फोकस 2027 पर... अगर ऊपर वाले ने चाहा! 12 दिन पहले धनखड़ ने बताया था रिटायरमेंट प्लान, ऐसा क्या हुआ जो देना पड़ा इस्तीफा?
21 जुलाई को संसद सत्र की शुरुआत से ठीक पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा राजनीतिक भूचाल बन गया. स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया गया, पर विपक्ष इसे सत्ता के भीतर की असहमति से जोड़ रहा है. इस्तीफे से पहले जेपी नड्डा और किरेन रीजीजू की बैठक से अनुपस्थिति को भी एक संकेत माना जा रहा है. अब नए उपराष्ट्रपति की तलाश तेज़ हो गई है.

21 जुलाई की शाम जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा दिया, तो राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया. यह फैसला ऐसे दिन आया जब संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा था. यानी जब देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सबसे ज़्यादा स्थिरता की ज़रूरत थी. आधिकारिक कारण “स्वास्थ्य” बताया गया, लेकिन कांग्रेस और कई विपक्षी नेताओं ने इसे सिर्फ़ सतह पर दिखने वाला बहाना बताया और कहा कि इसके पीछे कुछ “गंभीर और असुविधाजनक” सच्चाई छिपी है. हालांकि अब राष्ट्रपति ने उनके इस्तीफे को मंजूर कर लिया है.
10 जुलाई को जेएनयू के एक कार्यक्रम में धनखड़ ने कहा था, "अगर ईश्वर की कृपा रही तो 2027 में रिटायर हो जाऊंगा." इस बयान को तब लोगों ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में लिया, लेकिन अब जब सिर्फ़ 10 दिन बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया, तो इस बात को एक संकेत माना जा रहा है. क्या वह पहले से ही मानसिक रूप से पद से हटने का निर्णय ले चुके थे?
रिटायरमेंट को लेकर क्या बोले थे धनखड़?
10 जुलाई को जेएनयू के एक कार्यक्रम में उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जब रिटायरमेंट को लेकर टिप्पणी की, तो ऑडियंस हंसने लगी. उन्होंने मज़ाकिया लहजे में कहा, "मैं सही समय पर रिटायर हो जाऊंगा, अगस्त 2027 में, अगर ईश्वर ने चाहा तो!" धनखड़ ने कहा कि वे एक अच्छे विद्यार्थी की तरह खुद को पूरी तरह समर्पित रखेंगे. उन्होंने मजाक में कहा कि "मेरे पास दुश्मनों की एक लंबी सूची है, मुझे अपने फैकल्टी से मार्गदर्शन चाहिए कि कैसे उनसे निपटूं." और यह भी जोड़ा कि उनके पास ‘वाइसेज़’ हैं, पर वो न तो विवाह से जुड़े हैं, न पेशे से.
परिवार वालों ने क्या कहा?
धनखड़ के पैतृक गांव झुंझुनूं के किठाना गांव में उनके इस्तीफे से शोक और हैरानी का माहौल है. उनके भतीजे ने बताया कि उनकी तबीयत वाकई ठीक नहीं थी और उनकी पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ इसको लेकर काफी चिंतित रहती थीं. इसी महीने की शुरुआत में जब वे गांव आईं, तो उन्होंने कहा था कि अब उपराष्ट्रपति को पहले से ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत है. लेकिन किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि वे अपना कार्यकाल बीच में छोड़ देंगे.
1 बजे से 4:30 के बीच क्या हुआ था?
21 जुलाई को दोपहर 12:30 बजे तक धनखड़ राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति की अध्यक्षता कर रहे थे. इसके बाद निर्णय हुआ कि बैठक को दोपहर 4:30 बजे फिर से बुलाया जाएगा. लेकिन दोपहर 1 बजे से शाम 4:30 के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने स्थिति बदल दी. कांग्रेस नेता जयराम रमेश के अनुसार, इस दौरान केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और किरेन रीजीजू बिना कोई सूचना दिए दूसरी बैठक में शामिल नहीं हुए. यह बात धनखड़ को बेहद नागवार गुज़री क्योंकि नियमों और प्रक्रिया के प्रति उनकी निष्ठा जगजाहिर थी. उन्हें यह महसूस हुआ कि उनकी संवैधानिक भूमिका की अनदेखी की जा रही है. माना जा रहा है कि यही वह समय था जब उन्होंने मन बना लिया कि अगर उनकी गरिमा और भूमिका का सम्मान नहीं हो रहा, तो पद छोड़ देना ही बेहतर है.
सिर्फ़ स्वास्थ्य कारण या सत्ता के भीतर की खींचतान?
धनखड़ का इस्तीफा संवैधानिक अनुच्छेद 67 (ए) के तहत स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर दिया गया, लेकिन अगर यह एकमात्र कारण होता, तो क्या मानसून सत्र की शुरुआत का दिन चुना जाता? यही सवाल विपक्ष बार-बार दोहरा रहा है. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वे धनखड़ को मनाएं, जबकि वामपंथी नेताओं ने इसे “राजनीतिक असंतोष की अभिव्यक्ति” कहा.
धनखड़ का नियमों से प्रेम
जगदीप धनखड़ एक संवैधानिक व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं, जिन्हें संसद की मर्यादा, प्रक्रिया और नियमों से बेहद लगाव था. उन्होंने न केवल न्यायपालिका की जवाबदेही पर ज़ोर दिया, बल्कि किसानों के मुद्दों पर भी अपनी आवाज़ मुखर की. वे अक्सर सत्ता के केंद्रीकरण यानी 'G2' (दो लोगों की सत्ता) पर अप्रत्यक्ष तंज कसते रहे, जो शायद सत्ता में बैठे कुछ लोगों को खटकता रहा.
मार्च में ऑपरेशन, जून में सीने में दर्द
यह सच है कि मार्च में उनका हार्ट ऑपरेशन हुआ था और जून में उत्तराखंड दौरे पर उन्हें सीने में दर्द हुआ था. हालांकि, तब उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया. अब जबकि उनकी सेहत बिगड़ती गई, परिवार भी चिंतित रहने लगा. लेकिन यह भी सच है कि संसद सत्र की शुरुआत जैसे महत्वपूर्ण समय में यह फैसला करना कुछ न कुछ असामान्य संकेत देता है.
नए उपराष्ट्रपति की तलाश
अब सवाल उठता है कि भारत का अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? क्या केंद्र सरकार कोई सर्वसम्मत चेहरा सामने लाएगी या फिर यह नियुक्ति एक और सियासी खींचतान का कारण बनेगी? धनखड़ के इस्तीफे ने सत्ता और संवैधानिक गरिमा के रिश्ते पर बहस को फिर से ज़िंदा कर दिया है. यह भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या उनका यह कदम भविष्य में किसी राजनीतिक मोड़ का संकेत बनेगा.