...तो इस वजह से उपराष्ट्रपति ने दिया इस्तीफा, BAC की बैठक में क्या हुआ था? कांग्रेस नेता के दावों की Inside Story
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया, लेकिन कांग्रेस ने इसे राजनीतिक अपमान और सत्ता से टकराव का परिणाम बताया है. जयराम रमेश के मुताबिक, Business Advisory Committee में धनखड़ को नजरअंदाज किया गया और उनकी संवैधानिक गरिमा को ठेस पहुंची. अब यह इस्तीफा सत्ता के केंद्रीकरण और संस्थागत संकट का प्रतीक बन गया है.
21 जुलाई 2025 की शाम जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपना इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सौंपा, तो संसद के गलियारे में जैसे सन्नाटा फैल गया. उनका पत्र संक्षिप्त था और स्वास्थ्य कारणों को इस्तीफे का आधार बताया गया, लेकिन पूरे घटनाक्रम ने इतना स्पष्ट कर दिया कि ये सिर्फ सतही कारण हैं. एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का अचानक हट जाना न केवल असाधारण है, बल्कि गंभीर संकेत भी देता है कि सत्ता के भीतर कुछ ठीक नहीं चल रहा था.
धनखड़ के इस्तीफे की भूमिका संभवतः उसी दिन दोपहर से शाम के बीच हुई घटनाओं में बनी. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने जो खुलासा किया, उसके अनुसार सोमवार दोपहर 12:30 बजे राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (Business Advisory Committee-BAC) की बैठक में धनखड़ ने अध्यक्षता की. बैठक के दौरान तय हुआ कि इसे शाम 4:30 बजे दोबारा बुलाया जाएगा. लेकिन जब वह बैठक हुई, तब केंद्र के दो वरिष्ठ मंत्री जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू जानबूझकर अनुपस्थित रहे.
उपराष्ट्रपति को नहीं दी गई कोई सूचना
बैठक में दोनों मंत्रियों की गैरमौजूदगी को लेकर जो सबसे अहम बात सामने आई, वह यह कि धनखड़ को इसकी कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी. जयराम रमेश के मुताबिक, उपराष्ट्रपति इस बात से बेहद आहत हुए कि उन्हें नजरअंदाज किया गया. यह केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि संस्थागत असम्मान की स्थिति थी. ऐसा लगा जैसे एक संवैधानिक पद को सियासी हल्केपन से देखा गया हो. उसी क्षण उन्होंने कार्य मंत्रणा समिति की बैठक स्थगित की और उसी रात इस्तीफा दे दिया.
क्या ‘स्वास्थ्य कारण’ सिर्फ दिखावा है?
धनखड़ के पत्र में उल्लिखित “स्वास्थ्य कारण” एक तटस्थ और सभ्य कारण हो सकता है, लेकिन विपक्ष का मानना है कि यह महज एक 'राजनीतिक परदा' है. जयराम रमेश ने स्पष्ट रूप से कहा कि दोपहर 1 बजे से शाम 4:30 बजे के बीच कुछ ऐसा घटा जिससे यह निर्णय लिया गया. इससे पहले भी धनखड़ ने अपने भाषणों में सत्ता में अहंकार, किसानों की अनदेखी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर टिप्पणी की थी. यह सब उन्हें सत्ता के मूल से दूर ले गया.
सत्ता से टकराव की शुरुआत कब हुई?
हालांकि उपराष्ट्रपति बनने से पहले धनखड़ को एक “सरकारी विचारधारा” वाला नेता माना जाता था, लेकिन पद संभालने के बाद उन्होंने कई बार ऐसी बातें कही जो सत्ता के साथ उनकी दूरी को दर्शाती हैं. उन्होंने किसानों के मुद्दों पर समर्थन जताया, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मर्यादा की आवश्यकता बताई और संसद में विपक्ष को पर्याप्त स्थान देने की वकालत की. इन सब बातों ने उन्हें एक संवैधानिक चेहरा तो बनाए रखा, लेकिन सत्ता के केंद्र से कटते गए.
सत्ता के केंद्रीकरण पर सवाल
जयराम रमेश ने अपने बयान में “G2 सरकार” शब्द का प्रयोग किया यानी ऐसी सरकार जहां सत्ता का संचालन दो व्यक्तियों के इर्द-गिर्द सिमट चुका है. यह बात सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की ओर संकेत करती है. रमेश का दावा है कि ऐसे शासन ढांचे में न संस्थागत गरिमा बचती है और न ही संवैधानिक पदों की स्वतंत्रता. धनखड़ जैसे नेता, जो मर्यादा और प्रक्रिया के प्रति सजग हों, इस ढांचे में घुटन महसूस करते हैं.
क्या धनखड़ महज मोहरा थे?
कांग्रेस ने केवल इस्तीफे के कारणों पर ही नहीं, बल्कि धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद तक लाने वाली प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं. जयराम रमेश ने कहा कि जो लोग उन्हें यहां तक लाए, वही लोग अब उन्हें ‘परेशानी’ मानने लगे थे. कांग्रेस का आरोप है कि धनखड़ को एक “नियंत्रित चेहरा” मानकर लाया गया था, लेकिन जब उन्होंने स्वतंत्र निर्णय और आलोचना करना शुरू किया, तो उन्हें ‘सिस्टम’ से बाहर करने का तंत्र काम में लाया गया.
लोकतंत्र के भविष्य पर सवाल
धनखड़ का इस्तीफा केवल एक संवैधानिक पद खाली होना नहीं है, यह हमारे लोकतंत्र के भीतर असहमति, गरिमा और स्वायत्तता के हालात पर सवाल खड़ा करता है. क्या आज भारत में संवैधानिक पद केवल शो-पीस बन चुके हैं? क्या सत्ता की आलोचना करने वाला कोई भी स्वर अब ‘अनफिट’ मान लिया जाता है? ये प्रश्न सिर्फ विपक्ष के लिए नहीं, पूरे राजनीतिक और नागरिक समाज के लिए चिंता के विषय हैं. अब यह देखना अहम होगा कि सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और क्या इस इस्तीफे के असली कारण कभी सामने आ पाएंगे.





