क्यों 10 साल के बच्चे हो रहे डायबिटीज का शिकार? पढ़ाई का स्ट्रेस, मोबाइल और जंक फूड... बच्चों को बना रहे बीमार
आज के समय में बच्चों की दुनिया तकनीक, सुविधा और फास्ट फूड से भरी हुई है, लेकिन इसी फास्ट लाइफस्टाइल का असर उनके हेल्थ पर गंभीर रूप से पड़ रहा है. ऐसे में 6 साल की उम्र में मोटापा और 10 साल की उम्र में मधुमेह जैसी बीमारियां आम होती जा रही हैं.
एक जमाना था जब बुढ़ापे में जाकर शरीर बीमारियों की चपेट में आता था, लेकिन अब दौर बदल गया है. आज के इस मॉर्डन और एडवांस दुनिया में अब छोटी उम्र से ही बीमारियां होने लगी हैं. हैरानी की बात यह है कि आज के समय में 10 साल जैसे छोटी उम्र के बच्चे भी डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं.
जहां यह बीमारी पहले बड़ी उम्र में देखने को मिलती थी, अब यह बचपन में ही घर कर रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है बच्चों का बदलता लाइफस्टाइल. एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर समय रहते इन आदतों पर रोक न लगी तो आने वाली पीढ़ी और भी गंभीर बीमारियों का सामना कर सकती है. चलिए जानते हैं क्यों छह साल के बच्चे मोटापा और 10 साल के बच्चों को डायबिटीज की बीमारी होने लगी है?
क्यों बच्चों में हो रही मोटापे और डायबिटीज की समस्या
आजकल के बच्चे पहले की तुलना में बहुत ज्यादा समय मोबाइल, टैबलेट और टीवी स्क्रीन के सामने बिताते हैं. पहले बच्चे अपनी एनर्जी घर के बाहर पार्क, मैदान या गलियों में खेलकर रिलीज करते थे, लेकिन अब बाहर खेलने का समय बहुत कम हो गया है. इसके बजाय उनका अधिकतर समय टीवी देखने, गेम खेलने या मोबाइल चलाने में बीतता है. साथ ही, बच्चों का खाना-पानी भी बदल गया है. अब उनका खाना ज्यादातर फास्ट फूड, जंक फूड और शुगर ड्रिंक्स ही होती हैं. ये चीजें स्वाद में तो अच्छी लगती हैं, लेकिन इनमें बहुत ज्यादा कैलोरी और चीनी होती है. जब बच्चों का शरीर इन एक्सट्रा कैलोरी को सही तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाता, तो यह शरीर में जमा होने लगती है, जिसके कारण मोटापा और फ्यूचर में डायबिटीज जैसे समस्याएं हो सकती हैं.
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स्ट्रेस भी है कारण
आज के बच्चों पर पढ़ाई और कॉप्टिशन का दबाव बहुत ज्यादा है. स्कूल की पढ़ाई के साथ कोचिंग और होमवर्क भी उन्हें लगातार बिजी रखते हैं. इसके अलावा, मोबाइल, टैबलेट और कंप्यूटर का ज्यादा इस्तेमाल उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है. लगातार पढ़ाई और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के इस्तेमाल से बच्चों का मेंटल स्ट्रेस बढ़ता है.
इंबैलेंस डाइट
पिछले कुछ दशकों में बच्चों के खाने-पीने का पैर्टन पूरी तरह से बदल गया है. अब बच्चे हेल्दी फूड की जगह बाहर का तला-भुना और पैकेज्ड खाना ज्यादा पसंद करते हैं. सबसे ज्यादा फल और सब्ज़ियां न खाना एक बड़ी परेशानी है. ज्यादा कार्बोहाइड्रेट और शुगर युक्त आहार बच्चों के शरीर को असंतुलित बना देते हैं. इसके नतीजा इंसुलिन रेजिस्टेंस और वजन बढ़ना शुरू होता है, जो डायबिटीज जैसी बीमारियों का शुरुआती साइन है.
नींद की कमी
डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि कम से कम 8-9 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए. आजकल के बच्चे आधी रात फोन देखने में निकाल देते हैं, जिससे नींद पूरी नहीं होती है. ऐसे में वे ज्यादा तनाव में रहते हैं, तो उनके शरीर के हार्मोन बिगड़ सकते हैं. इससे उनका वजन बढ़ सकता है और ब्लड शुगर का स्तर भी असमान हो सकता है.
रोकथाम और जागरूकता की जरूरत
एक्सपर्ट का कहना है कि बचपन में मोटापा और डायबिटीज जैसी बीमारियों को रोकने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव जरूरी है. बच्चों को बैलेंस डाइट, रोजाना फिजिकल एक्टिविटी, पर्याप्त नींद और मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की जरूरत है. पेरेंट्स और टीचर इस प्रोसेस में मेल रोल प्ले करते हैं. बच्चों को समय पर खेलने, फल-सब्ज़ी खाने और शुगर युक्त फूड से दूरी बनाने की आदत डालनी चाहिए.





