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क्या है चिकन नेक, जिसका चीन उठा सकता है फायदा? नॉर्थ ईस्ट पर मंडरा रहा खतरा

चीन ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है. खासकर तिब्बत और भूटान के चुम्बी घाटी क्षेत्र में सैनिकों के बीच संघर्ष न केवल इस क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है, बल्कि ब्रिक्स की वैश्विक स्थिति को भी कमजोर कर सकता है.

क्या है चिकन नेक, जिसका चीन उठा सकता है फायदा? नॉर्थ ईस्ट पर मंडरा रहा खतरा
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 22 Dec 2024 3:18 PM IST

पुलिस के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी कि हाल ही में गिरफ्तार आतंकवादी संगठन अंसार-अल-इस्लाम बांग्लादेश के आठ संदिग्ध सदस्य 'चिकन नेक' को निशाना बनाने की योजना बना रहे थे. उन्होंने कहा कि वे सिलसिलेवार हमलों को अंजाम देकर और अस्थिरता फैलाकर सिलीगुड़ी कॉरिडोर में बड़े पैमाने पर अव्यवस्था पैदा करना चाहते थे. पश्चिम बंगाल पुलिस ने मुर्शिदाबाद जिले में गिरफ्तार किए गए आतंकवादी संगठन के दो संदिग्ध सदस्यों के पास से पेन ड्राइव और दस्तावेज बरामद किए.

यह गलियारा माल और लोगों के परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है. साथ ही भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जरूरी है. चीन ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है, खासकर तिब्बत और भूटान के चुम्बी घाटी क्षेत्र में; सशस्त्र संघर्ष न केवल इस क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है, बल्कि ब्रिक्स की वैश्विक स्थिति को भी कमजोर कर सकता है. अब सवाल यह बनता है कि आखिर चिकन नेक क्या है. बता दें कि 'चिकन नेक' पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ने वाला गलियारा है.

भारत और चीन के बीच तनाव के बीच भूमि की एक संकरी पट्टी को चिकन नेक कहा जाता है. भारत के लिए भेद्यता का बिंदु बनकर उभरती है. इस महत्वपूर्ण क्षेत्र पर विवाद न केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता को खतरे में डालता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक भू-राजनीति के लिए भी संभावित निहितार्थ हैं.

चिकन नेक क्या है?

यह एक संकरी पट्टी, जो 17 किलोमीटर चौड़ी है. यह एक बड़े क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ती है. बता दें कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर को चिकन नेक कहा जाता है. यह जगह भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है, जो भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्यों और देश के बाकी हिस्सों के बीच एकमात्र भूमि संपर्क है, जो 50 मिलियन से ज्यादा लोगों को जोड़े रखता है. इस जगह से जरूरी माल जाते हैं, जो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ रोजाना की जिंदगी को बनाए रखने का काम करते हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए है जरूरी

इस गलियारे के बिना पूर्वी भारत के प्रोडक्ट जैसे कि प्रसिद्ध दार्जिलिंग चाय और लकड़ी के व्यापार में परेशानी आएगी. लेकिन कमर्शियल इस्तेमाल से परे सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत की क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक महत्व रखता है. एक उदाहरण के जरिए इस बात को समझें. ऐसा लगता है जैसे किसी ने उनके सिर को लोहे की सलाखों के बीच फंसा दिया हो, जिससे वे किसी भी बाहरी खतरे के लिए पूरी तरह असुरक्षित हो जाएं और अपने शरीर के बाकी हिस्सों (भारत के पूर्वी हिस्से) से संपर्क खो दें. भारत सिलीगुड़ी कॉरिडोर को इसी तरह देखता है.

चीन उठा सकता है फायदा

जमीन की यह पट्टी नेपाल, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों से घिरी हुई है. साथ ही, उत्तर में सिर्फ 130 किमी दूर तिब्बत में चुम्बी घाटी है, जिस पर चीन का नियंत्रण है. तिब्बत से निकटता और क्षेत्र में चीन द्वारा सैन्य बुनियादी ढांचे के निरंतर निर्माण से क्षेत्र में तनाव बढ़ता है.

2020 में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प के बाद से तनाव और बढ़ गया है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर की संवेदनशीलता से अवगत भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत कर दी है.

सिलीगुड़ी कॉरिडोर में भारत के खिलाफ चीन क्या कर रहा है?

चीन ने पिछले कुछ सालों में सैन्य बुनियादी ढांचे जैसे कि सड़कें और एयर स्ट्रिप बनाकर और चुम्बी घाटी क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति बढ़ाकर सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले रणनीतिक कदम उठाए हैं. चीन स्पष्ट रूप से "चिकन नेक" के पास तेजी से लामबंदी करने की अपनी क्षमता को मजबूत कर रहा है.

जून 2020 में लद्दाख (हिमालय क्षेत्र में लेकिन सिलीगुड़ी कॉरिडोर से दूर) के विवादित क्षेत्र में गलवान घाटी में एक हिंसक झड़प ने दो एशियाई देशों के बीच बढ़ते तनाव को दिखाया था. इस घटना में कई भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवा दी.तब से दोनों देशों ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है, जो भारत और चीन के बीच वास्तविक सीमा है.

चीन और भारत के बीच युद्ध

चीन और भारत के बीच तनाव अभी नहीं बल्कि 20वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ था. 1962 में दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी मुद्दों पर युद्ध हुआ, जिसके चलते चीन ने भारत के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया था. खास तौर पर अक्साई चिन (चीन के कब्जे में लेकिन भारत द्वारा दावा) और अरुणाचल प्रदेश (भारत द्वारा नियंत्रित लेकिन चीन द्वारा तिब्बत के हिस्से के रूप में दावा) जैसे क्षेत्रों में तब से ही यह सीमा विवाद बना हुआ है.

इस इतिहास के कारण, इस क्षेत्र में चीनी गतिविधियों को भारत द्वारा ऐसे आंदोलनों के रूप में देखा जाता है जो चीन के एक लाभप्रद स्थिति को बनाए रखने के इरादे को दर्शाते हैं, जिससे भारत पर दबाव बढ़ता है.

नॉर्थ ईस्ट हो सकता है भारत से अलग

किसी भी समय केवल 130 किलोमीटर की चीनी सैन्य बढ़त गलियारे को पूरी तरह से काट सकती है, जिससे पूर्वोत्तर भारत देश के बाकी हिस्सों से अलग हो जाएगा. इससे न केवल वाणिज्य और लोगों का प्रवाह बाधित होगा, बल्कि लाखों भारतीयों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी.

ऐसे में भारत ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर में अपनी सुरक्षा को मजबूत किया है. नए सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है और क्षेत्र में गश्त और सैन्य अभ्यास तेज किए हैं. यह सुनिश्चित करने का एक प्रयास है कि संभावित वृद्धि के बावजूद भारत इस क्रॉसिंग की प्रभावी रूप से रक्षा कर सके.

भारत की है पूरी तैयारी

इसके अलावा, नए बंकर औक बख्तरबंद बनाए जा रहे हैं. हमलों को रोकने के लिए भूमि पर खनन किया जा रहा है और सैनिक नियमित रूप से सैन्य अभ्यास करते हैं. यह सब यह सुनिश्चित करने के लिए है कि यदि आवश्यक हो तो भारत किसी भी उकसावे का त्वरित जवाब दे सके.

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