गांव बनाम शहर, मुद्दों की भरमार, BJP गांव में तो शहर में RJD सेंध लगाने को बेताब, किसकी गूंजेगी आवाज?
बिहार चुनाव 2025 में ग्रामीण और शहरी मतदाता अलग-अलग मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं. जानिए गांव की चौपाल से शहर की गलियों तक, किस पार्टी की आवाज सबसे ज्याद गूंज रही है. आबादी और क्षेत्र विस्तार के नजरिए से ग्रामीण क्षेत्र में मतदाताओं का पलड़ा भारी रहने का अनुमान है. हालांकि, शहरी मुद्दों की आवाज चुनाव प्रचार की रणनीति और मीडिया में ज्यादा सुनाई दे रही है.

बिहार चुनाव 2025 में ग्रामीण और शहरी मतदाता अलग-अलग मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं. दोनों की कुछ जरूरतें कॉमन हैं तो ग्रामीण क्षेत्र में की मामले में शहर से अलग हैं. इसी तरह शहरी क्षेत्रों के लोगों की भी ग्रामीण क्षेत्रों से अलग हैं. चूंकि, बिहार की कुल आबादी में से करीब 88 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में रहती है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों की आवाज आज भी दमदार है. इस बात को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग दलों के नेताओं ने अपने-अपने मुद्दे भी सेट किए हैं. बिहार चुनाव में किस क्षेत्र में मतदाताओं की आवाज ज्यादा असर डालेगी? जानें इस बारे में क्या कहते हैं सियासी दलों के नेता?
किसी की भी उपेक्षा करना मुश्किल : गुरुप्रकाश पासवान
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरुप्रकाश पासवान का कहना है कि कुछ मुद्दे कॉमन हैं. जैसे बेरोजगारी, विकास, सड़कों का निर्माण और स्वास्थ्य सुविधाएं. शहरी और ग्रामीण क्षेत्र की जरूरतें एक-दूसरे से कनेक्टेड है. ग्रामीण लोगों के फसलों पर एमएसपी, गांव से संबंधित योजनाएं, बिजली, पानी आदि अहम हैं.. उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र वोकल होने की वजह से उसका असर दिखता है, लेकिन बिहार में ग्रामीण आबादी ज्यादा है, इसलिए आप उसकी उपेक्षा नहीं कर सकते. कहने का मतलब है कि इसका असर ओवरऑल रहेगा.
बीजेपी पहुंची गांव, RJD ने लगा दी शहर में सेंध : नवल किशोर
राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवल किशोर यादव का कहना है कि नौकरी, रोजगार, कुटीर उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सुविधाओं को विकास दोनों क्षेत्र के लिए कॉमन हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि पर आधारित कुटीर उद्योग, खेती-किसानी, उत्तरी बिहार की बात करें तो मखाना आदि के लिए जरूरी सुविधा किसानों को मुहैया कराना. कृषि मंडियों का विकास भी पार्टी के एजेंडे में है. यह पूछे जाने पर कि आरजेडी किस पर जोर देगी, उन्होंने कहा कि जब बीजेपी शहर से गांव में घुस गई तो अब हमने भी गांव से बाहर निकल शहर में सेंध लगा दिए हैं.
सबसे बड़ा मुद्दा सुविधाओं का अभाव : राठौर
बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौर का कहना है गांव और शहर तो छोड़िए, मुख्य मुद्दा मूलभूत सुविधाओं के विकास की है. आज भी बिहार की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी बेहतर सड़क, चिकिस्ता सुविधा, परिवहन व अन्य सुविधाओं के अभाव से परेशान हैं. गांव में सड़कें नहीं हैं, किसानों के फसलों के सिचाई की व्यवस्था नहीं है. इस बार बिहार में बारिश कम होने से किसानों में त्राहिमाम की स्थिति है.शहर की बात करें ते प्रदेश की राजधानी की मुख्य सड़कों को छोड़ दें तो लोग आजकल दो—दो फीट पानी से गुजरते हैं. पानी की सुविधा नहीं है. अपार्टमेंट और सोसाइटीज सरकार टैक्स लेती है, लेकिन सुविधाओं मुहैया नहीं करा पाई है. पटना में 80 से 90 परसेंट सोसाइटीज सीवर सुविधा तक से वंचित है. मेट्रो का उद्धाटन तो आज हो रहा है कि वो सिर्फ तीन डिब्बे के मेट्रो का. इससे क्या होगा. ग्रामीण क्षेत्र में इंदिरा या अब कहें तो पीएम आवास मिलना बंद है. इसके अलावा पलायन, बेरोजगारी, सबसे बड़ा मुदृदा है. अगर बिहार के किसानों को सिचाई की सुविधा मिल जाए तो लोग पलायन क्यों करेंगे? इस नीतीश सरकार का ध्यान नहीं है.
1. ग्रामीण मतदाताओं से जुड़े मुद्दे
- बिहार का लगभग 88% आबादी गांवों में रहती है, इसलिए ग्रामीण मतदाता हमेशा चुनाव में निर्णायक साबित होते हैं.
- बीज, खाद, सिंचाई और फसल बीमा जैसी योजनाओं की उपलब्धता.
- सड़कों, बिजली, पानी और डिजिटल कनेक्टिविटी की स्थिति.
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सरकारी स्कूलों की स्थिति.
- ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मुफ्त राशन, वृद्धावस्था पेंशन आदि.
- ग्रामीण मतदाता अक्सर स्थानीय विकास और योजनाओं की उपलब्धता पर ध्यान देते हैं. यह वोट बैंक किसी भी राजनीतिक दल के लिए भारी और स्थायी होता है.
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2. शहरी मुद्दों की भी भरमार
शहरी आबादी बिहार की कुल आबादी का लगभग 12% है, लेकिन इनका प्रभाव मीडिया, सोशल नेटवर्क और शहरों में पार्टियों की छवि बनाने में अधिक होता है। शहरी मुद्दे हैं:
- युवा बेरोजगारी, स्टार्टअप, तकनीकी रोजगार.
- सड़क, ट्रैफिक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट: नगर निगम की सुविधाएं, यातायात सुधार.
- जी स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल और मेडिकल सुविधाएं.
- हरी जीवन की गुणवत्ता से जुड़े मुद्दे.
- शहरी मतदाता अधिकतर प्रभावशाली, सशक्त और मीडिया-सक्रिय होते हैं, इसलिए उनकी आवाज चुनाव की दिशा पर अप्रत्यक्ष असर डालती है.
3. कौन कितना भारी?
अगर कोई दल ग्रामीण विकास, योजनाओं की पारदर्शिता और स्थानीय समस्याओं पर जोर देता है, तो वह मजबूत स्थिति में रहेगा. यदि शहरी युवा और नौकरी-प्रेमी वर्ग को लुभाने वाले मुद्दे उठाए जाएं, तो यह छवि और सोशल मीडिया पर असर डाल सकता है, लेकिन कुल वोट में सीमित योगदान.