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अभय चौटाला के अंगने में जगदीप धनखड़ का क्‍या काम, पूर्व उपराष्‍ट्रपति ने क्‍यों चुना INLD प्रमुख का फार्महाउस?

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दिल्ली के छतरपुर स्थित INLD प्रमुख अभय चौटाला के फार्महाउस को अस्थायी निवास के रूप में चुना है. यह केवल आवासीय जरूरत नहीं बल्कि उनके और चौटाला परिवार के चार दशक पुराने राजनीतिक व पारिवारिक रिश्तों की गवाही है. धनखड़ को राजनीति में लाने का श्रेय चौधरी देवीलाल को जाता है, जिन्हें वे अपना मेंटर मानते हैं. यही वजह है कि इस्तीफे के बाद अभय चौटाला ने उन्हें अपने घर में ससम्मान ठहराया.

अभय चौटाला के अंगने में जगदीप धनखड़ का क्‍या काम, पूर्व उपराष्‍ट्रपति ने क्‍यों चुना INLD प्रमुख का फार्महाउस?
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 2 Sept 2025 6:54 AM

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को अपने आधिकारिक आवास को खाली कर दिया और दक्षिण दिल्ली के छतरपुर इलाके में स्थित एक निजी फार्महाउस में शिफ्ट हो गए. यह फार्महाउस इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) के नेता अभय चौटाला का है. गाडीपुर क्षेत्र में स्थित यह फार्महाउस उनकी अस्थायी व्यवस्था है, जब तक कि उन्हें पूर्व उपराष्ट्रपति के तौर पर टाइप-8 बंगला आवंटित नहीं हो जाता. अभी तक वह संसद भवन के पास उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में रह रहे थे. उन्हें 34 एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर बंगला आवंटित किया गया है, लेकिन उसके तैयार होने में करीब तीन महीने का समय लगेगा.

जगदीप धनखड़ का दिल्ली के छतरपुर एन्क्लेव स्थित इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) प्रमुख अभय चौटाला के फार्महाउस में रहना भले ही पहली नजर में सामान्य लगे, लेकिन इसके पीछे एक लंबा और गहरा राजनीतिक व पारिवारिक रिश्ता छिपा है.

इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार धनखड़ और चौटाला परिवार की नजदीकियां कोई नई नहीं हैं, बल्कि इनकी शुरुआत आज से करीब चार दशक पहले 1989 में हुई थी, जब हरियाणा के सबसे बड़े जाट नेता माने जाने वाले चौधरी देवीलाल ने राजस्थान के युवा वकील जगदीप धनखड़ को राजनीति में लाने का बीड़ा उठाया था.

धनखड़ भी हमेशा देवीलाल को अपना ‘मेंटॉर’ मानते रहे. यही कारण है कि जब वे उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद अस्थायी ठिकाना तलाश रहे थे, तब अभय चौटाला ने उन्हें खुले दिल से अपने फार्महाउस में आमंत्रित किया. अभय ने साफ कहा, - “यह आपका ही घर है, आपको दूसरी जगह देखने की जरूरत नहीं है.”

देवीलाल से धनखड़ की पहली मुलाकात और राजनीति में प्रवेश

धनखड़ और चौटाला परिवार की दोस्ती की शुरुआत 1989 में हुई. उस समय देवीलाल हरियाणा के सबसे बड़े जाट नेता और मुख्यमंत्री थे. उन्होंने युवा वकील धनखड़ में एक उभरते हुए नेता की छवि देखी. 25 सितंबर 1989 को देवीलाल के जन्मदिन पर दिल्ली के बोट क्लब में विपक्षी दलों की रैली आयोजित हुई थी. इस रैली में धनखड़ ने राजस्थान से 500 गाड़ियों का काफिला लेकर आकर सबको प्रभावित किया. यही वह क्षण था जिसने देवीलाल और धनखड़ के रिश्ते को मजबूती दी और राजनीति में उनके करियर की नींव रखी.

जनता दल से टिकट और पहली जीत

1989 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने जनता दल के बैनर तले चुनाव लड़ा. देवीलाल ने धनखड़ को राजस्थान के झुंझुनूं से टिकट दिया. न केवल उन्होंने चुनाव प्रचार किया बल्कि धनखड़ को अपनी राजनीति का हिस्सा भी बना लिया. चुनाव जीतने के बाद जब जनता दल की सरकार बनी और देवीलाल उपप्रधानमंत्री बने, तो धनखड़ को भी केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री का पद मिला.

देवीलाल के लिए छोड़ दिया मंत्री पद

1990 में जब प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह और देवीलाल के रिश्ते बिगड़े और देवीलाल को उपप्रधानमंत्री पद से हटाया गया, तो धनखड़ ने भी बिना देर किए कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. यह वफादारी उनके रिश्ते की गहराई को दर्शाती है. बाद में चंद्रशेखर सरकार के दौरान देवीलाल दोबारा उपप्रधानमंत्री बने और धनखड़ फिर से संसदीय कार्य राज्यमंत्री बनाए गए.

आईएनएलडी और कांग्रेस का सफर

जनता दल टूटने के बाद देवीलाल ने INLD का गठन किया. हालांकि धनखड़ ने इस दौर में राजनीतिक मोड़ लिया और 1991 में कांग्रेस टिकट पर अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. इसके बाद 1993 में वे राजस्थान विधानसभा चुनाव में किशनगढ़ से कांग्रेस विधायक बने. दिलचस्प यह है कि उसी चुनाव में देवीलाल के पोते और अभय चौटाला के भाई अजय चौटाला ने राजस्थान की नोहर सीट से INLD टिकट पर जीत दर्ज की.

चौटाला परिवार से अटूट रिश्ता

2024 में INLD प्रमुख और देवीलाल के बेटे ओम प्रकाश चौटाला का निधन हुआ. उस समय सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक जगदीप धनखड़ थे. उन्होंने श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, “चौटाला साहब का किसानों और गांवों की तरक्की पर ध्यान हमेशा प्राथमिकता रहा. उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत नुकसान है.”

धनखड़ का ‘प्लीडर से लीडर’ बनने का सफर

एक सार्वजनिक कार्यक्रम में धनखड़ ने खुद बताया था कि देवीलाल ने ही उन्हें समझाया कि वे ‘प्लीडर’ नहीं बल्कि ‘लीडर’ बनें. इसी प्रेरणा ने उन्हें राजनीति में सक्रिय होने का साहस दिया. यही वजह है कि धनखड़ हमेशा देवीलाल को अपने राजनीतिक जीवन का ‘गुरु’ मानते हैं.

उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा और अभय चौटाला की प्रतिक्रिया

21 जुलाई 2024 को धनखड़ ने अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. संसद के मानसून सत्र के पहले दिन उनके इस फैसले ने सबको चौंका दिया. अभय चौटाला ने इसे एक ‘षड्यंत्र’ बताते हुए कहा कि मोदी-शाह की जोड़ी ने उन्हें मजबूर किया. अभय ने किसानों से जुड़े मुद्दों का हवाला देकर कहा, “जो नेता किसानों की भलाई की बात करता है, वह भाजपा को मंजूर नहीं है.”

‘परिवार’ का हिस्सा हैं धनखड़

अभय चौटाला ने स्पष्ट कहा कि वे बचपन से ही धनखड़ से मिलते रहे हैं और उन्हें परिवार का हिस्सा मानते हैं. यही कारण है कि जब उन्हें अस्थायी ठिकाने की जरूरत थी, तो अभय ने अपने फार्महाउस का दरवाजा उनके लिए खोल दिया. यहां तक कि चौटाला परिवार के अन्य सदस्य, जैसे रणजीत सिंह, जो अब अभय से अलग हो चुके हैं, भी धनखड़ को परिवार का हिस्सा बताते हैं.

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