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इंजीनियर जो बन गया सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द, कौन था 1.5 करोड़ का इनामी नक्‍सली कमांडर बसवराज?

नंवबल्ला केशव राव उर्फ बसवराज, माओवादी संगठन का महासचिव और डेढ़ करोड़ का इनामी नक्सली था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर उसने नक्‍सलवाद का रास्ता चुना और LTTE से ट्रेनिंग ली. युद्ध रणनीति और गुरिल्ला हमलों में माहिर बसवराज 22 मई को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया. यह माओवादी संगठन के लिए बड़ा झटका और भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी सफलता मानी जा रही है.

इंजीनियर जो बन गया सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द, कौन था 1.5 करोड़ का इनामी नक्‍सली कमांडर बसवराज?
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 21 May 2025 3:41 PM

छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में 70 साल का एक दुबला-पतला लेकिन बेहद खतरनाक व्‍यक्ति मारा गया, नाम था नंवबल्ला केशव राव उर्फ बसवराज. जो आदमी AK-47 थामे जमीन पर सशस्त्र क्रांति का सपना देख रहा था, वो अब सिर्फ फाइलों में दर्ज एक इतिहास है. जंगलों में घूमता एक बुजुर्ग जो दिखने में साधारण था, लेकिन रणनीति में जनरल और विचारधारा में आग उगलता था, यही था नंवबल्ला केशव राव उर्फ बसवराज. एक समय का इंजीनियरिंग छात्र, जो बाद में भारत का सबसे वांछित नक्सली कमांडर बना.

बसवराज ने 1970 में घर छोड़ा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. श्रीलंका के तमिल टाइगर्स से युद्ध कौशल की ट्रेनिंग लेने वाला यह व्यक्ति माओवादी संगठन का सैन्य मास्टरमाइंड था. 2018 में जब उसे संगठन का महासचिव बनाया गया, तब वह देशभर के सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया. छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना और महाराष्ट्र के जंगलों में उसके नाम से ही दहशत फैलती थी. लेकिन 22 मई 2025 को नारायणपुर की मुठभेड़ में बसवराज की मौत ने भारत के नक्सल विरोधी अभियान को एक ऐतिहासिक जीत दिलाई.

वारंगल से बीटेक, फिर जंगलों में गुरिल्ला वॉर

बसवराज ने रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेज, वारंगल से बीटेक किया था. एक पढ़ा-लिखा युवा जो सिस्टम को भीतर से समझता था, लेकिन सिस्टम से ही नफरत कर बैठा. उसने 1970 में अपना घर छोड़ दिया. कहा जाता है, उसने श्रीलंका के तमिल टाइगर्स (LTTE) से गुरिल्ला युद्ध, एंबुश प्लानिंग और विस्फोटकों के उपयोग की ट्रेनिंग ली थी.

जब शब्दों से नहीं, गोलियों से बात होती थी

1980 में जब CPIML-पीपुल्स वॉर का गठन हुआ, बसवराज उसमें अहम भूमिका में था. 1992 में उसकी एंट्री पार्टी की सेंट्रल कमेटी में हुई. 2004 में CPI (माओवादी) का गठन हुआ और उसे सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का सचिव बना दिया गया. यही वो वक्त था जब उसने पूरे नक्सल नेटवर्क को एक सैन्य बल की तरह संगठित करना शुरू किया.

रणनीति और खूनखराबे का मास्टरमाइंड

कहा जाता है, बसवराज हमला नहीं करता था, युद्ध करता था. झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा हर जगह उसका नाम खौफ से लिया जाता था. माओवादी हमलों की योजना, लॉजिस्टिक्स, रूट मैप, एग्जिट प्लान सब बसवराज की फाइल में होता था.

गणपति का उत्तराधिकारी

2018 में उसने गणपति से माओवादी संगठन के महासचिव की कमान ली. लेकिन गणपति के उलट, बसवराज ज्यादा आक्रामक, ज्यादा संगठित और ज्यादा ‘मिलिटेंट’ था. उसका लक्ष्य था "भारत में New Democratic Revolution को पूरा करना."

डेढ़ करोड़ का इनामी और इंटेलिजेंस का सिरदर्द

सरकार ने उस पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया था. इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट में वह India’s most elusive Maoist leader कहकर दर्ज था. एक IPS अधिकारी के अनुसार, “वो सिर्फ जंगलों में नहीं, रणनीतिक फाइलों में भी छिपा रहता था.”

नारायणपुर मुठभेड़: अंत की शुरुआत

22 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में सुरक्षा बलों ने बड़ी मुठभेड़ में 27 नक्सलियों को ढेर कर दिया. इन्हीं में शामिल था बसवराज, एक पूरी पीढ़ी का क्रांतिकारी भगवान और राज्य के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द.

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