जब शनि की अशुभ छाया से भगवान भोलेनाथ भी ना बच सके...पढ़ें रोचक पौराणिक कथा
शनिदेव को न्यायाधिपति और कर्मफलदाता माना जाता है, जिनकी वक्र दृष्टि से देवता तक भयभीत रहते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, जब शनिदेव ने भगवान शिव को बताया कि उनकी वक्र दृष्टि भोलेनाथ पर भी पड़ेगी, तो शिवजी बचने के लिए हाथी का रूप धारण कर पृथ्वी पर चले गए. सवा प्रहर बाद जब वे कैलाश लौटे तो शनिदेव ने कहा कि उनकी दृष्टि से देव, दानव, मनुष्य तो क्या स्वयं भोलेनाथ भी नहीं बच सके.
 
  शनिदेव को न्यायाधिपति और कर्मफलदाता माना जाता है. शनि धीमी चाल चलने वाले ऐसे एकलौते ग्रह हैं जो एक राशि में करीब ढाई वर्षों तक रहते हैं फिर इसके बाद दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं. इस प्रकार राशिचक्र का पूरा चक्कर लगाने में 30 वर्षों का समय लगता है. शनिदेव की द्दष्टि को अशुभ माना जाता है और यह जिस पर पड़ती है उसके जीवन में तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
शनि की अशुभ छाया का प्रभाव न सिर्फ मनुष्यों पर पड़ता है बल्कि देवता गण भी शनि की अशुभ द्दष्टि से भयभीत रहते हैं. शनिदेव की वक्र द्दष्टि और भगवान शिव से जुड़ी हुई एक कथा है.
जब भोलेनाथ को भी बचना पड़ा शनिदेव की वक्र दृष्टि से...
कथा के अनुसार, एक बार शनिदेव भगवान शिव से मिलने उनके धाम कैलाश पर्वत पर पहुंचे. तब भगवान शिव ने शनिदेव के आने का प्रयोजन पूछा तो शनिदेव ने आग्रह कहते हुए कहा कि मैं अब आपकी राशि में प्रवेश करने वाला हूं जिससे मेरी वक्र दृष्टि की अशुभ छाया आपके ऊपर पड़ने वाली है. शनिदेव की इस बात को सुनकर भगवान भोलेनाथ अचंभित हो गए और शनिदेव से बोले, आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि दृष्टिमुझ पर रखेंगे. तब शनि देव ने कहा है कि हे भोलेनाथ अगले दिन सवा प्रहर के लिए आपके ऊपर मेरी द्दष्टि रहेगी. शनिदेव की बात को सुनकर भोलेनाथ उनकी वक्र द्दष्टि से बचने के लिए सोचने लगे कि इनकी द्दष्टि से बचने के लिए क्या किया जाय.
भगवान शिव ने धरती पर जाकर धारण किया हाथी का रूप
शनिदेव की बात को सुनकर भोलेनाथ अगले दिन उनकी वक्र द्दष्टि से बचने के लिए लिए पृथ्वी लोक में आकर एक हाथी का रूप धारण कर लिया. भगवान भोलेनाथ हाथी के रूप में दिन का सवा प्रहर बिताया और यह बीत जाने के बाद सोचने लगे कि शनि की वक्र द्दष्टि से वह बच गए और कोई भी बुरा असर उन पर नहीं हुआ. फिर वह मृत्युलोक को छोड़कर कैलाश पर्वत पर लौट आए.
भगवान भोलेनाथ जैसे कैलाश पर्वत पर पहुंचे वहां पर पहले से शनिदेव उनकी प्रतीक्षा करते हुए मिले. फिर इसके बाद शनिदेव ने भगवान शंकर को प्रणाम किया, तब इसके बाद भोलेनाथ ने मुस्कुरा कर शनिदेव से बोले कि आपकी वक्र द्दष्टि से मैं बच गया और कोई भी असर नहीं हुआ.
भगवान शिव की यह बात सुनकर शनिदेव मुस्कुराए और बोले. हे देवों के देव महादेव मेरी द्दष्टि से न तो देव बच पाए और न ही दानव और मनुष्य. यहां तक कि आप भी मेरी अशुभ द्दष्टि से नहीं बच पाए. शनिदेव की इस बात को सुनकर भगवान शंकर आश्चर्य में पड़ गए. शनि देव ने आगे कहते हुए कहा कि मेरी ही द्दष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी से पशु योनी में जाना पड़ा. यह सब मेरी वक्र द्दष्टि आपके ऊपर पड़ने के कारण ही संभव हुआ. शनिदेव की इस बात को सुनकर शिव जी प्रसन्न हुए और उनको आशीर्वाद देकर ध्यान मुद्रा में चले गए.







