PM की ग्लोबल ब्रांडिंग के बीच उनकी योजनाओं से दूर क्यों असली हकदार? बजट की कमी वजह तो नहीं!
PM Garib Kalyan Schemes: पिछले 11 साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार गरीब कल्याण योजनाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे करती आई है, लेकिन हकीकत यह है कि करोड़ों जरूरतमंद लोग उसका लाभ उठाने की जद से बाहर हैं. यह स्थिति इसलिए है कि लोगों में इन योजनाओं के बारे में जानकारी का अभाव है. कहीं सिस्टम की खामियां तो कहीं भ्रष्टाचार इस राह में बाधा बने हुए हैं.

PM Modi Garib Kalyan Schemes: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में गरीब कल्याण योजनाओं की चर्चा करते नजर आ जाते हैं. पार्टी मंच से लेकर सरकारी कार्यक्रमों तक और देश से विदेश तक, उन्होंने खुद की ग्लोबल ब्रांडिंग भी कराई है. भारत का विश्व गुरु होने का दावा भी वह करते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 11 साल में भारत विश्व की 10 की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से 5वें से पांचवें स्थान पर आ गया है. उज्ज्वला योजना से लेकर आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना, जनधन योजना, फ्री राशन और किसान सम्मान निधि तक-सरकार ने कई स्कीमों का ऐलान किया और उसके लाभार्थी गिनाएं.
दूसरी तरफ सच यह भी है कि करोड़ों जरूरतमंद लोग आज भी केंद्र की गरीब कल्याण योजनाओं का लाभ पाने से वंचित हैं. सवाल यह है कि आखिर जमीनी स्तर पर इसका असर क्यों नहीं दिखता? तमाम दावों के बावजूद समाज का सबसे गरीब वर्ग, जिसे सरकार के सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत है, हाशिए पर नजर क्यों आता है? आइए, केंद्र सरकार की उन प्रमुख योजनाओं पर नजर डालते हैं जो धन की कमी से जूझ रही हैं.
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1. SSA : 15.6 करोड़ शिक्षा के अधिकार से वंचित
एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित प्रमुख योजना है. 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा को एक संवैधानिक अधिकार है. इस अधिकार के तहत हर गरीब के बच्चे को सरकारी खर्च पर स्कूली शिक्षा पाने का अधिकार है.
समग्र शिक्षा अभियान का मकसद सभी को शिक्षित करना है. देश भर में इसे 11.6 लाख सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के 15.6 करोड़ छात्र लाभार्थी की श्रेणी में आते हैं. साल 2020-21 और 2023-24 के बीच देश भर में 14 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल बंद हो गए. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में और भी स्कूल लगातार बंद हो रहे हैं.
10.15 लाख सरकारी स्कूलों में से 50 हजार से ज्यादा के पास अपनी इमारतें नहीं थीं. शिक्षा और महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) पर संसदीय स्थायी समिति की 2025-26 के लिए स्कूली शिक्षा के लिए अनुदान मांगों पर रिपोर्ट के अनुसार साल 2023-24 में 3,000 से ज्यादा स्कूल खुले स्थानों पर चल रहे थे.
इसको लेकर चालू वित्त वर्ष में मार्च में संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में समिति ने स्कूली शिक्षा की खराब स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी. इसने केंद्र से उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सर्व शिक्षा अभियान के तहत अतिरिक्त धनराशि आवंटित और वितरित करने का अनुरोध किया था जिनके स्कूल खुले स्थानों पर बिना भवनों के चल रहे हैं. केंद्र सरकार ने इसके लिए वर्ष 23-24 का बजट अनुमान: 37,453 और संशोधित अनुमान 33,000 करोड़ रुपये बताया था. साल 24-25 का बजट अनुमान 37,010 करोड़ और 24-25 का संशोधित अनुमान 37,010 और साल 25-26 का बजट अनुमान 41,250 व संशोधित अनुमान पेश किया है, लाभार्थी की संख्या के लिहाज से बहुत कम है.
2. प्रधानमंत्री-पोषण योजना : 11 करोड़ बच्चे के लिए सिर्फ 10K करोड़
केंद्र सरकार की पुनःनामांकित मध्याह्न भोजन योजना जिसके अंतर्गत सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा 1 से 8) के छात्रों को भोजन मिलता है. इस योजना के लाभार्थी 10.35 लाख सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के 11 करोड़ बच्चे हैं. पिछले दो वर्षों में इस योजना के अंतर्गत आवंटन लगभग 10,000 करोड़ रुपये पर स्थिर रहा है.
प्रधानमंत्री पोषण कवरेज का विस्तार कक्षा 12 (18 वर्ष की आयु) तक के छात्रों तक के लिए किया जाना चाहिए. इसमें महिला एवं बाल विकास समिति ने कहा, "किशोरों के स्कूल छोड़ने की घटनाओं को रोकने और पोषण में लैंगिक असमानताओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है. साल 23-24 का बजट अनुमान 11,600 करोड़ और संशोधित अनुमान: 10,000 रहा था. साल 24-25 का बजट अनुमान 12,467 करोड़ रुपये और संशोधित अनुमान 10,000 करोड़ है. साल 25-26 का बजट अनुमान 12,500 रखा गया है.
3. सक्षम आंगनवाड़ी : बजट अनुमान से काफी कम - संसदीय समिति
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की यह योजना 6 महीने से 6 साल तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण सहायता प्रदान करती है. "आकांक्षी जिलों" और पूर्वोत्तर में 14 से 18 वर्ष की आयु की किशोरियां भी लाभ के लिए पात्र हैं.यह योजना 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा भी प्रदान करती है. इसके लाभार्थी 10 करोड़ से अधिक हैं.
संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार साल 2025-26 के लिए आवंटित धनराशि ₹21,960 करोड़, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की अनुमानित ₹38,403 करोड़ की आवश्यकता से काफी कम है. अपर्याप्त धनराशि के कारण 13,97,061 आंगनवाड़ी केंद्रों में से 1,57,247 में पेयजल कनेक्शन नहीं हैं. 3,94,547 केंद्रों में कार्यात्मक शौचालय नहीं हैं. इस योजना के लिए साल 23-24 का बजट अनुमान 20,552 करोड़ और संशोधित अनुमान 21,522 करोड़ रुपये था. साल 24-25 का संशोधित अनुमान उससे कम 21,200 करोड़ और संशोधित अनुमान 20,071 करोड़ रुपये रहा. इसी तरह साल 25-26 का बजट अनुमान 21,960 करोड़ तय किया गया है.
3. मनरेगा के लिए बजट पर संसदीय कमेटी ने जताई चिंता
ग्रामीण विकास मंत्रालय का मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) का लक्ष्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार को वर्ष में 100 दिनों तक अकुशल काम प्रदान करना है. देश भर में इसके लाभार्थी 13.5 करोड़ श्रमिक हैं.
ग्रामीण विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने चिंता व्यक्त की है कि 2025-26 के लिए मनरेगा के बजट अनुमान 2023-24 के संशोधित अनुमानों के बाद से ₹86,000 करोड़ पर अपरिवर्तित रहे हैं. समिति ने कहा कि विभाग को इस योजना के तहत नौकरियों की अभी भी मौजूद उच्च मांग को "अधिक यथार्थवादी ढंग से" ध्यान में रखना चाहिए और वित्त मंत्रालय पर आवंटन बढ़ाने के लिए दबाव डालना चाहिए. इस योजना के लिए साल 23-24 का बजट अनुमान: 60 हजार और संशोधित अनुमान 86 हजार करोड़ था. साल 24-25 का संशोधित अनुमान 86,000 ही रहा. अब साल 25-26 का बजट अनुमान भी 86,000 करोड़ ही है.
4. NSAP: बजट आवंटन की हो समीक्षा - PSC
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसए) वृद्धों, विधवाओं और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों को पेंशन लाभ प्रदान करता है. इसके लाभार्थी 3.9 करोड़ लोग हैं. इसके लिए पिछले तीन वर्षों से आवंटन 9,652 करोड़ रुपये पर किया गया. ग्रामीण विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने कहा कि वह 2022-23 से राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसए) के लिए धन आवंटन में वृद्धि न करने के पीछे के तर्क को समझ नहीं पा रही है. लाभार्थियों के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने के महत्व को देखते हुए, समिति का मानना है कि बजटीय आवंटन की समीक्षा की जानी चाहिए."
सुशासन का दावा भी गलत, कैसे?
1. योजनाओं को लेकर जानकारी की कमी
गांव और छोटे कस्बों में रहने वाले जरूरतमंदों को कई बार यह पता ही नहीं होता कि योजना का लाभ कैसे लेना है और आवेदन प्रक्रिया क्या है? नतीजा यह होता है कि जो वास्तव में पात्र हैं, वे बाहर इसका लाभ उठाने से बाहर रह जाते हैं. यही मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भी हो रहा है.
2. सिस्टम की खामियां और भ्रष्टाचार
केंद्र की गरीब कल्याण योजनाएं लागू करने में बिचौलियों की भूमिका और अफसरशाही की खामियां बड़ी बाधा बनकर सामने आई हैं. कई जगह फर्जी लाभार्थियों के नाम जुड़ जाते हैं, जबकि असली गरीब को फायदा नहीं मिलता.
3. तकनीकी दिक्कतें और डिजिटल गैप
आधार लिंकिंग, बैंक खाता सत्यापन और ऑनलाइन पोर्टल की तकनीकी खामियों के कारण लाखों लोगों की किस्त या लाभ समय पर नहीं मिलते. ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट और डिजिटल सुविधा की कमी समस्या को और बढ़ा देती हैं.
4. जमीनी निगरानी का अभाव
केंद्र की सरकारी योजनाओं की सही निगरानी न होने के कारण भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लग पाती और लाभार्थी सूची में गड़बड़ी बनी रहती है.