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क्या हैं ‘पर्सनैलिटी राइट्स’? क्यों अक्षय कुमार और ऋतिक रोशन पहुंचे हाईकोर्ट, और इससे आम लोगों को क्या खतरा है?

डीपफेक वीडियो और AI से बन रही नकली पहचान के बढ़ते खतरे के बीच, अक्षय कुमार और ऋतिक रोशन ने अपने ‘पर्सनैलिटी राइट्स’ की सुरक्षा के लिए अदालत का रुख किया है. दोनों ने बिना अनुमति उनके नाम, चेहरा या आवाज़ के उपयोग पर रोक लगाने की मांग की है. भारत में इस अधिकार पर कोई विशेष कानून नहीं है, लेकिन अदालतें इसे निजता और पब्लिसिटी राइट्स के तहत मानती हैं.

क्या हैं ‘पर्सनैलिटी राइट्स’? क्यों अक्षय कुमार और ऋतिक रोशन पहुंचे हाईकोर्ट, और इससे आम लोगों को क्या खतरा है?
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 16 Oct 2025 11:17 AM

डिजिटल युग में अब सिर्फ खबरें या वीडियो ही नहीं, बल्कि पहचान भी फेक हो सकती है. सोशल मीडिया पर हर दिन ऐसे फर्जी वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें कोई नामी हस्ती किसी उत्पाद या योजना का प्रचार करती दिखती है - पर सच में वह वीडियो AI से बनाए गए डीपफेक (Deepfake) होते हैं. यही डिजिटल धोखाधड़ी अब इतनी बढ़ गई है कि बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार और ऋतिक रोशन ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है. दोनों ने अपने ‘पर्सनैलिटी राइट्स’ (Personality Rights) की सुरक्षा के लिए याचिका दायर की है ताकि कोई भी उनकी आवाज़, चेहरा, नाम या बोलने के अंदाज़ का गलत इस्तेमाल न कर सके.

यह मामला सिर्फ इन दोनों अभिनेताओं का नहीं, बल्कि हर आम नागरिक की डिजिटल पहचान और निजता से जुड़ा है. भारत में अभी तक पर्सनैलिटी राइट्स को लेकर कोई अलग कानून नहीं है, इसलिए कोर्ट ही इन अधिकारों की अंतिम सुरक्षा बन गया है. AI तकनीक ने किसी की आवाज़ और चेहरा कॉपी करना आसान बना दिया है - जिससे न केवल प्रतिष्ठा और करियर, बल्कि आम लोगों की डिजिटल सुरक्षा भी खतरे में है.

अक्षय और ऋतिक की यह कानूनी लड़ाई इस बात की चेतावनी है कि आने वाले समय में ‘फेक इमेज’ और ‘फेक रियलिटी’ के बीच की सीमा और भी धुंधली हो सकती है.

क्यों पहुंचे अक्षय कुमार और ऋतिक रोशन कोर्ट?

अक्षय कुमार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है जबकि ऋतिक रोशन ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. दोनों ने मांग की है कि उनकी छवि, आवाज़, चेहरे, नाम, बोलने का तरीका, या किसी भी व्यक्तिगत पहचान का बिना अनुमति किसी भी प्रकार से इस्तेमाल न किया जाए. ऋतिक रोशन ने अदालत से यह भी अपील की है कि उनके नाम या फोटो का उपयोग डीपफेक वीडियो, फर्जी ब्रांड प्रमोशन, नकली सोशल मीडिया अकाउंट्स या विज्ञापनों में रोक लगाई जाए.

इससे पहले भी कई हस्तियां जैसे ऐश्वर्या राय, अभिषेक बच्चन, आशा भोंसले, सुनील शेट्टी और करण जौहर कोर्ट में ऐसी ही सुरक्षा मांग चुके हैं. सुनील शेट्टी के मामले में तो अदालत ने यह भी कहा था कि उनकी पहचान का दुरुपयोग सम्‍मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन है.

आखिर क्या होते हैं ‘पर्सनैलिटी राइट्स’?

‘पर्सनैलिटी राइट्स’ यानी व्यक्ति की पहचान से जुड़े अधिकार - जैसे कि उनका नाम, चेहरा, आवाज़, हस्ताक्षर, बोलने का अंदाज़ या सार्वजनिक छवि. कानूनी तौर पर ये अधिकार व्यक्ति को यह तय करने का हक देते हैं कि उसकी पहचान का व्यावसायिक या प्रचारात्मक उपयोग कौन और कैसे कर सकता है. साधारण शब्दों में कहें तो, किसी की तस्वीर या आवाज़ से पैसा कमाने या प्रचार करने से पहले उसकी सहमति लेना अनिवार्य है. भारत में यह अधिकार किसी विशेष कानून में परिभाषित नहीं है, लेकिन अदालतें इसे “राइट टू प्राइवेसी” (गोपनीयता का अधिकार) और “राइट टू पब्लिसिटी” (लोक-छवि का अधिकार) के तहत मान्यता देती हैं.

AI और डीपफेक से क्यों बढ़ा खतरा

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की नई तकनीक ने किसी की आवाज़ या चेहरा कॉपी करना बेहद आसान बना दिया है. कुछ ही सेकंड में किसी व्यक्ति के चेहरे को किसी दूसरे वीडियो पर मर्ज कर असली जैसा दिखाया जा सकता है. इसी को कहते हैं डीपफेक (Deepfake) - जो दिखने में बिल्कुल असली लगता है लेकिन पूरी तरह नकली होता है.

डीपफेक से होने वाले खतरे कई तरह के हैं:

  • फर्जी विज्ञापन और स्टॉक मार्केट प्रमोशन
  • अश्लील या आपत्तिजनक वीडियो बनाना
  • किसी व्यक्ति की छवि खराब करना
  • चुनावों या जनमत को प्रभावित करना

हाल में अभिनेत्री रश्मिका मंदाना का डीपफेक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उनका चेहरा किसी दूसरी लड़की के शरीर पर लगाया गया था. जांच में वह वीडियो पूरी तरह नकली निकला.

कोर्ट क्यों है आख़िरी उम्मीद?

भारत में अभी तक ‘पर्सनैलिटी राइट्स’ या ‘डीपफेक कंटेंट’ को लेकर कोई अलग कानून नहीं है. ऐसे में सेलिब्रिटी अदालतों का सहारा लेते हैं ताकि उनके अधिकारों की सुरक्षा हो सके. दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले में सबसे आगे रहा है. अदालत ने कई बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को आदेश दिए हैं कि डीपफेक वीडियो या फर्जी अकाउंट्स को तुरंत हटाया जाए. कानूनी विशेषज्ञ मिमांसा अंबस्था के अनुसार, “क्योंकि भारत में पर्सनैलिटी राइट्स को कोई स्पष्ट वैधानिक सुरक्षा नहीं मिली है, इसलिए सेलिब्रिटीज़ कोर्ट का सहारा लेकर अपनी पहचान के वाणिज्यिक उपयोग पर नियंत्रण की मांग करते हैं.”

कौन से कानून देते हैं सुरक्षा

भारत में आईटी एक्ट (Information Technology Act, 2000) के तहत कई धाराएं डीपफेक या फर्जी कंटेंट पर लागू हो सकती हैं:

  • धारा 66C – पहचान की चोरी (Identity Theft)
  • धारा 66D – प्रतिरूपण (Impersonation)
  • धारा 66E – निजता का उल्लंघन (Privacy Violation)
  • धारा 67, 67A, 67B – अश्लील या यौन रूप से आपत्तिजनक कंटेंट का प्रकाशन

साथ ही, इंटरमीडियरी गाइडलाइंस 2021 के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को फर्जी या भ्रामक जानकारी मिलने पर निश्चित समय सीमा में उसे हटाना होता है. इसके अलावा, हाल ही में पारित Digital Personal Data Protection (DPDP) Act, 2023 में भी किसी व्यक्ति के डिजिटल डेटा का बिना अनुमति इस्तेमाल करने को कानूनी उल्लंघन माना गया है. हालांकि, असली अपराधियों की पहचान और सज़ा तय करना अभी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.

दुनिया क्या कर रही है?

कई देशों ने इस खतरे से निपटने के लिए विशेष कानून बनाए हैं. यूरोपियन यूनियन (EU) ने AI Act लाकर डीपफेक्स पर नियंत्रण की दिशा में कदम बढ़ाया है. अमेरिका में कई राज्यों ने डीपफेक पोर्नोग्राफी और फेक पॉलिटिकल कंटेंट पर सख्त कानून बनाए हैं. भारत में भी विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे ही एक समर्पित कानून की ज़रूरत है जो AI-जनित कंटेंट के दुरुपयोग को नियंत्रित कर सके.

क्या आम लोगों को भी खतरा है?

डीपफेक सिर्फ सेलिब्रिटीज़ के लिए नहीं, सामान्य लोगों के लिए भी खतरनाक है. आज हर कोई सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें, आवाज़ और निजी डेटा साझा करता है, जिनका इस्तेमाल कर कोई भी नकली वीडियो या आपत्तिजनक सामग्री तैयार कर सकता है. मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने भी चेतावनी दी है कि “टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव से महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा अब केवल भौतिक नहीं, डिजिटल दुनिया में भी चुनौती बन गई है.” ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर बुलिंग, और निजी तस्वीरों का दुरुपयोग जैसे मामलों में डीपफेक तकनीक ने खतरा और बढ़ा दिया है.

कैसे बचा जा सकता है?

  • ऑनलाइन डेटा सीमित रखें: अनजान वेबसाइट या ऐप्स को अपनी फोटो या वॉइस रिकॉर्डिंग देने से बचें.
  • फर्जी वीडियो रिपोर्ट करें: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ‘Report’ या ‘Flag’ का उपयोग करें.
  • टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन ऑन रखें: ताकि आपका अकाउंट सुरक्षित रहे.
  • कानूनी सहायता लें: यदि आपकी पहचान या तस्वीर का गलत उपयोग होता है तो साइबर सेल या पुलिस में शिकायत दर्ज कराएं.
  • AI साक्षरता बढ़ाएं: लोगों को यह समझना जरूरी है कि ऑनलाइन दिखने वाला हर वीडियो असली नहीं होता.

‘पर्सनैलिटी राइट्स’ सिर्फ सेलिब्रिटीज़ के नहीं, हर व्यक्ति के आत्मसम्मान और निजता के अधिकार से जुड़े हैं. AI और डीपफेक के इस दौर में किसी की आवाज़, चेहरा या छवि का गलत इस्तेमाल किसी की भी प्रतिष्ठा, करियर या सामाजिक जीवन को नुकसान पहुंचा सकता है. अक्षय कुमार और ऋतिक रोशन की अदालत में दायर याचिकाएं सिर्फ उनका व्यक्तिगत बचाव नहीं, बल्कि डिजिटल युग में निजता की सुरक्षा के लिए एक चेतावनी और पहल हैं.

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