किस बात से धनखड़ से नाराज थे पीएम मोदी? दो केंद्रीय मंत्रियों ने बताई थी बात; सवालों में घिरी सरकार की रणनीति
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने सियासी हलचल बढ़ा दी है. विपक्ष इसे केवल स्वास्थ्य कारण नहीं, बल्कि महाभियोग नोटिस के बाद हुई राजनीतिक खींचतान से जोड़ रहा है. पीएम मोदी की कथित नाखुशी, मंत्रियों की बातचीत और विपक्ष की रणनीति ने इस घटनाक्रम को और पेचीदा बना दिया है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा अब केवल एक ‘स्वास्थ्य कारणों’ की घोषणा भर नहीं रहा. उनके इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज़ हो गई है. एक ओर सरकार इसे व्यक्तिगत निर्णय बता रही है, तो दूसरी ओर विपक्ष इसे एक बड़े राजनीतिक संदेश के रूप में देख रहा है. खासतौर पर ऐसे समय में जब राज्यसभा में एक हाईकोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव चर्चा में था, धनखड़ का पद छोड़ना संयोग नहीं, एक संकेत माना जा रहा है.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, महाभियोग नोटिस को स्वीकार करने के तुरंत बाद केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा और किरेन रिजिजू ने उपराष्ट्रपति से मुलाकात की. सूत्रों के मुताबिक, इन मंत्रियों ने पीएम मोदी की अप्रसन्नता का संकेत भी दिया. जवाब में धनखड़ ने स्पष्ट किया कि उन्होंने सदन के नियमों का पालन किया है. यह टकराव किसी व्यक्तिगत असहमति से ज़्यादा, संवैधानिक सीमाओं और राजनीतिक अपेक्षाओं के बीच तनाव को दर्शाता है.
संसद की रणनीति में दरार
धनखड़ द्वारा राज्यसभा में महाभियोग नोटिस को स्वीकारने से संसद की कार्यप्रणाली में एक अनकही दरार उजागर हुई. सोमवार को बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठकों के समय में बदलाव और सांसदों की अनुपस्थिति से यह स्पष्ट हुआ कि इस मुद्दे पर सरकार पूरी तरह से एकमत नहीं थी. कुछ का मानना है कि सरकार चाहती थी कि यह प्रक्रिया लोकसभा से शुरू हो ताकि विपक्ष की रणनीति को रोका जा सके.
विपक्ष की ‘चुप्पी’ पर पलटवार?
विपक्ष, जो पहले उपराष्ट्रपति धनखड़ पर सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाता रहा, अब उनके इस्तीफे को सरकार के खिलाफ हथियार बना रहा है. यह विरोधाभास बताता है कि राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता. कांग्रेस और अन्य दलों ने पहले उन्हें “सरकार का चीयरलीडर” कहा, पर अब वही धनखड़ सरकार की रणनीति से बाहर जाते दिख रहे हैं. यह परिस्थिति विपक्ष को भी आत्ममंथन के लिए मजबूर करती है.
जब आलोचना ने रच दिया इतिहास
धनखड़ पहले ऐसे उपराष्ट्रपति बने जिनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस सौंपा गया. 10 दिसंबर को कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने उन्हें पक्षपाती बताते हुए यह प्रस्ताव राज्यसभा सचिवालय को सौंपा था. आरोपों में कहा गया था कि उन्होंने बार-बार सरकार के पक्ष में काम किया और सदन की गरिमा को कम किया. ये आरोप उनके तीन साल के कार्यकाल को एक ऐसे नेतृत्व के रूप में परिभाषित करते हैं जो निरंतर आलोचना के घेरे में रहा.
निष्पक्षता बनाम पहचान की जंग
धनखड़ के उस बयान को विपक्ष ने बार-बार उछाला जिसमें उन्होंने खुद को “आरएसएस का एकलव्य” कहा था. इससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए. विपक्ष के नेताओं, खासकर मल्लिकार्जुन खड़गे और जयराम रमेश, ने उन्हें सदन में असहिष्णु और पक्षपाती बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अब जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, तो सवाल यह नहीं कि क्यों दिया, बल्कि यह है कि क्या वो कभी वास्तव में निष्पक्ष थे, या राजनीति में पद से ज़्यादा पहचान मायने रखती है?