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बिहार के 5 साहित्यकार जिनकी राजनीति में थी गहरी पैठ, 'दिनकर' ने तो इंदिरा गांधी को...

बिहार की सियासत में आरंभ के दिनों से ही साहित्यकारों की समृद्ध परंपरा रही है. इनमें से कुछ कवि ऐसे भी हुए जिन्होंने प्रदेश की राजनीति में दखल देने की कोशिश की. कोई सांसद बने तो कई विधायक चुने गए. ऐसे साहित्यकारों में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, फणीश्वरनाथ रेणु, जाबिर हुसैन और लक्ष्मी नारायण सुधांशु जैसे साहित्य प्रेमी शामिल हैं.

बिहार के 5 साहित्यकार जिनकी राजनीति में थी गहरी पैठ, दिनकर ने तो इंदिरा गांधी को...
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बिहार सिर्फ राजनीति और आंदोलन की धरती नहीं रही, बल्कि यहां से ऐसे साहित्यकार भी निकले जिन्होंने न केवल अपनी लेखनी से जनमानस को प्रभावित किया बल्कि सत्ता और राजनीति की धारा को भी नई दिशा दी. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ से लेकर रामवृक्ष बेनीपुरी, फणीश्वरनाथ रेणु, जाबिर हुसैन और लक्ष्मी नारायण सुधांशु जैसे साहित्यकारों ने बिहार की सामाजिक-राजनीतिक चेतना को गहराई से प्रभावित किया. खास बात यह रही कि ये साहित्यकार केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहे बल्कि राजनीति के अखाड़े में उतर कर अपनी पैठ भी बनाई.

'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' - रामधारी सिंह ‘दिनकर’

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी साहित्य के उन महान कवियों में गिने जाते हैं जिन्होंने ओज, शौर्य और राष्ट्रीय चेतना की कविताओं से पाठकों को आंदोलित किया. स्वतंत्रता संग्राम के दौर में उनकी कविताएं युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं. ‘हुंकार’, ‘रसवन्ती’, ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ जैसी कृतियों ने उन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा दिलाया. दिनकर की लेखनी में एक और देशभक्ति का ज्वार रहता था तो दूसरी ओर मानवीय करुणा और सामाजिक न्याय की पुकार की झलक भी दिखाई देती है.

तभी तो राष्ट्रकवि दिनकर ने आपातकाल के समय इंदिरा गांधी के ज़ुल्मों से विवश व नाराज होकर चेतावनी भरे लहजे में लिखा:

"सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है."

दिनकर केवल कवि ही नहीं बल्कि गद्य लेखक और विचारक भी थे. उन्होंने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ जैसी पुस्तक के माध्यम से भारतीय संस्कृति की गहराइयों को सामने रखा. राज्यसभा के उपसभापति और पद्म भूषण से सम्मानित दिनकर का साहित्य आज भी लोगों को राष्ट्र और समाज के प्रति जागरूक बनाता है.

जनसरोकारों का साहित्यकार थे रामवृक्ष बेनीपुरी

हिंदी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे. वे खेतिहर समाज की पीड़ा, ग्रामीण जीवन की सच्चाई और सामाजिक बदलाव की जरूरत को अपनी रचनाओं में मुखर स्वर देते हैं. ‘पृथ्वीपुत्र’, ‘अंबा’, ‘जयमाल’, ‘गंगा मइया’ जैसी कृतियों में उन्होंने गांव की माटी और किसानों की जिजीविषा को साहित्य का हिस्सा बनाया.

बेनीपुरी न सिर्फ साहित्यकार बल्कि सक्रिय क्रांतिकारी भी रहे. वे कई बार जेल गए और राष्ट्रवादी पत्रकारिता को नया आयाम दिया. उनका साहित्य लोकजीवन की सच्चाई, संघर्ष और क्रांति की भावना से भरपूर है. यही कारण है कि उन्हें जनसरोकारों का साहित्यकार माना जाता है।

देश के पहले आंचलिक उपन्यासकार - फणीश्वरनाथ ‘रेणु’

फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ हिंदी साहित्य में ‘आंचलिक उपन्यासकार’ के रूप में चर्चित हैं. उनका उपन्यास ‘मैला आंचल’ हिंदी का पहला आंचलिक उपन्यास माना जाता है, जिसमें मिथिला और उत्तर बिहार के ग्रामीण जीवन की बारीक झलक मिलती है. रेणु की भाषा-शैली लोकभाषा, बोलचाल और लोकगीतों से रंगी हुई है, जो उनकी रचनाओं को जीवंत बना देती है.

रेणु ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और बाद में साहित्य के जरिए समाज का वास्तविक चित्र सबके सामने पेश किया. ‘परती परिकथा’, ‘जुलूस’, ‘दीर्घतपा’ जैसी रचनाएं उनकी साहित्य संवेदना और सामाजिक दृष्टि को दर्शाती हैं. रेणु की कहानियों और उपन्यासों ने हिंदी साहित्य को गांव की मिट्टी और आम जनजीवन से जोड़ने का काम किया.

फणीश्वरनाथ 'रेणु' लेखन शैली का - "जागो मन के सजग पथिक ओ! उड़ते रहते अथक पखेरू प्यारे-प्यारे!" और "हम बूढ़े हो चले दोस्त, तुम जैसे के तैसे हो!". उनकी कुछ महत्वपूर्ण उद्धरण भी हैं जैसे - "साहित्य की पौध बड़ी नाज़ुक और हरी होती है. इसे राजनीति की भैंस द्वारा चर लिए जाने से बचाए रख सकें, तभी फसल हमें मिल सकती है."

सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदनाओं के कवि - जाबिर हुसैन

जाबिर हुसैन बिहार से निकलने वाले उन महत्वपूर्ण साहित्यकारों और राजनेताओं में से हैं, जिन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में अपनी लेखनी से गहरी छाप छोड़ी. वे बिहार विधान परिषद के सभापति और बाद में राज्यसभा सदस्य भी रहे. उनकी लेखनी में सामाजिक सरोकार, ऐतिहासिक दृष्टि और मानवीय संवेदनाएं प्रमुखता दिखाई देती है. उन्होंने ‘लहरों का दुख’, ‘पानी पर लिखी इबारत’, ‘गांधी और जमनालाल बजाज’ जैसी कृतियों से साहित्य को नई दिशा दी. जाबिर हुसैन को बेहतर लेखन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. उनकी रचनाओं में भाषा की सरलता और विचारों की गहराई पाठकों को विशेष रूप से आकर्षित करती है.

आमजन के संघर्ष को दी आवाज - लक्ष्मी नारायण सुधांशु

लक्ष्मी नारायण सुधांशु हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि और लेखक थे, जिन्हें अपनी ओजस्वी कविताओं और राष्ट्रवादी लेखन के लिए याद किया जाता है. उन्होंने हिंदी साहित्य में कविता, नाटक और गद्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी कविताएं सामाजिक न्याय, ग्रामीण जीवन और राष्ट्रीयता की भावना से भरी होती थीं.

सुधांशु की रचनाओं ने आमजन के जीवन संघर्ष और उनकी आकांक्षाओं को साहित्य में अभिव्यक्ति दी. वे बिहार की माटी से जुड़े कवि थे और उनकी कृतियां हिंदी साहित्य को जनपक्षधर दृष्टिकोण देते हैं. उनके साहित्य को आज भी आम इंसान के लिए प्रेरणास्रोत माना जाता है.

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