कौन है थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी? समर्पण करने वाले नक्सली चंद्रन्ना ने किया माओवादी संगठन के नए मुखिया का पर्दाफाश
CPI (माओवादी) नेता पुल्लुरी प्रसाद राव उर्फ चंद्रन्ना के आत्मसमर्पण के बाद खुलासा हुआ कि अब संगठन की कमान थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी के हाथों में है. बसवराजु की मौत के बाद यह पहला आधिकारिक एलान है. 62 वर्षीय देवुजी दो दशकों से माओवादी सैन्य शाखा के प्रमुख रहे हैं. हाल में ऑपरेशन ‘कागर’ के दबाव और बीमारी के चलते कई शीर्ष नक्सली नेताओं ने आत्मसमर्पण किया है. अब देवुजी और हिडमा संगठन के अंतिम प्रमुख चेहरों में बचे हैं.
देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बने माओवादी आंदोलन को एक और बड़ा झटका लगा है. मंगलवार को तेलंगाना पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाले CPI (माओवादी) के सेंट्रल कमिटी सदस्य पुल्लुरी प्रसाद राव उर्फ चंद्रन्ना ने न केवल अपने हथियार डाल दिए, बल्कि माओवादी संगठन की अंदरूनी सच्चाई भी उजागर कर दी. उन्होंने पुष्टि की कि अब माओवादी संगठन की कमान थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी के हाथों में है.
यह पहला मौका है जब किसी वरिष्ठ माओवादी नेता ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि मई में पूर्व महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु की मुठभेड़ में मौत के बाद देवुजी ही पार्टी के नए महासचिव हैं.
“लाल सलाम” से शुरू हुई सरेंडर की कहानी
64 वर्षीय चंद्रन्ना ने हैदराबाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान “लाल सलाम” बोलते हुए कहा, “मैं बीमार था और साथ ही ऑपरेशन कागर चल रहा था. एक ओर बीमारी, दूसरी ओर सुरक्षा बलों का दबाव... इसलिए आत्मसमर्पण का फैसला लिया.” उन पर सरकार ने 40 लाख रुपये का इनाम रखा था. चंद्रन्ना के साथ तेलंगाना राज्य समिति सदस्य बंडी प्रकाश ने भी सरेंडर किया. ऑपरेशन ‘कागर’ को हाल के वर्षों में सबसे आक्रामक एंटी-माओवादी अभियान माना जा रहा है. इसी ऑपरेशन के चलते कई वरिष्ठ नक्सली नेताओं ने आत्मसमर्पण किया है.
एक महीने में बड़े-बड़े सरेंडर
इससे पहले 14 अक्टूबर को महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में माओवादी पोलित ब्यूरो सदस्य मल्लोजुला वेंगुपाल राव उर्फ सोनू (70) ने 60 साथियों के साथ हथियार डाल दिए थे. कुछ ही दिनों बाद छत्तीसगढ़ में 170 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें सबसे बड़ा नाम था टक्कलप्पल्ली वासुदेव राव उर्फ रूपेश (59) - जो माओवादी बम बनाने का मास्टरमाइंड माना जाता है और जिस पर 2000 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू पर हमले की साजिश रचने का आरोप है. इन सीनियर कैडरों के सरेंडर के बाद अब माओवादी आंदोलन का बोझ लगभग पूरी तरह देवुजी (62) और मदवी हिडमा उर्फ संतोष (51) के कंधों पर आ गया है.
कौन है थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार थिप्पिरी तिरुपति, जिसे माओवादी संगठन में “देवुजी” के नाम से जाना जाता है, संगठन का सबसे रहस्यमयी और सख्त चेहरा माना जाता है. पिछले दो दशकों से वह CPI (माओवादी) की सेंट्रल मिलिट्री कमिशन (CMC) यानी संगठन की सैन्य शाखा का प्रमुख रहा है. सरकार ने 2009 में CPI (माओवादी) को आतंकी संगठन घोषित किया था, और तभी से देवुजी देश की खुफिया एजेंसियों के रडार पर रहा है. मई में बसवराजु के मारे जाने के बाद, देवुजी का नाम संगठन के शीर्ष पद के लिए सबसे पहले सामने आया था.
संगठन में दरार - सोनू बनाम देवुजी
चंद्रन्ना ने यह भी खुलासा किया कि अब माओवादी संगठन में दो खेमे बन गए हैं - एक जो सोनू का समर्थन करता है और दूसरा जो देवुजी के साथ है. उन्होंने कहा, “मैं देवुजी के साथ हूं. पार्टी के हालात बदल चुके हैं और हमें राज्य की दमनात्मक नीतियों का सामना करना पड़ रहा है.” प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सफेद शर्ट और काले पैंट में नजर आए चंद्रन्ना ने कहा, “अब आंदोलन पहले जैसा नहीं रहा. अंदर से भी मतभेद हैं.”
40 साल भूमिगत जीवन, अब आत्मसमर्पण
चंद्रन्ना तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले के रहने वाले हैं. उनके पिता एक स्कूल के हेडमास्टर थे. उन्होंने विज्ञान में स्नातक किया और फिर रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन (RSU) से जुड़ गए. इसके बाद उन्होंने CPI (माओवादी) पीपुल्स वॉर ग्रुप की सदस्यता ली. उन्होंने माओवादी आंदोलन के पुराने नेताओं, जैसे मल्लोजुला कोरेश्वर राव उर्फ किशनजी (सोनू के भाई) के साथ काम किया. उन्होंने कहा, “आज पार्टी के ज्यादातर कैडर देवुजी के समर्थन में हैं.” चंद्रन्ना पिछले 40 साल से भूमिगत जीवन जी रहे थे और 15 वर्षों से माओवादी सेंट्रल कमिटी के सदस्य थे.
माओवादी आंदोलन का भविष्य
अब जबकि संगठन के शीर्ष नेताओं में से अधिकतर आत्मसमर्पण कर चुके हैं या मारे जा चुके हैं, देवुजी और हिडमा जैसे पुराने कमांडर ही अब माओवादी आंदोलन का चेहरा बचे हैं. लेकिन अंदरूनी फूट, कमजोर होती जनसपोर्ट और लगातार जारी सुरक्षा अभियानों ने इस आंदोलन की रीढ़ को तोड़ दिया है. सरकारी सूत्रों के मुताबिक, ऑपरेशन कागर जारी रहेगा, और अब फोकस “कोर माओवादी जोन” - छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सीमा और तेलंगाना के वन इलाकों - पर है.
माओवादी संगठन का “लाल किला” अब भीतर से दरक रहा है. देवुजी के नेतृत्व में नया दौर शुरू जरूर हुआ है, लेकिन उनके सामने चुनौती है राज्य की ताकत, संगठन की फूट और घटती जनसंपर्क शक्ति.





