गणेश पूजन में दूर्वा क्यों जरूरी, लेकिन तुलसी चढ़ना वर्जित क्यों, जानिए धार्मिक मान्यताएं
गणेशोत्सव के दौरान दूर्वा भगवान गणेश को अर्पित करना आवश्यक है, क्योंकि पौराणिक कथा अनुसार राक्षस अनलासुर को निगलने के बाद गणेशजी के पेट की जलन शांत करने के लिए ऋषियों ने दूर्वा दी थी. इससे प्रसन्न होकर गणेशजी ने वरदान दिया कि दूर्वा चढ़ाने वाले की बाधाएं दूर होंगी. तुलसी अर्पित न करने का कारण यह है कि तुलसी देवी ने गणेशजी को विवाह के लिए प्रलोभित किया, जिसे अस्वीकार करने पर शाप और वरदान का क्रम हुआ, इसलिए पूजा में तुलसी अर्पित करना वर्जित है.
देशभर में इस समय गणेशोत्सव की धूम है. अनंत चतुर्दशी तक घरों और पांडालों में गणपति की पूजा विधि-विधान से की जाएगी, फिर बप्पा की विदाई होगी. भगवान गणेश को उनकी प्रिय कई चीजें भोग में अर्पित की जाती है जिसमें खासतौर दूर्वा का विशेष स्थान होता है.
बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा-आराधना पूरी नहीं मानी जाती है, लेकिन वहीं भगवान गणेश की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल करना वर्जित होता है. आइए जानते हैं भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करने और तुलसी नहीं चढ़ाने के पीछे की पौराणिक कथा के बारे में.
भगवान गणेश को दूर्वा क्यों है प्रिय
पौराणिक कथा के अनुसार, अनलासुर नाम का एक बहुत ही प्रतापी और अत्याचारी राक्षस था. इस राक्षस के अत्याचार और आतंक के सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि अक्सर परेशान रहते थे. इसके लगातार आतंक से परेशान देवतागण इसका अंत नहीं कर पा रहे थे. तब इसके प्रकोप से बचने के लिए देवऋषि नारद ने सभी देवताओं को भगवान गणेश पास जाकर इस समस्या के समाधान प्रार्थना करने को कहा. तब भगवान गणेशजी राक्षस अनलासुर को युद्ध में परास्त करते हुए उसको निगल लिया.
अनलासुर को पेट में निगलने के कारण भगवान गणेश जी के पेट में बहुत जलन और कष्ट होने लगा. तब भगवान गणेश के पेट की जलन को शांत करने के लिए ऋषियों और मुनियों ने गणेश जी को खाने के लिए दूर्वा घास दी. दुर्वा को खाते ही गणेशी जी के पेट की जलन शांत हो गई और उनको कष्ट से राहत मिली. तब इससे भगवान गणेश बहुत ही प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जो दूर्वा घास उन्हें अर्पित करें उसकी समस्त बाधाएं दूर होंगी और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी. तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई.
भगवान गणेश को तुलसी क्यों नहीं करते अर्पित
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार गणेशजी गंगा नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे. तभी देवी तुलसी ने देखा कि युवा गणेशजी तपस्या में लीन थे. देवी तुलसी श्रीगणेश के इस सुंदर स्वरूप पर मोहित हो गईं. और तुलसी के मन उनसे विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई. तुलसी के विवाह की इच्छा से गणेश जी का तप और ध्यान भंग हो गया. तब भगवान श्री गणेश ने तुलसी के विवाह के प्रस्ताव को ब्रह्मचारी बताकर अस्वीकार कर दिया.
विवाह प्रस्ताव ठुकराने पर तुलसीजी ने नाराज होकर गणेशजी को शाप दिया कि उनके एक नहीं बल्कि दो-दो विवाह होंगे. इस पर श्रीगणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा. एक राक्षस की पत्नी होने का शाप सुनकर तुलसी ने गणेशजी से माफी मांगी. तब गणेशजी ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह राक्षस से होगा. किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी, पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा. तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी चढ़ाना वर्जित माना गया है.





