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World Saree Day 2025: कर्नाटक के कूर्गी स्टाइल से बंगाल की अतपुरे तक, भारत की यूनिक साड़ी ड्रेपिंग

कर्नाटक की कूर्गी शैली में प्लीट्स पीछे बंधी होती हैं, जो पहाड़ी जीवन की सुविधा देती है. आंध्र प्रदेश की निवी ड्रेप सबसे लोकप्रिय है, जिसमें सामने साफ-सुथरी प्लीट्स और बाएं कंधे पर पल्लू होता है. यह आधुनिक रूप ज्ञानदानंदिनी देवी ने दिया. केरल का मुंडम नेरियाथुम दो हिस्सों वाला परिधान है, बिना ब्लाउज के, सुनहरी बॉर्डर के साथ. तमिलनाडु की पिन कोसुवम में पीछे प्लीट्स बनती हैं, जो खेती के काम के लिए उपयोगी थी. बंगाल की अतपुरे शैली ढीली और सुरुचिपूर्ण है, दुर्गा पूजा के लिए परफेक्ट.

World Saree Day 2025: कर्नाटक के कूर्गी स्टाइल से बंगाल की अतपुरे तक, भारत की यूनिक साड़ी ड्रेपिंग
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( Image Source:  Create By AI Sora )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 21 Dec 2025 11:20 AM

भारत की समृद्ध विरासत और संस्कृति में साड़ी का बहुत गहरा और पुराना संबंध है. इसकी जड़ें सिंधु घाटी सभ्यता जैसे प्राचीन समय से जुड़ी हुई हैं. यह छह गज का सुंदर कपड़ा शरीर पर लपेटकर पहना जाता है और जीवन के खास मौकों जैसे शादी-विवाह, त्योहारों (जैसे दिवाली, नवरात्रि, दुर्गा पूजा आदि) और औपचारिक कार्यक्रमों में खूब पहना जाता है.

साड़ी को पहनना अपने आप में एक खास कला है, जो बहुत लचीला और खुला होता है. विश्व साड़ी दिवस के इस खास मौके पर, हम आपको भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से कुछ बहुत प्रसिद्ध और कुछ कम जाने-पहचाने पारंपरिक साड़ी पहनने के तरीके बता रहे हैं.ये तरीके न सिर्फ सुंदर हैं, बल्कि इनके पीछे दिलचस्प कहानियां और व्यावहारिकता भी छिपी हुई है.

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कर्नाटक की कूर्गी साड़ी

कूर्गी या कोडगु शैली कर्नाटक की एक बहुत अनोखी और खास साड़ी पहनने की स्टाइल है. इसमें सभी सिलवटें (प्लीट्स) कमर के पीछे की तरफ बांधी जाती हैं. पल्लू को पीछे से लाकर कंधे पर डाला जाता है और अक्सर इसे सामने एक गांठ से बांध दिया जाता है. इस शैली की कहानी बहुत रोचक है यह पौराणिक कथाओं और रोजमर्रा की जरूरतों का सुंदर मिश्रण है. एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, यह शैली ऋषि अगस्त्य और उनकी पत्नी कावेरी से जुड़ी हुई है. जब कावेरी नदी बन गईं, तो पानी के तेज बहाव ने सिलवटों को आगे से पीछे की ओर धकेल दिया. इसी से प्रेरणा लेकर कोडवा महिलाओं ने यह अनोखा तरीका अपनाया, जो पहाड़ी इलाकों में आसानी से चलने-फिरने में मदद करता है.

आंध्र प्रदेश की निवी साड़ी

निवी स्टाइल साड़ी पहनने का सबसे आम और आसानी से पहचाना जाने वाला तरीका है. इसमें कमर के सामने की तरफ सिलवटें बहुत करीने से बनाई जाती हैं और पल्लू (साड़ी का ढीला सिरा) बाएं कंधे पर खूबसूरती से लपेटा जाता है. यह तरीका चलने-फिरने में बहुत सुविधा देता है और साथ ही एक एवरग्रीन, अट्रैक्टिव लुक भी देता है. आमतौर पर गुड स्ट्रक्चर के लिए ब्लाउज और पेटीकोट का इस्तेमाल किया जाता है. इसकी जड़ें प्राचीन मूर्तियों में देखी जा सकती हैं, लेकिन 19वीं सदी में ज्ञानदानंदिनी देवी टैगोर ने इसे ब्लाउज और पेटीकोट के साथ मॉडर्न लुक दिया. उन्होंने भारतीय परंपरा को विक्टोरियन शालीनता के साथ जोड़कर महिलाओं को कोलोनियल सोसाइटी में अपनी पहचान बनाए रखने का आसान रास्ता दिखाया.

केरल की मुंडम नेरियाथुम साड़ी

यह स्टाइल प्राचीन समय में बिना ब्लाउज के साड़ी पहनने के पारंपरिक तरीके को दिखाती है. केरल का यह दो हिस्सों वाला खास परिधान है – नीचे का हिस्सा मुंडू और ऊपरी हिस्सा नेरियथु. दोनों के किनारों पर सुनहरी बॉर्डर होती है. नेरियथु को ऊपरी शरीर और बाएं कंधे को खूबसूरती से ढकते हुए पहना जाता है. यह प्राचीन भारतीय वस्त्रों जैसे अंतरिया और उत्तरिया से विकसित हुआ है, खासकर नायर महिलाओं के लिए. बलरामपुरम में राजाओं के संरक्षण से यह प्रसिद्ध हुई और शादी जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में खास जगह रखती है. मशहूर चित्रकार राजा रवि वर्मा ने भी इसे अपने चित्रों में खूबसूरती से दिखाया है. इसके इतिहास में चन्नार विद्रोह भी जुड़ा है, जहां निचली जाति की महिलाओं ने ऊपरी वस्त्र पहनने के अधिकार के लिए संघर्ष किया था.

तमिलनाडु की पिन कोसुवम साड़ी

पिन कोसुवम (या पिंकोसु) तमिलनाडु की एक ट्रेडिशनल स्टाइल है, जिसमें सिलवटें पीछे की तरफ बनाई जाती हैं. यह गांवों और मंदिरों के अनुष्ठानों में बहुत लोकप्रिय है. इसे ठंडक और सुविधा के लिए जाना जाता है, क्योंकि अक्सर बिना पेटीकोट के पहना जाता है. मोटी सूती साड़ियों को कमर पर खास गांठों से बांधा जाता है, जिससे चलना-फिरना आसान हो जाता है और एक अनोखा, सुंदर रूप मिलता है। पुराने समय में खेती जैसे शारीरिक काम करने वाली महिलाएं इसे पहनती थी. नाम का मतलब ही है 'पीछे की सिलवटें'. आज यह स्टाइल थोड़ी लुप्त हो रही है, लेकिन इसकी सुंदरता और उपयोगिता को देखते हुए इसे फिर से जीवित किया जा रहा है.

बंगाल की अतपुरे साड़ी

बंगाल की सबसे आसानी से पहचानी जाने वाली शैलियों में से एक है अतपुरे. इसमें कमर के सामने चौड़ी और ढीली सिलवटें बनाई जाती हैं और पल्लू बाएं कंधे पर लापरवाही से बहता हुआ छोड़ा जाता है. कभी-कभी पल्लू को सिलवटें देकर या खुला रखकर पहना जाता है. यह शैली बहुत सरल, सुंदर और आरामदायक है, खासकर दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों के लिए. क्लासिक सफेद साड़ी लाल बॉर्डर वाली बहुत लोकप्रिय है. इस स्टाइल की शुरुआत 19वीं सदी के बंगाली पुनर्जागरण में हुई, जब रवींद्रनाथ टैगोर की भाभी ज्ञानदानंदिनी देवी ने इसे बनाया. उन्होंने पारसी और अंग्रेजी स्टाइल्स से प्रेरणा लेकर ब्लाउज और पेटीकोट के साथ एक व्यावहारिक तरीका अपनाया, जिससे साड़ी आधुनिक स्वतंत्रता का प्रतीक बन गई.

गोवा की कुनबी साड़ी

गोवा की कुनबी जनजाति की यह ट्रेडिशनल साड़ी घुटनों तक लंबी होती है और लाल-सफेद चेकदार सूती कपड़े की बनी होती है. इसे कंधे पर बांधकर खेतों में काम करने में आसानी होती है. यह गोवा की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है. डिजाइनर वेंडेल रॉड्रिक्स ने इसे फिर से लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. धान के खेतों में काम के लिए इसकी छोटी लंबाई बहुत उपयोगी है. प्राकृतिक रंगों से बने चेक और बिना ब्लाउज के पहनना पुर्तगाली प्रभाव से पहले की सरल जीवनशैली दिखाता है. आज यह गोवा की विरासत के प्रतीक के रूप में फिर से जीवित हो रही है.

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