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Rath Yatra 2025: नीम की लकड़ी से बने रथ, सोने के झाड़ू से सफाई - जानिए रथ यात्रा की अनोखी परंपराएं

विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने से 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और कुछ दिनों के लिए अकेले रहते हैं. जहां पर केवल मंदिर के पुजारी उनका श्रृंगार और भोग लगाते हैं.

Rath Yatra 2025: नीम की लकड़ी से बने रथ, सोने के झाड़ू से सफाई - जानिए रथ यात्रा की अनोखी परंपराएं
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State Mirror Astro
By: State Mirror Astro

Updated on: 25 Jun 2025 2:38 PM IST

27 जून 2025, शुक्रवार को उड़ीसा के पुरी में विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाएगी. हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का विशेष महत्व होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण करते हुए अपनी मौसी के घर जाते हैं. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने के लिए और रथ को खींचने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

भगवान जगन्नाथ मौसी के घर जाते हैं मिलने

हिंदू धर्म में हर साल होने वाले जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष धार्मिक महत्व होता है. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र से साथ मंदिर से निकलकर पूरे नगर का भ्रमण करते हुए अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर उनसे मिलने के लिए जाते हैं. जहां पर भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा एक सप्ताह तक रहते हैं. तीनों के गुंडिचा मंदिर पहुंचने पर उनकी मौसी उन पर खूब प्रेम बरसाती हैं और तीनों के लिए तरह-तरह के पकवान बनाती हैं.

रथ यात्रा से पहले बीमार हो जाते हैं भगवान जगन्नाथ

विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने से 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और कुछ दिनों के लिए अकेले रहते हैं. जहां पर केवल मंदिर के पुजारी उनका श्रृंगार और भोग लगाते हैं. साथ ही भगवान को ठीक करने के लिए उन्हें जड़ी-बूटियों और औषधियों से युक्त खान खिलाया जाता है. इसके बाद आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान एकदम ठीक होकर रथ यात्रा के लिए तैयार होते हैं. दरअसल 108 घड़े के ठंडे पानी से स्नान करने के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं और इसी वजह से ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद 15 दिनों के लिए मुख्य मंदिर दर्शन के लिए बंद कर दिया जाता है.

जगन्नाथ रथ की यात्रा की खास बातें

-हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा प्रारंभ होती है.

- रथ यात्रा के लिए नीम की लकड़ियों से तीन भव्य रथ बनाए जाते हैं. सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और आखिरी में भगवान जगन्नाथ का रथ निकलता है.

- भाई बलराम के रथ को तालध्वज कहते हैं. बहन सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्मरथ कहते हैं और भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदिघोष या गरुड़ध्वज कहते हैं.

- जगन्नाथ जी का रथ 45.6 फीट, बलराम जी का 45 फीट और सुभद्रा जी का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है.

- तीनों देवताओं की मूर्तियां लकड़ी से बनी होती हैं. हर 12 बारह साल के अंतराल पर इन मूर्तियों को पवित्र नीम की लकड़ी से फिर से बनाया जाता है. जिसे नवकलेवर कहते हैं.

- रथ यात्रा शुरू होने से पहले सोने के हत्थे वाली झाड़ू से जगन्नाथ जी के रथ के सामने झाड़ू लगाया जाता है.

- भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिये होते हैं और इस रथ को शंखचूड़ रस्सी से खींचा जाता है. रथ में नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है.

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