बेशक सुप्रीम कोर्ट सबसे ऊपर है लेकिन... प्रोफेसर को ‘जेल’, मंत्री को 'SIT' पर सवाल करने वाले INSIDE STORY समझें
सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को जेल भेजे जाने के बाद सशर्त अंतरिम जमानत दी, जबकि MP मंत्री विजय शाह के विवादित बयान पर SIT जांच के आदेश दिए. ऐसे में सवाल उठता है कि जब देश में कानून सभी के लिए बराबर है तो फिर एक जैसे मामलों में दो तरह की कार्रवाई क्यों? दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज एसएन ढींगरा ने सुप्रीम कोर्ट की SIT में बाहरी अफसरों की शर्त पर सवाल उठाए.

“भारत में सुप्रीम कोर्ट सबसे ऊपर है. वह जो चाहे कर सकता है. उस पर भला कौन उंगली उठा सकता है? हां, जहां तक बात भारत में कानून की है. तो देश में कानून तो समान और मजबूत है. कानून को लागू करने-करवाने वाले इनसान एक जैसी सकारात्मक या बराबरी की सोच वाले नहीं हैं. तो ऐसे में अगर हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी (Ashoka University) के प्रोफेसर/एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद (Professor Ali Khan Mahmudabad) को जेल भेज दिया गया. हालांकि बुधवार को उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई लेकिन कई नसीहतों और हिदायतों के साथ.
ऐसे ही एक अन्य मामले में मध्य प्रदेश के बड़बोले मंत्री विजय शाह को, ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय थलसेना की कमाल कर डालने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिए गए (MP Minister Vijay Shah’s Controversial Statement on Colonel Sofia Qureshi) विवादित बयान पर, मामले की जांच के लिए विशेष जांच प्रकोष्ठ यानी एसआईटी (SIT) गठित करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कह दिया है कि राज्य सरकार (मध्य प्रदेश) एक महिला सहित जिन तीन पुलिस अफसरान को एसआईटी में शामिल करेगी, उन तीन में से कोई भी मध्य प्रदेश का मूल निवासी नहीं होना चाहिए. मेरे समझ में नहीं आता है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने यह बात क्यों कही है?”
उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज भी हैरान
स्टेट मिरर हिंदी से एक्सक्लूसिव बातचीत में यह तमाम बेबाक बातें कहीं है, दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवा-निवृत्त न्यायाधीश शिव नारायण ढींगरा ने. पूर्व जस्टिट एस एन ढींगरा 1984 सिख विरोधी दंगों के लिए गठित एसआईटी के प्रमुख भी रह चुके हैं. एक सवाल के जवाब में उन्होंने आगे कहा, “एसआईटी जब बन ही मध्य प्रदेश की उसी पुलिस के अफसरों की रही है, जिसके मंत्री विजय शाह (Madhya Pradesh Minister Vijay Shah) के खिलाफ जांच होनी है, तब फिर मेरी समझ में इस बात की कोई अहमियत ही नहीं रह जाती है कि, एसआईटी में शामिल सभी पुलिस अफसर मध्य-प्रदेश राज्य से बाहर के मूल-निवासी होने चाहिए.
“सुप्रीम-हिदायत” से कौन सा तीर चल गया?
अपनी बात पूरी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस शिव नारायण ढींगरा ने कहा, ''अरे भाई अपने ही मंत्री के खिलाफ जांच के लिए गठित एसआईटी में शामिल पुलिस अफसर तो, अपने ही राज्य (मध्य प्रदेश) के ही रहे न. इसमें कौन सा तीर मार दिया सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर कि, एसआईटी में शामिल मध्य प्रदेश राज्य पुलिस अफसरों में कोई भी, मध्य प्रदेश मूल का (मध्य प्रदेश का मूल निवासी) नहीं होगा? सुप्रीम कोर्ट के इस दिशा निर्देश से क्या फर्क पड़ जाएगा? एसआईटी में शामिल और वह विवादित मंत्री जिनके खिलाफ जांच के लिए एसआईटी गठित की गई है, रहे तो सबके सब एक ही मध्य प्रदेश प्रांत के ही न?”
मंत्री और प्रोफेसर में कुछ तो फर्क होगा ही न...
अपनी बात जारी रखते हुए जस्टिस एस एन ढींगरा कहते हैं कि, ‘सुप्रीम कोर्ट को बेशक असीमित ताकतें हासिल हैं. वह खुद को मानता भी सबसे ऊपर है. फिर भी जहां तक प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को जेल भेजने के बाद, सुप्रीम कोर्ट से ही बुधवार (21 मई 2025) के जमानत दे देने का हो. या फिर मध्य प्रदेश के बड़बोले मंत्री विजय के खिलाफ जांच के लिए एसआईटी के गठन की बात. दोनों ही मामले मेरी नजर में अलग-अलग हैं. मंत्री विजय शाह कोई छोटी-मोटी शख्शियत थोड़े ही न हैं. उनका सूबे की सरकार में अपना ओहरा-रसूख है. वह भला इतनी आसानी से कैसे गिरफ्तार करके जेल भेजे जा सकते हैं? दूसरे, मंत्री जी का प्रोफाइल भी प्रोफेसर से कहीं ज्यादा ऊंचा है. ऐसे में मंत्री के खिलाफ तो विशेष जांच प्रकोष्ठ सुप्रीम कोर्ट को गठित करना ही था. कोई बड़ी बात नहीं है कि, जब तक या जब एसआईटी की जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के पटल तक पहुंचे, तब तक मंत्री विजय शाह को जमानत ही न मिल जाए!’
मंत्री-प्रोफेसर के बीच फर्क की गहरी खाई
खबर लिखे जाने के बीच ही पता चला है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, कुछ दिन पहले ऑपरेशन सिंदूर, भारत और पाकिस्तान को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के मामले में गिरफ्तार करके जेल भेजे गए, अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर/एसोसिएट प्रोफसर अली खान महमूदाबाद को जमानत दे दी है. उधर स्टेट मिरर हिंदी के साथ अपनी बात जारी रखते हुए पूर्व जस्टिस एस एन ढींगरा कहते हैं, “मैंने जो मीडिया में देखा सुना है उसके अनुसार जेल भेजे गए और फिर जमानत पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा छोड़ दिए गए प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की जड़े पाकिस्तान से जुड़ी हैं.
प्रो. महमूदाबाद के जेल जाने की जड़ में PAK
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के दादा राजा महमूदाबाद भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की जड़ रहे जिन्ना के करीबी सहयोगी थे. पाकिस्तान को बनवाने में उन्होने जिन्ना का भरपूर सहयोग किया था. भारत-पाकिस्तान को टुकड़ों में बंटवाने के साथ राजा महमूदाबाद खुद भी पाकिस्तान में जाकर बस गए थे. जिससे उनकी भारत में मौजूद संपत्तियों को ‘शत्रु संपत्ति’ घोषित कर दिया गया. उस शुत्र-संपत्ति के लिए इन्हीं प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने भारत में कानून का सहारा लिया. तो कुछ वक्त के लिए उन्हें भारत में अपनी मां के साथ आकर बसने पर वह संपत्ति मिल गई.
प्रोफेसर एक फिर भारत-पाकिस्तान पर चेहरे 2 क्यों?
बाद में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो उसने शुत्र-संपत्ति की ह़कदारी को लेकर साल 2017 में पुरानी सरकार के फैसले को पलट दिया. यही वजह होगी कि जिसके विद्वेषवश प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के विचार, वक्तव्य और पाकिस्तान-समर्थक नैरेटिव सोशल मीडिया पर अक्सर उछाल मारते रहते हों. भारत में रहने-यहां का अन्न-दाना-नमक पानी खाने पीने के बाद भी, इनका पाकिस्तान के लिए दिल में उमड़ता-घुमड़ता प्रेम भी इन्हें जेल भिजवाने में इनके खिलाफ ही गया होगा.
नेता-मंत्री, प्रोफेसर “ऑपरेशन-सिंदूर” की ABCD से अनजान
इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी ने बात की 1974 बैच के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक पूर्व आईपीएस डॉ. विक्रम सिंह (Ex IPS Retired DG UP Police Dr Vikram Singh) से. उन्होंने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की तबाही और भारत की वाहवाही दुनिया में सबको नहीं पच पा रही है. ऑपरेशन सिंदूर जिन लोगों को नहीं पच पा रहा है उन्हीं में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर/एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद जैसे भी तमाम कथित बुद्धिजीवी भी शामिल हैं. या फिर समाजवादी पार्टी के और खुद को वरिष्ठ नेता कहलवाने में “स्व-संतुष्टि” का अनुभव करने वाले, राम गोपाल यादव भी कमोबेश इसी श्रेणी में आ खड़े हुए हैं.
बड़बोलों ने पाकिस्तान बार्डर ही नहीं देखा तो...
यह लोग ऑपरेशन सिंदूर की सफलता से ध्यान बंटाने के लिए हर गिरा हुआ काम करने पर उतारू हैं. इसमें मध्य प्रदेश के बड़बोले-बदजुबान मंत्री विजय शाह का भी नाम जुड़ गया है. इन सबको भला, ऑपरेशन सिंदूर की ‘आन-बान-शान-जान-जिंदगी’ रही भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह (Indian Air Force Wing Commander Vyomika Singh) या फिर, भारत की थलसेना की कर्नल सोफिया कुरैशी (Colonel Sophia Qureshi of the Indian Army) की शौर्य-गाथा कैसे पचेगी? क्योंकि प्रोफेसर साहब, राम गोपाल यादव या फिर मध्य प्रदेश के बदजुबान मंत्री विजय शाह तो, कभी भारत की ओर से हथियार लेकर क्या खाली हाथ भी, पाकिस्तान की सीमा तक नहीं पहुंच सके होंगे. तो ऐसे लोग घरों में बैठकर ‘टर्र-टर्र’ करने के सिवाए और क्या कर सकते हैं?”