करवार बीच पर मिला चाइना मेड GPS ट्रैकर से लैस सीगल पक्षी, श्रीलंका से क्या है कनेक्शन?
कर्नाटक के करवार बीच पर GPS डिवाइस लगे एक सीगल को देखकर जासूसी की आशंका फैल गई, खासकर पास के INS कदंबा नौसैनिक अड्डे के कारण. हालांकि वन विभाग, पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने स्पष्ट किया कि यह पक्षी श्रीलंका की एक वैज्ञानिक माइग्रेशन स्टडी का हिस्सा है. ‘मेड इन चाइना’ ट्रैकर को लेकर फैली अफवाहें निराधार निकलीं. GPS डेटा से पता चला कि सीगल 10,000 किमी से ज्यादा उड़ान भर चुका था.
कर्नाटक के करवार बीच पर बुधवार को उस वक्त सनसनी फैल गई, जब लोगों ने एक समुद्री पक्षी को अजीब-सा डिवाइस लगे हुए देखा. देखते ही देखते अफवाहों का बाजार गर्म हो गया. क्या यह कोई जासूसी पक्षी है? क्या पास के नौसैनिक अड्डे पर नजर रखी जा रही है? सोशल मीडिया पर सवालों की बाढ़ आ गई.
हालांकि, कुछ ही घंटों में यह ‘जासूसी थ्योरी’ धराशायी हो गई. वन विभाग और सुरक्षा एजेंसियों ने साफ कर दिया कि यह कोई साजिश नहीं, बल्कि विज्ञान से जुड़ी एक सामान्य लेकिन रोचक कहानी है जो प्रवासी पक्षियों की हजारों किलोमीटर लंबी यात्रा से जुड़ी है.
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बीच पर दिखा थका हुआ सीगल
करवार बीच पर मौजूद स्थानीय लोगों ने देखा कि एक सीगल बेहद थका हुआ है और उसके शरीर पर छोटा सा उपकरण बंधा हुआ है. पक्षी के पंखों पर हल्की चोटें भी थीं. डिवाइस देखकर लोगों को शक हुआ और तुरंत वन विभाग को सूचना दी गई.
रेस्क्यू के बाद जांच, निकली असली वजह
वन विभाग की टीम ने सीगल को सुरक्षित रेस्क्यू कर अपने कार्यालय पहुंचाया. जांच में सामने आया कि यह कोई कैमरा या संदिग्ध उपकरण नहीं, बल्कि GPS ट्रैकर था, जिसे वैज्ञानिक अध्ययन के लिए लगाया गया था.
श्रीलंका से जुड़ा कनेक्शन, चीन सिर्फ मैन्युफैक्चरर
अधिकारियों ने श्रीलंका की वाइल्डलाइफ एंड नेचर प्रोटेक्शन सोसाइटी (WNPS) से संपर्क किया. संस्था ने पुष्टि की कि यह सीगल उनके दीर्घकालिक माइग्रेशन स्टडी प्रोजेक्ट का हिस्सा है. ट्रैकर भले ही ‘मेड इन चाइना’ था, लेकिन इसे सामान्य रिसर्च इक्विपमेंट बताया गया.
10 हजार किलोमीटर से ज्यादा की उड़ान का रिकॉर्ड
GPS डेटा से पता चला कि यह सीगल 10,000 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा कर चुका है. उसने आर्कटिक इलाकों समेत कई देशों और समुद्री रास्तों को पार किया, फिर भारत के करवार तट तक पहुंचा. यह जानकारी वैज्ञानिकों के लिए बेहद अहम मानी जा रही है.
INS कदंबा के चलते क्यों बढ़ा शक?
बीच के पास INS कदंबा नौसैनिक अड्डा होने के कारण कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में जासूसी की आशंका जताई गई. हालांकि अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि डिवाइस में कोई कैमरा या ऑडियो सिस्टम नहीं था और इसका सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है.
पुलिस और खुफिया एजेंसियों की पुष्टि
सूचना मिलने के बाद पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने भी मौके का निरीक्षण किया. सभी तथ्यों की जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह घटना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से पूरी तरह निरापद है.
अफवाहों से बचने की अपील
अधिकारियों ने लोगों से अपील की कि इस तरह के मामलों में अफवाह न फैलाएं. GPS टैगिंग दुनियाभर में पक्षियों की माइग्रेशन स्टडी का सामान्य तरीका है, जिससे जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता को समझने में मदद मिलती है. करवार बीच पर दिखा ‘GPS वाला सीगल’ कोई उड़ता जासूस नहीं, बल्कि विज्ञान का एक चलता-फिरता उदाहरण था जो यह दिखाता है कि प्रकृति को समझने के लिए इंसान कितनी दूर तक नजर रखता है, और कभी-कभी वही नजर गलतफहमियों की वजह भी बन जाती है.





