बिहार में निर्णायक कौन? मोदी का मैजिक या तेजस्वी का युवा जोश, किसका पलड़ा भारी
PM Modi Vs Tejashwi Yadav: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार मुकाबला करिश्मा बनाम युवा जोश के बीच है. यानी पीएम मोदी का ब्रांड इमेज और योजनाओं का प्रभाव बनाम तेजस्वी यादव का युवाओं को रोजगार और बदलाव के वादों के बीच टक्कर है. किसका नैरेटिव जनता पर हावी होगा? आइए जानते हैं चुनावी समीकरण.

Bihar Assembly Elections 2025: इस बार बिहार चुनाव में मुकाबला केवल गठबंधनों का नहीं बल्कि लोकल बनाम नेशनल लीडरशिप का भी है. एनडीए गठबंधन नीतीश कुमार के चेहरे पर भले ही चुनाव लड़ रही है, लेकिन पीएम मोदी एनडीए के प्रचार अभियान को पूरी तरह से लीड कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा अब भी वोटरों को प्रभावित करने में असरकारी है. दूसरी तरफ एक तरफ तेजस्वी यादव युवा चेहरा बनकर राज्य की राजनीति में उभरते हुए दिखाई दे रहे हैं, इन सबके बीच सवाल यह है कि इस बार चुनावी मैदान में तेजस्वी फैक्टर भारी पड़ेगा या मोदी फैक्टर का जादू पहले की तरह बरकरार रहेगा?
दरअसल, बिहार में अब किसी भी दिन चुनावी कार्यक्रमों को एलान हो सकता है. बिहार चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, राजनीति का पारा चढ़ता जा रहा है. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता और केंद्र की योजनाओं के दम पर चुनावी नैरेटिव गढ़ने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव बेरोजगारी, युवाओं की उम्मीद और बदलाव के एजेंडे पर जनता को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं.
तेजस्वी का लोकल फैक्टर्स पर भरोसा
- तेजस्वी यादव ने 2020 में 10 लाख नौकरियों का वादा किया था, इस बार भी बेरोजगारी उनका सबसे बड़ा हथियार है.
- राष्ट्रीय जनता दल के नेता इस बार पुराने कोर वोट बैंक पर लौट आए हैं. साल 2020 के चुनाव में उन्होंने सभी को साथ लेकर चलने का नारा दिया है. इस बार एमवाई (मुस्लिम और यादव) वोट बैंक पर पार्टी जोर दे रही है.
- कुछ प्रतिशत वोटों की भरवाई के लिए तेजस्वी यादव की नजर अति पिछड़ा, सवर्ण और ओबीसी और युवाओं मतदाताओं से 5 से 6 प्रतिशत वोट हासिल करने की है.
- महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव इस बार स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा भी उठा रहे हैं.
- लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी तेजस्वी खुद को बिहार की असल जरूरतों का नेता बताने की कोशिश कर रहे दिखाई दे रहे हैं.
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पीएम मोदी - करिश्मा और ब्रांड पॉलिटिक्स
- एनडीए में शामिल दलों को 'मोदी के चेहरे' बड़ा चुनावी हथियार बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
- भाजपा राज्य स्तर पर चेहरे को आगे न भी करे लेकिन मोदी की लोकप्रियता अभी भी वोट खींचने की ताकत रखती है.
- सत्ता की स्थिरता और विकास योजनाएं, खासकर सड़क परियोजनाएं, हवाई अड्डा, रेल परियोजना, बिजली आपूर्ति, एम्स, गंगा पर कई पुल और हाईवे बनाने सहित कई मुद्दे हैं, जिसे एनडीए के नेता जनता के सामने रख रहे हैं.
- प्रधानमंत्री आवास, उज्ज्वला, आयुष्मान भारत और गरीब कल्याण योजना ग्रामीण वोटरों में असर डाल रही हैं.
- इस बार पीएम मोदी और अमित शाह हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का कार्ड पर भी जोर दे रहे हैं. 'ऑपरेशन सिंदूर' का भी बीजेपी लाभ उठाने की कोशिश में जुटी है.
- भाजपा का परंपरागत नैरेटिव, शहरी और मध्यम वर्ग पर पर अपना असर छोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.
किसका पलड़ा भारी?
पीएम मोदी का करिश्मा अभी भी चुनावों में निर्णायक माना जाता है. लोकसभा चुनाव में इसका असर 2024 में भी बिहार में देखने को मिला, लेकिन तेजस्वी यादव का युवाओं पर फोकस और बेरोजगारी का मुद्दा बड़ा फैक्टर बन सकता है. फिलहाल मुकाबला करिश्मा पीएम की लोकप्रियता और तेजस्वी के जोश के बीच फंसा है. किसके दिलों में क्या है, ये तो चुनाव परिणाम बताएगा.
5 साल पहले सरकार नहीं बना पाए थे तेजस्वी
साल 2020 विधानसभा चुनाव में भी तेजस्वी का लहर देखने को मिला था. तेजस्वी ने पांच साल पहले सभी का साथ लेकर चलने और बेरोजगारी का मुद्दा को जोरदार तरीके से उठाया था. उन्होंने बिहार से युवाओं के पलायन का मसला धारदार तरीके से मतदाताओं के सामने रखा था. उनकी सभाओं में उमड़ती भीड़ ने नीतीश कुमार को सकते में डाल दिया था. लेकिन परिणाम भी रोचक रहा. आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी तो बनीं, लेकिन सरकार गठित करने में विफल रही. बीजेपी 74 सीटें लेकर दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी. कांग्रेस को 19 सीट और 16 सीटें वामपंथी पार्टियों के खाते में गई थी. शेष् सीटें अन्य के खाते में गई थी. इस बार भी तेजस्वी की सभाओं में लोग काफी संख्या में शामिल हो रहे हैं, लेकिन चुनाव जीत पाएंगे या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वोट, भीड़ को अपने पक्ष में वोट में तब्दील कर पाते हैं या नहीं.