज पार्टी बहुत कमजोर थी, जिसकी भरपाई रामगढ़ सीट पर बहुकोणीय मुकाबले ने कर दिया. पिछड़े वर्ग की कुछ खास जातियों का वोट उनके लिए निर्णायक साबित हुआ.

BSP का 'साइलेंट वोटर' बिना शोर का असर

चुनाव में बसपा ज्यादा शोर नहीं करती, पर उसका वोटर आम तौर पर कम बोलता है, लेकिन पूरा वोट डालता है. एनडीए की आंधी में भी BSP के कोर वोटर ने एकजुट होकर मतदान किया.

कुछ बूथों पर BSP ने एजेंट ठीक लगाए, फर्जी वोटिंग रोकी, ट्रांसफर वोटों को सक्रिय किया, इन्हीं छोटी-छोटी तकनीकी जीतों ने 30 वोटों की बारीक बढ़त को जन्म दिया.

एंटी-इनकंबेंसी का फायदा

इस सीट पर पिछले विधायक के प्रति नाराजगी थी. स्थानीय मुद्दों सड़क, बिजली, नाली और बेरोजगारी ने BSP उम्मीदवार को एक विकल्प के रूप में स्थापित किया. हालांकि, पूरे बिहार में NDA छाया हुआ था, मगर इस सीट पर उनका उम्मीदवार उतना मजबूत नहीं था. एनडीए प्रत्याशी की पकड़ कमजोर थी. कैंपेन भी कमजोर रहा था. ये सभी फैक्टर बसपा के पक्ष में गया.

AIMIM और निर्दलीयों ने खेल बदला

AIMIM और तीन स्वतंत्र प्रत्याशियों ने 10–10 वोट भी काटे, तो कुल मिलाकर 50–60 वोटों का कटाव हुआ, जो अंतिम नतीजे में निर्णायक साबित हुआ. सतीश कुमार को 72,689 वोट मिले. जातीय समीकरण में BSP उम्मीदवार की जाति ने 'किंगमेकर' की भूमिका निभाई. यही वजह है वो 30 वोटों के मार्जिन से चुनाव जीतने में कामयाब हुए.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहार
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