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13 दिसंबर को संसद में क्या हो रहा था, जब पांच आतंकियों ने किया था हमला; कहानी 23 साल पहले हुए हमले की

2001 Parliament Attack: देश के संसद पर हमले की आज बरसी है. आज के ही दिन 13 दिसंबर 2001 को संसद पर पांच आतंकियों ने हमला करने का प्रयास किया था, लेकिन सुरक्षा बलों ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया. सभी आतंकी मौत के घाट उतार दिए गए. हालांकि, इस दौरान 9 लोगों की जान चली गई.

13 दिसंबर को संसद में क्या हो रहा था, जब पांच आतंकियों ने किया था हमला;  कहानी 23 साल पहले हुए हमले की
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2001 Parliament Attack: 13 दिसंबर 2001.. समय 11 बजकर 29 मिनट... संसद के गेट नंबर 11 पर एक सफेद एंबेसडर कार तेजी से उपराष्ट्रपति कृ्ष्णकांत शर्मा के काफिले की तरफ तेज गति से बढ़ रही थी. लोकसभा के सुरक्षा कर्मचारी जगदीश यादव भागते हुए नजर आए. वो लगातार कार को रुकने का इशारा कर रहे थे, लेकिन कार चालक लगातार तेज गति से चला आ रहा था. कार में 30 किलोग्राम आरडीएक्स और हैंडग्रेनेड थे.

जगदीश यादव को भागता देख उपराष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात ASI जीत राम, श्याम सिंह और नानक चंद भी कार को रोकने के लिए आगे बढ़े. कार चालक चार लोगों को अपनी तरफ आता देख गाड़ी को गेट नंबर एक की तरफ भगाने लगता है. वहीं पर उपराष्ट्रपति की कार खड़ी थी.

उपराष्ट्रपति की गाड़ी से टकराई कार

तेज रफ्तार की वजह से कार उपराष्ट्रपति की गाड़ी से टकरा जाती है. इसे चारों तरफ हड़कंप मच जाता है. कोई कुछ समझता उससे पहले ही कार से पांच आतंकी बाहर निकलते हैं. वे सभी हथियारों से लैस है. कार से निकलते ही पांचों ताबड़तोड़ फायरिंग करना शुरू कर देते हैं.

एके-47 से लैस थे पांचों आतंकी

पांचों आतंकी एके-47 से लैस थे. उनके पीठ और कंधे पर बैग थे. पहली बार संसद पर आतंकियों के कदम पड़ चुके थे. आतंकियों की गोली का पहला शिकार वे सुरक्षाकर्मी बने, जो उनकी तरफ आ रहे थे. चार सुरक्षाकर्मियों को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया. इसी दौरान एक धमाका होता है, जिससे चारों ओर हड़कंप मच जाता है और लोगों को समझ में आता जाता है कि देश की संसद पर आतंकी हमला हो चुका है.

पांचों आतंकी एंबसेडर कार के नजदीक से ही चारों ओर गोलियां बरसा रहे थे. वे अब गेट नंबर 11 की तरफ जा रहे थे. यह देख सुरक्षाकर्मी, पुलिस और सीआरपीएफ के जवान उन्हें रोकने के लिए आगे बढ़ते हैं. दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो जाती है.

गोलीबारी के समय 100 मीटर की दूरी पर थे लालकृष्ण आडवाणी

गोलीबारी के दौरान करीब 100 मीटर की दूरी पर ही गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी मौजूद थे. उन्हें भी पता चल चुका था कि संसद पर हमला हो चुका है. वे फौरन आडवाणी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस समेत वरिष्ठ मंत्रियों को सुरक्षित सदन के अंदर ले गए. इसके साथ ही, सदन के अंदर जाने वाले तमाम दरवाजों को बंद कर दिया गया.

पोजिशन बदलने लगते हैं आतंकी

दूसरी तरफ, सुरक्षाकर्मियों को अपनी तरफ आता देख पांचों आतंकी ने अपनी पोजिशन बदलने लगते हैं. एक आतंकी गोली चलाता हुआ गेट नंबर 1 की तरफ भागता है, जबकि बाकी चार गेट नंबर 12 की तरफ भागते हुए दिखाई देते हैं. वे किसी तरह संसद के अंदर जाना चाहते थे.

पांचों आतंकी जिस तरह गोलियां बरसाते हुए जा रहे थे, उससे यह साफ हो गया था कि उन्हें संसद में घुसने का दरवाजा नहीं पता है. इसी दौरान गेट नंबर 1 तरफ बढ़ रहा आतंकी गोलियां बरसाता हुआ संसद भवन के गलियारे में पहुंच गया. वहां से वह एक दरवाजे की तरफ बढ़ता है. इससे पहले कि वह गोली चलाता, सुरक्षाकर्मियों ने उसे गोली मार दी. हालांकि, वह अभी जिंदा था.

आतंकी ने खुद को उड़ाया

सुरक्षाकर्मी घायल आतंकी के पास जाने से डर रहे थे, क्योंकि उन्हें यह डर था कि कहीं यह खुद को उड़ा न ले... उनका यह डर सही साबित हुआ. जब आतंकी को लगा कि वह चारों तरफ से घिर गया है तो उसने खुद को उड़ा लिया. चार आतंकी अभी भी गोलियां बरसाते हुए आगे बढ़ रहे थे. उनके पास गोली, बम और ग्रेनेड पर्याप्त मात्रा में थे. घटना की जानकारी मिलने पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल भी संसद पहुंच चुकी थी. न्यूज चैनलों के जरिए यह खबर पूरे देश में फैल चुकी थी.

तीनों आतंकी भी मारे गए

चारों आतंकियों को अपने साथी की मौत की खबर पता चल गई थी. इस वजह से वे इधर-उधर छुपने के लिए स्थान को खोजने लगे. दूसरी तरफ, सुरक्षाकर्मी चारों आतंकियों को घेर चुके थे. इसी दौरान गेट नंबर पांच से एक आतंकी के और मरने की खबर सामने आई. तीन आतंकियों ने गेट नंबर 9 की तरफ बढ़ने की कोशिश की. इस दौरान तीनों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया.

हमले में 9 लोगों की हुई मौत

संसद पर हुए इस हमले में 9 लोगों की मौत हो गई. मरने वालों में छह पुलिसकर्मी, संसदीय सुरक्षा सेवा के दो जवान और एक माली शामिल हैं. इस हमले के पीछे पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा का हाथ सामने आया. हमले की जांच के बाद अफजल गुरु, शौकत हुसैन, एस.ए. आर गिलानी और नवजौत संधू को आरोपी बनाया गया. हालांकि, बाद में संधू को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया. उस पर आईपीसी की धारा 123 के तहत मुकदमा चला.

अफजल गुरु को मिली फांसी

नवजोत को पांच साल की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई गई. ट्रायल कोर्ट ने अन्य तीन आरोपों को मौत की सजा सुनाई. हालांकि, बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने एस.ए.आर गिलानी को बरी कर दिया. शौकत हुसैन की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. उसे रिहा होने की डेट से 9 महीने पहले ही छोड़ दिया गया. एक मात्र आरोपी अफजल गुरु को फांसी की सजा हुई. उसे 9 फरवरी 2013 को फांसी पर लटकाया गया.

13 दिसंबर को संसद में क्या हो रहा था?

13 दिसंबर के दिन संसद में विपक्ष तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस का इस्तीफा मांग रहा था. उन पर 'ताबूत घोटाला' का आरोप था. दोनों सदन 11 बजकर 20 मिनट पर स्थगित कर दिया गया था. सांसद या तो संसद से निकल चुके थे या फिर सेंट्रल हाल या लाइब्रेरी थे.

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