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क्या है Defense Procurement Manual? युद्ध के मैदान में सेना को कैसे मिलेगी दुश्मनों पर अजेय बढ़त, 10 प्वाइंट

रक्षा मंत्रालय के अनुसार संशोधित डिफेंस प्रोक्योरमेंट मैन्युअल का मकसद सेना के लिए राजस्व खरीद प्रक्रिया में तेजी लाने, घरेलू उद्योग को सरल प्रक्रियाओं के तहत सक्षम बनाने, नवाचार को बढ़ावा देने और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना है. उद्योगों के सामने आने वाली कार्यशील पूंजी संबंधी समस्याओं को सहायक वित्तपोषण विकल्प प्रदान करना और गैर जरूरी जुर्माना में ढील देकर आसान बनाना है. इससे उद्योग, शिक्षा जगत और डीपीएसयू द्वारा अनुसंधान और विकास को कई प्रावधानों के माध्यम से बढ़ावा मिलेगा.

क्या है Defense Procurement Manual? युद्ध के मैदान में सेना को कैसे मिलेगी दुश्मनों पर अजेय बढ़त, 10 प्वाइंट
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( Image Source:  Meta AI )

Defence Procurement Rules 2025: रक्षा मंत्रालय में राजस्व खरीद प्रक्रिया को पहले से ज्यादा व्यवस्थित, सरल, असरदार और सहज बनाने के साथ सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिफेंस प्रोक्योरमेंट मैन्युअल 2025 को मंजूरी दे दी है. इससे सेना को रक्षा तैयारियों के मामले में दूसरे देशों की तुलना में अजेय बढ़त मिलेगी.इसे 2009 में आखिरी बार लागू किया गया था. यह नियमावली सशस्त्र बलों और अन्य हितधारकों के परामर्श से मंत्रालय में संशोधन के अधीन थी. रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार इस नए नियमावली का लक्ष्य राजस्व मद के तहत सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने में आत्मनिर्भर बनाना है. यह थल, वायु और नौसेना के बीच तालमेल को बढ़ावा देने और तत्काल निर्णय लेकर सेना की तैयारियों के स्तर को बनाए रखने में मदद करना है. यह सशस्त्र बलों को आवश्यक संसाधनों की समय पर और उचित लागत पर उपलब्धता सुनिश्चित करेगा.

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक रक्षा खरीद नियमावली (DPM) 2025 के अनुसार यह कोई ‘जादू की छड़ी’ न होकर, खरीद नियमन का ढांचा है जो तेजी, पारदर्शिता, स्वदेशी क्षमता, आपातकारक व्यवस्था और प्राइवेट-इंडस्ट्री को जोड़कर सेना के लिए मजबूत ऑपरेशनल श्रेष्ठता सुनिश्चित करने में बड़ा योगदान देना है. हाल के सुधारों और समीक्षा प्रयासों का मकसद यही है कि प्रक्रिया युद्ध-समीप परिस्थितियों में भी प्रतिस्पर्धात्मक और समयबद्ध रहे.

इसका उद्देश्य रक्षा विनिर्माण और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है. निजी कंपनियों, एमएसएमई, स्टार्ट-अप आदि के साथ-साथ रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू) की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रक्षा क्षेत्र में घरेलू बाजार की क्षमता, विशेषज्ञता और योग्यता का लाभ उठाना है.

क्या है Defence Procurement Manual?

Defence Procurement Manual (DPM) रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी नियमों-दिशानिर्देशों का वह सेट है जो सशस्त्र बलों और संबंधित विभागों के लिए रेवेन्यू (आम) और अन्य संबंधित खरीद प्रक्रियाओं, जिम्मेदारियों और वित्तीय शक्तियों को तय करता है. यह पूंजीगत खरीद के लिए जारी Defence Acquisition Procedure / DAP (या पहले DPP) के पूरक और सहायक नियमों के रूप में काम करता है. यानी DAP/DPP जहां बड़े हथियार-तंत्र व प्लेटफॉर्म के लिए दिशा निर्देश देता है, वही DPM छोटे-बड़े दैनिक खरीद के तौर तरीके तय करेगा.

1. तेज और प्राथमिकता वाली खरीद

2025 DPM (Ministry of Defence Defence Procurement Manual 2025) के अनुसार सेना के लिए छोटे-मिड-साइज उपकरणों, सेंसर्स, कम्युनिकेशन सामान और रसद-स्टॉक की खरीद में तेजी लाने में मदद मिलेगी.आगे चलकर फोर्स की तैयारी और रिप्लेसमेंट लेटलतीफी का शिकार नहीं होगा. साल 2023–24 में इंडियन आर्मी ने सैटेलाइट कम्युनिकेशन टर्मिनल और टेक्निकल ड्रोन को फास्ट-ट्रैक प्रोसेस के आधार पर ही खरीदा है.

2. रिस्क-आधारित निर्णय

DPM से संबंधित इमरजेंसी प्रावधानों से टकराव या ऑपरेशन के दौरान आवश्यक उपकरण या स्पेयर जल्दी खरीदे जा सकेंगे. यह प्रावधान त्रसंवेदनशील तैयारियों के लिहाज से निर्णायक है. साल 2020 में लद्दाख (एलएसी) के गलवान घाटी और अन्य क्षेत्रों में संघर्ष के दौरान सरकार ने सेना को 500 करोड़ रुपये तक की खरीददारी के लिए सेना को इमरजेंसी पावर दी थी. इसी के तहत स्पाइक एंटी-टैंक मिसाइल, स्वार्म ड्रोन और विंटर क्लोदिंग तुरंत खरीदी गई थी.

3. इंडिजेनाइजेशन

DPM के भीतर स्वदेशी आपूर्तिकर्ताओं (PSU/Private/MSME/startups) के लिए नीति-प्रोत्साहन और प्रायोरिटी क्लॉज से देश में क्षमताएं मजबूत होती हैं. घरेलू आपूर्ति-श्रृंखला से युद्धकाल में निरंतरता और कम निर्भरता विदेशी आपूर्ति पर बनी रहती हैं. साल 2024 में आर्मी ने स्वदेशी AK-203 असॉल्ट राइफल्स की पहली खेप अमेठी प्लांट से ली. यह मेक-इन-इंडिया को DPM/DAP ढाँचे में प्राथमिकता देने का सीधा नतीजा है.

4. प्रतिस्पर्धा और लागत-लाभ

पारदर्शी टेंडर और लागत-लाभ के तहत बेहतर तकनीक, सर्विस और प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों के रूप में आता है. इससे सेना अधिक उपकरण कम लागत पर लगातार रख सकती है. टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी कंपनियों से आर्मी को कम्युनिकेशन गियर प्रतिस्पर्धी बोली से मिला, जिससे लागत में 15 से 20 प्रतिशत तक की बचत हुई.

5. स्पेयर-पार्ट्स और लॉजिस्टिक्स-रीयल-टाइमिंग

DPM में रिपीट-ऑर्डर, ऑप्शन-क्लॉज व वारंटी लाइफ-साइकिल प्रावधान लॉजिस्टिक्स सुचारु रखते हैं. फ्रंटलाइन इकाइयों के पास समय पर स्पेयर पहुंचने से सेना की क्षमता बनी रहती है. 2024 में HAL ने सेना के ALH ध्रुव हेलीकॉप्टरों के लिए स्पेयर पार्ट्स की रिपीट-ऑर्डर डिलीवरी DPM के Option Clause के तहत समय पर की और इससे ऑपरेशन में कोई रुकावट नहीं आई.

6. रणनीतिक साझेदारियां और टेक-ट्रांसफर

कॉन्ट्रैक्ट क्लॉज की वजह से नई तकनीक को अपनाना और फील्ड-अपग्रेड करना आसान हो गया है. इससे युद्ध-क्षेत्र में तकनीकी बढ़त बनी रहती है. इजरायली हेरोन ड्रोन को 2024 में भारतीय सॉफ्टवेयर व सेंसर से अपग्रेड किया गया.

7. निजी उद्यम और नवाचार

DPM के सुधार पर जोर देने से निजी निर्माताओं/स्टार्टअप्स की भागीदारी बढ़ाने में मदद मिली है. अब छोटे, तेज नवाचार सामने आते हैं जो पारंपरिक प्लेटफॉर्म से अलग चुनौतियों का समाधान देते हैं. इसका लाभ उठाते हुए सेना ने 2023 में स्टार्टअप से इंडियन आर्मी ने स्वदेशी स्विच UAVs खरीदे. DPM के प्रावधानों से स्टार्टअप्स को भागीदारी का रास्ता खुला.

8. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और खरीद

रणनीतिक पार्टनरशिप और को-प्रोडक्शन क्लॉज अन्य देशों के साथ तकनीक साझा या स्थानीय उत्पादन शुरू करने में मदद करती हैं. इससे सैन्य सामानों की उपलब्धता बढ़ी और अपग्रेड वर्जन के हथियार सेना को मुहैया कराना संभव हो पाया है.

9. लागत-अनुमान और लॉन्ग-टर्म प्लानिंग

यह फोर्स को टिकाऊ सपोर्ट देता है, जिससे फैसिलिटी और ऑपरेशन-रेडीनेस बनी रहती है. रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद के साथ भारत ने 10 साल का लॉन्ग-टर्म स्पेयर सपोर्ट और सर्विसिंग पैकेज कॉन्ट्रैक्ट में शामिल किया. यह DPM/DAP के लॉन्ग-टर्म सपोर्ट सिद्धांत पर आधारित है.

10. सप्लायर-इकोसिस्टम और MSME समर्थन

छोटे व मध्यम स्तर के हथियार निर्माताओं को मजबूती मिलेगी. ऐसे उत्पादों की खरीद भी तेजी से बढ़ेगी. इससे तीनों सेना को स्थानीय इनोवेशन फीड-इन से फील्ड-लेवल एडवांटेज मिलेगा. डीपीएम के आधार पर डीपीएम चालू वित्त वर्ष के लिए मंत्रालय में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये मूल्य साजो सामान खरीदे जाएंगे. सेना के लिए इन तैयारियों से साफ है कि Defence Procurement Manual केवल "पेपरवर्क" नहीं बल्कि सेना की जमीन पर क्षमता और गति तय करने का टूल है.

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