इमरजेंसी में कौन-कौन से हथियार खरीदेगी भारत सरकार, तीनों सेनाओं को कितना मिल सकता है बजट?
सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत ने अपने रक्षा ढांचे को और धारदार बनाने का फैसला किया है. सरकार ने थल, वायु और नौसेना को 40,000 करोड़ रुपये की आपातकालीन खरीद की अनुमति दी है. निगरानी ड्रोन, घातक मिसाइलें और वायु रक्षा प्रणाली जैसी प्रणाली जल्द ही भारतीय सेनाओं के हाथों में होंगी। ये कदम तेज़, निर्णायक जवाब की तैयारी है.

भारत ने सीमाओं पर बढ़ते खतरों के बीच अपनी सेनाओं को तत्काल शक्ति देने के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है. रक्षा अधिग्रहण परिषद ने तीनों सेनाओं को 40,000 करोड़ रुपये तक की इमरजेंसी खरीद की मंजूरी देकर संकेत दे दिया कि अब नौकरशाही प्रक्रियाएं रक्षा तैयारियों में बाधक नहीं बनेंगी. इस फैसले का मकसद ऑपरेशन सिंदूर जैसी तेज कार्रवाई की निरंतरता बनाए रखना और पाकिस्तान या किसी अन्य प्रतिद्वंद्वी की उकसावे वाली रणनीति को त्वरित जवाब देना है.
ईपी‑6 नामक इस ताज़ा आपातकालीन प्रावधान के तहत थल सेना, वायुसेना और नौसेना 300 करोड़ रुपये तक के हर सौदे को फास्ट ट्रैक मोड में अंतिम रूप दे सकेंगी. सामान्य टेंडर प्रक्रिया की जगह वे 40 दिन में कॉन्ट्रैक्ट साइन कर, एक साल में आपूर्ति हासिल कर लेंगी. इससे सेनाओं को न सिर्फ़ मारक ड्रोन और लंबी दूरी की मिसाइलें मिलेंगी, बल्कि गोला‑बारूद के भंडार में भी अहम बढ़ोतरी होगी.
कमिकेज़ ड्रोन की बढ़ेगी संख्या
सरकार का जोर निगरानी और घातक ड्रोन की नई नस्ल पर है. हेरॉन मार्क‑2 जैसे हाई‑एंड यूएवी पहले ही ऑपरेशन सिंदूर में बेहद कारगर साबित हुए थे. अब वही क्षमताएं बड़े पैमाने पर हासिल की जाएंगी ताकि रेगिस्तान से पहाड़ और तटवर्ती इलाकों तक चौबीसों घंटे इलेक्ट्रॉनिक नज़र रखी जा सके. साथ ही सेना कमिकेज़ ड्रोन और लोइटरिंग म्यूनिशन खरीदकर लक्ष्यों को रियल‑टाइम में नष्ट करने की क्षमता बढ़ाएगी.
ज्यादा से ज्यादा गोला‑बारूद की होगी खरीद
मौन लेकिन निर्णायक भूमिका में ब्रह्मोस और स्कैल्प जैसी क्रूज मिसाइलें पहले ही अग्रिम तैनाती में हैं. नई आपात शक्तियां इन प्रणालियों के अतिरिक्त बैटरियों और अत्याधुनिक गोला‑बारूद को जल्दी जुटाने का रास्ता खोलती हैं. इससे भारत की डिटेरेंस पुख्ता होगी और दुश्मन को पता रहेगा कि उसके हर दुस्साहस का जवाब तैयार है.
इमरजेंसी के लिए होता है बजट का 15 प्रतिशत
रक्षा मंत्रालय के नियमों के मुताबिक सेनाएं आधुनिकीकरण बजट का 15 प्रतिशत तक सीधे इमरजेंसी खरीद में खर्च कर सकती हैं. हालांकि यह राशि सिद्धांततः 24,000 करोड़ रुपये तक सीमित होती है, सरकार ने 40,000 करोड़ का लचीलापन देकर संकेत दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर धन सीमा आड़े नहीं आएगी. असल खर्च वही होगा जिसे एक साल के भीतर मैदान में तैनात किया जा सके.
एडवांस टेक्नॉलजी से लैस होंगे जवान
डीएसी की हालिया बैठक में अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह कदम दीर्घकालिक योजनाओं का विकल्प नहीं बल्कि उनका पूरक है. मेक‑इन‑इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के तहत दीर्घकालिक प्रोजेक्ट चलते रहेंगे, किन्तु डिजिटल युद्धक्षेत्र की त्वरित मांग को ये इमरजेंसी शक्तियां ही पूरा करेंगी. नतीजा यह होगा कि भारत के सैनिक अगले कुछ महीनों में पहले से कहीं अधिक घातक और टेक्नॉलजी‑संचालित साधनों से लैस दिखाई देंगे.