जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर पीएम मोदी के अलावा सारे मंत्रियों ने क्यों साधी चुप्पी? क्या अंदर ही अंदर कुछ चल रहा है?
PM Modi Reaction: सोमवार देर रात देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक आए इस्तीफे पर प्रधानमंत्री मोदी की पहली प्रतिक्रिया सामने आई गई है, लेकिन कैबिनेट के बाकी दिग्गजों ने उनके इस्फीफे पर चुप्पी साध ली है. आखिर चुप रहने के पीछे की वजह क्या है? कहीं ये बीजेपी के भीतर खिंचती रस्साकशी का संकेत तो नहीं? धनखड़ लंबे समय से पार्टी लाइन से कुछ अलग सोच रखते थे. कहीं यही अंदरूनी असहमति इस्तीफे की वजह तो नहीं.

PM Reaction On Jagdeep Dhankhar Resignation: राज्यसभा के सभापति और देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद के मानसून सत्र के पहले दिन न केवल सदन का सही से संचालन किया बल्कि कई बैठकों में भी शामिल हुए. इसके बाद देर रात जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया. जब उनका इस्तीफा सबके सामने आया तो पूरा देश चौंक उठा. लोग यह सोचकर हैरान हो गए कि आखिर उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया? सरकार की ओर से 15 घंटे बाद पहली प्रतिक्रिया आई, वो भी सिर्फ पीएम मोदी की ओर से. पीएम को छोड़कर कोई बड़ा मंत्री कुछ नहीं बोला. न ही मंत्रियों ने न ट्वीट, न बयान, न समर्थन दिया. ये खामोशी कहीं कुछ बड़ा तो नहीं! ऐसा इसलिए कि राजनीति में चुप रहना कई बार सबसे बड़ा संदेश होता है.
फिलहाल, पीएम नरेंद्र मोदी ने उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे को 'व्यक्तिगत निर्णय' बताया और उनके 'सम्मानपूर्वक योगदान' को याद किया, लेकिन यह बयान भी कुछ हद तक सतही और नपे-तुले शब्दों में था. इससे राजनीतिक हलकों में ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या पीएम मोदी धनखड़ के फैसले से अंदर ही अंदर असहमत थे?
सारे मंत्रियों ने क्यों साधी चुप्पी?
पीएम मोदी के अलावा, अन्य वरिष्ठ मंत्रियों में राजनाथ सिंह, अमित शाह, निर्मला सीतारमण, जयशंकर से लेकर हरदीप पुरी तक ने सरकार के तमाम वरिष्ठ मंत्रियों ने धनखड़ के इस्तीफे पर कुछ नहीं कहा. जबकि आमतौर पर ऐसी संवैधानिक हलचलों पर प्रतिक्रियाएं आती हैं.
बीजेपी के अंदरखाने कुछ तो गड़बड़ है
सूत्रों के मुताबिक धनखड़ लंबे समय से पार्टी लाइन से कुछ अलग सोच रखते थे. उनका कहना था कि राज्यसभा में विपक्ष को 'सुना जाना चाहिए.' उनकी इन टिप्पणियों को पार्टी हाईकमान ने गंभीरता से लिया था. क्या धनखड़ इस्तीफा उसी अंदरूनी असहमति का नतीजा है?
ना प्रेस कॉन्फ्रेंस, ना विदाई समारोह, ना पार्टी की ओर से कोई भावुक पोस्ट। क्या धनखड़ की भूमिका बस एक ‘कानूनन चेहरा’ भर थी? या फिर वो अब किसी नई भूमिका की ओर बढ़ रहे हैं, जिसके बारे में खुलासा होना बाकी है? ये चर्चा इसलिए जरूरी है कि जब राजनीति में अचानक सन्नाटा छा जाए, तो समझिए कुछ बड़ा पक रहा है. उपराष्ट्रपति का इस्तीफा और उस पर नेताओं की चुप्पी- दोनों मिलकर कई सवाल खड़े करते हैं. ये चुप्पी अगर ‘संकेत’ हैं तो अगला कदम शायद सत्ता के गलियारों में भूचाल ला सकता है.
विपक्ष का नोटिस इस्तीफे के लिए कितना जिम्मेदार?
सूत्रों के मुताबिक इस विवाद के केंद्र में जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष द्वारा समर्थित नोटिस है जो अपने आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद सुर्खियों में आए थे. कल जब राज्यसभा में मानसून सत्र शुरू हुआ तो विपक्षी सांसदों ने एक नोटिस पेश किया. राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने नोटिस स्वीकार कर लिया और सदन के महासचिव से इस बाबत जरूरी कदम कदम उठाने को कहा.
यह कदम सरकार को रास नहीं आया क्योंकि सरकार जस्टिस और न्यायपालिका में जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाना चाहती थी. विपक्ष द्वारा उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के छह महीने बाद ही धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की अटकलें शुरू हो गईं. अनुभवी राजनेता धनखड़ को इसकी भनक लग गई और उन्होंने पद छोड़ने का फैसला किया.
स्वास्थ्य कारणों से तो इस्तीफा नहीं दिया - पी संदोष कुमार
भाकपा के राज्यसभा सांसद पी. संदोष कुमार ने आधिकारिक स्पष्टीकरण पर सवाल उठाते हुए कहा, "केवल दो व्यक्ति - नरेंद्र मोदी और अमित शाह - ही इसकी व्याख्या कर सकते हैं. एक बात तो तय है कि जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा नहीं दिया. वह सदन के संचालन में बहुत सक्रिय थे. इस फैसले के पीछे कई और कारण भी हो सकते हैं."
रामगोपाल यादव - समझ नहीं पा रहा, क्या हो रहा है?
समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में ज्यादा सावधानी बरती और कहा, "मैं क्या कह सकता हूं? उन्होंने कुछ स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या हो रहा है."
सपा के एक अन्य सांसद अवधेश प्रसाद ने कहा कि इस अचानक हुए घटनाक्रम से वे स्तब्ध हैं। प्रसाद ने कहा, "हमें देर रात पता चला कि उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया है। वे कल ही सदन में थे। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं। धनखड़ संविधान के एक साहसी रक्षक थे."
74 वर्षीय नेता जगदीप धनखड़ ने अगस्त 2022 में पदभार संभाला था और 2027 में उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा होने वाला था. उनके कार्यकाल में विपक्ष के साथ लगातार टकराव हुआ और उनके खिलाफ विपक्ष ने और उनके खिलाफ एक महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा में पेश किया था जिसे उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया.