आफ्टर-आवर्स वर्क कॉल्स पर लगेगी लगाम! ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ बिल में क्या है खास, क्या कर्मचारियों को मिलेगी आजादी?
'Right to Disconnect' Bill : लोकसभा में सुप्रिया सूले द्वारा पेश किया गया ‘राइट टू डिसकनेक्ट बिल 2025’ कर्मचारियों को ऑफिस टाइम के बाद कॉल और ईमेल का जवाब देने के दबाव से मुक्त करने का प्रस्ताव रखता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बिल के तहत नियोक्ता संपर्क कर सकते हैं, लेकिन जवाब देना अनिवार्य नहीं होगा और मना करने पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकेगी. बिल का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य, डिजिटल डिटॉक्स और वर्क-लाइफ बैलेंस को मजबूत करना है.
'Right to Disconnect' Bill : “आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम और आठ घंटे अपने लिए” - 19वीं सदी के मज़दूर आंदोलन का यह नारा आधुनिक वर्क-लाइफ बैलेंस का आधार बना. आज भी दुनियाभर में स्टैंडर्ड वर्क शेड्यूल इसी विचार पर आधारित है. लेकिन बदलते डिजिटल वर्क कल्चर और 24×7 कनेक्टिविटी के दौर में कर्मचारियों के निजी समय में दखल बढ़ता जा रहा है.
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इस पृष्ठभूमि में लोकसभा में एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सूले द्वारा पेश किया गया ‘राइट टू डिसकनेक्ट बिल, 2025’ एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दे रहा है.
बिल का उद्देश्य - काम के बाद फोन और ईमेल लेने के लिए बाध्य न हों कर्मचारी
सुप्रिया सूले का प्राइवेट मेंबर्स बिल कहता है कि वर्क घंटों के बाद कर्मचारी को ऑफिस कॉल्स और ईमेल्स का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. बिल का मूल विचार है - “कर्मचारी के निजी और पेशेवर जीवन के बीच तनाव घटाना और मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखना.”
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बिल के अनुसार, अगर कोई कर्मचारी वर्क-आवर्स के बाहर कॉल या ईमेल का जवाब देने से मना करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती. नियोक्ता संपर्क कर सकते हैं, लेकिन कर्मचारी जवाब देने के लिए बाध्य नहीं. बिल में विश्व आर्थिक मंच (WEF) की रिपोर्ट का उल्लेख है, जिसमें बताया गया है कि चौबीसों घंटे उपलब्ध रहने की अपेक्षा से कर्मचारियों में नींद में कमी, तनाव, भावनात्मक थकान और “टेली-प्रेशर” बढ़ रहा है. लगातार नोटिफिकेशन चेक करने की आदत दिमाग पर अतिरिक्त बोझ डालती है, जिसे शोध में “इन्फो-ओबेसिटी” कहा गया है.
कौन-कौन से प्रावधान हैं बिल में?
प्रावधान | विवरण |
अधिकार | कर्मचारियों को वर्क-आवर्स के बाद कॉल/ईमेल ना लेने का अधिकार |
सज़ा/कार्रवाई | इस अधिकार का उपयोग करने पर कोई डिसिप्लिनरी ऐक्शन नहीं |
Employees’ Welfare Authority | कर्मचारियों और कंपनियों के बीच डिसकनेक्ट नीतियों का निर्धारण |
ओवरटाइम नियम | वर्क-आवर्स के बाद काम कराने पर सामान्य वेतन दर पर ओवरटाइम |
मानसिक स्वास्थ्य | डिजिटल डिटॉक्स और काउंसलिंग सेवाएं शुरू करने की सिफारिश |
पेनल्टी | नियम न मानने पर कंपनी को कर्मचारियों के कुल वेतन का 1% जुर्माना |
संसद में समानांतर पहल - शशि थरूर भी साथ
सुप्रिया सूले के साथ कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी Occupational Safety, Health and Working Conditions Code (Amendment) Bill, 2025 पेश किया, जिसमें काम के घंटे सीमित करने, राइट टू डिसकनेक्ट लागू करने और शिकायत निवारण व मानसिक-स्वास्थ्य सहायता प्रणाली स्थापित करने की मांग की गई है.
डिजिटल युग में वर्क-लाइफ असंतुलन की समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है. फ्रांस, पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया पहले ही Right to Disconnect Law लागू कर चुके हैं, जहां वर्क-आवर्स के बाद कर्मचारियों को कार्य सम्पर्क से मुक्त रहने का पूर्ण अधिकार है.
आगे की चुनौती - क्या बिल वास्तविकता बनेगा?
सवाल बड़ा है - क्या यह बिल कानून बन पाएगा? भारतीय संसदीय इतिहास बताता है कि प्राइवेट मेंबर्स बिल पास होना बेहद मुश्किल है. संसद में अब तक सिर्फ 14 प्राइवेट मेंबर्स बिल कानून बने हैं और आखिरी बार यह उपलब्धि 1970 में दर्ज की गई थी. फिर भी इस बार बहस बेहद अहम है, क्योंकि लंबी शिफ्टें, हाईब्रिड वर्किंग और लगातार डिजिटल मॉनिटरिंग कर्मचारियों की जिंदगी और मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डाल रहे हैं.
‘राइट टू डिसकनेक्ट’ पर बहस केवल कानून बनाने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि काम और जीवन के बीच खोते संतुलन को वापस लाने की लड़ाई है. अगर यह बिल आगे बढ़ता है तो भारत में ऑफिस संस्कृति के नए युग की शुरुआत हो सकती है - जहां कर्मचारी सिर्फ काम के दौरान कर्मचारी हों, और उसके बाद अपने समय के मालिक.





