Begin typing your search...

बिहार में कांग्रेस ने दिए 18 CM, एक को छोड़ कोई क्‍यों नहीं कर पाया कार्यकाल पूरा? इस नेता ने सभी को बताया 'नकारा'

बिहार की सत्ता पर कांग्रेस ने 1947 से लेकर 1990 तक राज किया. इस दौरान कांग्रेस स्थायी सीएम नहीं दे पाई. वक्त बदला और राजनीति ने ऐसी करवट ली कि आज कांग्रेस 35 साल से बैसाखी के सहारे के चुनावी मैदान में है. बिहार की सत्ता में वापसी करने के बलए वो बेताब है, लेकिन वापसी नहीं कर पा रही है. आखिर, कांग्रेस के इस वनवास की क्या है वजह?

बिहार में कांग्रेस ने दिए 18 CM, एक को छोड़ कोई क्‍यों नहीं कर पाया कार्यकाल पूरा? इस नेता ने सभी को बताया नकारा
X

देश के अन्य हिस्सों की तरह बिहार में भी आजादी के बाद से 1990 यानी मंडलवाद का दौरान शुरू होने तक, लगभग कांग्रेस का एकछत्र राज रहा. अगर 1967 और 1977 विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस बिहार की सत्ता में बहुमत से बनी रही. इस दौरान कांग्रेस के 18 सीएम बने. ताज्जुब की बात यह है कि इनमें से बिहार के पहले सीएम यानी श्रीकृष्ण सिंह ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाए. बाकी 17 में से कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. 1985 से 1990 के पांच साल कार्यकाल में कांग्रेस ने चार सीएम बनाए. उसके बाद से न तो कांग्रेस को प्रदेश में सरकार बनाने का मौका नहीं मिला. आज प्रदेश में सियासी लिहाज से कांग्रेस हाशिए पर है. हालांकि, वह मेनस्ट्रीम में आने की कोशिश करती दिखाई जरूर देती है.

बिहार में चार माह बाद विधानसभा चुनाव है, इसलिए इस बात की भी चर्चा है कि आखिर कांग्रेस को उस दौर में जब इतना मौका मिला तो वह स्थायी सीएम क्यों नहीं दे पाई? क्या स्थायी सीएम न मिलने से बिहार के लोगों का कांग्रेस से मोहभंग हो गया. या फिर मंडल और कमंडलवाद का दौर शुरू होने के बाद बिहार के लोगों के बीच कांग्रेस की प्रासंगिकता समाप्त हो गई. इस स्टोरी के जानिए कि कांग्रेस के 18 सीएम कौन कौन थे, जो बिहार को विकसित प्रदेश नहीं बना सके और क्या है उनके वारे में कांग्रेस नेताओं की राय.

'मंडल-कमंडल' ने कांग्रेस की जमीन को बना दिया बंजर'

दरअसल, बिहार की सत्ता पर कांग्रेस ने दशकों तक राज किया है, लेकिन वक्त बदला और राजनीति ने ऐसी करवट ली कि आज कांग्रेस 35 साल से बैसाखी के सहारे के चुनावी मैदान में है. 1947 से 1990 के तक कांग्रेस बिहार की सत्ता में आती और जाती रही, लेकिन बिहार की सत्ता में वो उसके बाद से दोबारा वापसी नहीं कर पा रही है.

बिहार में कब-कब और कौन बने कांग्रेस के सीएम

  • साल 1952 से लेकर 2015 तक बिहार में कुल 24 मुख्यमंत्री बने हैं, जिनमें से 18 कांग्रेस के नेता रहे हैं. कांग्रेस के जितने भी सीएम बने हैं, उनमें से महज एक ही सीएम पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सका है, बाकी सत्ता में आते जाते रहे.
  • बिहार में पहला विधानसभा चुनाव साल 1952 में हुआ था. संयुक्त बिहार की कुल 324 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 239 सीटों पर जीत दर्ज की थी. डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने सत्ता की कमान संभाली थी. हालांकि, श्रीकृष्ण सिन्हा 1946 में अंतरिम सरकार के गठन के दौरान सत्ता की कमान अपने हाथ में रखी थी. दूसरा विधानसभा चुनाव 1957 में हुआ तो भी श्रीकृष्ण सिन्हा मुख्यमंत्री बने. जनवरी 1961 में उनका निधन हो गया.
  • डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के बाद कांग्रेस ने दीप नारायण सिंह को सीएम बनाया, लेकिन महज 18 दिन ही वह अपने पद पर रहे. इसके बाद कांग्रेस नेता बिनोदानंद झा 18 फरवरी 1961 को मुख्यमंत्री बने और 2 अक्टूबर 1963 तक रहे. वे दो साल 226 दिन तक ही सत्ता की कमान अपने हाथ में रख सके. इसके बाद कांग्रेस ने केबी सहाय को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया, जो कि 5 मार्च 1967 तक सत्ता पर काबिज रहे.
  • केबी सहाय के नेतृत्व में 1967 में चुनाव हुए और पहली बार बिहार में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महामाया प्रसाद मुख्यमंत्री बने और एक साल का भी सफर पूरा नहीं कर सके. सरकार 28 जनवरी 1968 को गिर गई. इसके बाद सोशलिस्ट पार्टी के सतीश प्रसाद सिंह कुशवाहा और बीपी मंडल मुख्यमंत्री बने, लेकिन वो भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
  • साल 1968 में बिहार का सियासी समीकरण ऐसा बना कि कांग्रेस ने सरकार बनाई. दलित नेता भोला पासवान शास्त्री सीएम बने. 22 मार्च 1968 को भोला पासवान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन 29 जून 1968 को उनकी सरकार गिर गई. भोला पासवान महज 100 दिन सत्ता में रहे. करीब पांच महीने के बाद विधानसभा चुनाव हुए कांग्रेस फिर सरकार बनाने में कामयाब रही.
  • साल 1969 में कांग्रेस ने हरिहर सिंह को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन इस बार भी सरकार नहीं चल सकी और गिर गई. एक बार फिर कांग्रेस ने भोला पासवान को सीएम बनाया, लेकिन 13 दिन के बाद उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा.
  • साल 1970 में कांग्रेस ने वामपंथी दलों के जरिए सरकार बनाने की कवायद की. इस बार दरोगा प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने, लेकिन वह भी अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल नहीं हो पाए. उन्हें एक साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ गया. इसके बाद कांग्रेस ने भोला पासवान शास्त्री के नेतृत्व में 1971 में एक बार फिर सरकार बनाई. तीसरी बार भोला पासवान बिहार के मुख्यमंत्री बने. इस बार वो 222 दिनों तक सत्ता में बने रहे.
  • साल 1972 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए कांग्रेस 167 सीटें जीतकर सत्ता में आई. कांग्रेस के केदार पांडेय मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्हें भी जुलाई 1973 में कुर्सी छोड़नी पड़ गई. उसके बाद पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 1973 में अब्दुल गफूर को सीएम बनाया, लेकिन पौने दो साल के बाद 1975 में उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ गया. इसके बाद डॉ. जगन्नाथ मिश्र कांग्रेस से मुख्यमंत्री बने. यह आपातकाल का दौर था. वह 1975 से 1977 सीएम बने रहे.
  • इमरजेंसी के बाद साल 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई. जनता पार्टी के कर्पूरी ठाकुर सीएम बने. वह एक भी मुश्किल से एक साल सीएम रहे. उनकी जगह जनता पार्टी ने राम सुंदर दास को सीएम बनाया गया. उनकी सरकार भी कार्यकाल पूरा किए बगैर गिर गई.
  • तीन साल के बाद 1980 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में वापसी की. कांग्रेस 169 सीटों के साथ जीतकर आई और डॉ. जगन्नाथ मिश्रा प्रदेश के सीएम बने. इस बार मिश्रा बहुत लंबी पारी नहीं खेल सके और उन्हें करीब 3 साल दो महीने के बाद इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस ने उनकी जगह 14 अगस्त, 1983 को चंद्रशेखर सिंह को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन उन्होंने भी करीब पौने दो साल तक सत्ता की कमान संभाली.
  • साल 1985 में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत हासिल की और 196 सीटों के साथ सत्ता में आई. कांग्रेस ने पांच साल में चार मुख्यमंत्री बदले. 1985 में पहले बिंदेश्वरी दुबे मुख्यमंत्री बने, जिन्हें तीन साल पूरे होने से कुछ दिनों पहले ही इस्तीफा देना पड़ गया. इसके बाद भगवत आजाद झा मुख्यमंत्री बने, लेकिन वो भी 1 साल 24 दिन ही सत्ता में रह सके. भगवत झा के बाद सत्येंद्र नारायण सिन्हा मुख्यमंत्री बने, लेकिन 9 महीने के बाद उन्हें भी कुर्सी छोड़नी पड़ गई. ऐसे में कांग्रेस ने 6 दिसंबर 1989 को जगन्नाथ मिश्रा को एक फिर सत्ता की कमान सौंपी, वो इस बार महज 94 दिन तक सत्ता में रहे. उनके नेतृत्व में 1990 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस ऐसे हारी कि दोबारा आजतक सत्ता में नहीं आ सकी.

कांग्रेस की दशा पर क्या कहते हैं उनके नेता

कांग्रेस में नहीं होते थे एकछत्र नेता- मदन मोहन झा

बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा ने कहा, 'राजनीति में हर दौर का अपना एक अलग वजूद होता है. उस दौर में कांग्रेस के कोई एक छात्र नेता नहीं होते थे. दूसरी वजह ये हो सकता है कि तत्कालीन परिस्थितियों में कुछ ऐसी घटनाएं हुई होंगी, जिसकी वजह से सीएम बदलते रहे. उनका कहना है कि सीएम बदलना कोई गलत नहीं है, लेकिन राजनीति में स्थायित्व का भी अपना महत्व होता है.'

PM के पैमाने पर खरे नहीं उतरे होंगे CM- मुन्ना तिवारी

बक्सर से कांग्रेस विधायक मुन्ना तिवारी का कहना है कि आजादी के बाद से 1990 तक कांग्रेस के सभी पीएम दूरदर्शी थे, पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी दूरदर्शी नेता थे. उनकी सोच देश को आगे ले जाने वाली थी. जहां तक सवाल स्थायी सीएम न देने पाने की है तो, हो सकता है कि पीएम जितना कर्मठ सीएम चाह रहे हों, वे लोग उतने कुशल साबित नहीं हुए होंगे. या फिर कुछ सियासी परिस्थितियां ऐसी रही होंगी, जिसकी वजह से सीएम बदलने पड़े होंगे.

बिहारबिहार विधानसभा चुनाव 2025
अगला लेख