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सरकार खामोश, सिस्टम ठप... बंगाल में ओल्ड-एज होम में रहने वाले वोटर जाएं तो जाएं कहां?

बंगाल के सैकड़ों ओल्ड-एज होम में रहने वाले बुजुर्ग इन दिनों गहरी चिंता में हैं. उम्र का आखिरी पड़ाव, कमज़ोर शरीर और सहारे की कमी, इन सबके बीच उनकी सबसे महत्वपूर्ण पहचान, वोटर होने का अधिकार, संकट में पड़ गया है. सरकार खामोश है, सिस्टम सुस्त, और स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) की प्रक्रिया उनसे कोसों दूर.

सरकार खामोश, सिस्टम ठप... बंगाल में ओल्ड-एज होम में रहने वाले वोटर जाएं तो जाएं कहां?
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( Image Source:  AI SORA )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 9 Dec 2025 12:46 PM IST

SIR In West Bengal: हावड़ा के एक छोटे से गांव में स्थित ओल्ड-एज होम की शांत दीवारों के भीतर इन दिनों एक अलग ही चिंता पसरी हुई है. यहां रहने वाली ऊषा पॉल और उनकी बहन माया दोनों सत्तर और सड़सठ साल की उम्र पार कर चुकीं. अपनी सबसे बड़ी पहचान मतदाता होने के भविष्य को लेकर बेचैन हैं.

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चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इन बहनों के मन में सवालों की कतार लगी है. क्या वे आगे भी वोटर बनी रहेंगी? क्या नए नियमों की जटिलता के बीच उनकी आवाज़ कहीं खो तो नहीं जाएगी?

दशकों से वोटर, फिर भी डर क्यों?

द टेलीग्राफ ऑनलाइन के अनुसार, ऊषा और माया का नाम 2002 से लेकर 2025 तक हर बार वोटर लिस्ट में दर्ज रहा. कॉलेज के दिनों से ऊषा कोलकाता में मतदान करती आई हैं. लेकिन 2021 में माता-पिता के गुजर जाने के बाद दोनों बहनों ने अपना बेहाला वाला घर बेच दिया और हावड़ा के जयपुर ब्लॉक के गांव खालना में स्थित आनंद आश्रम नामक ओल्ड-एज होम में रहने आ गईं. अब समस्या यह है कि वे जिस इलाके की सालों से वोटर थीं, वहां अब रहती ही नहीं. क्या नई जगह पर उनका नाम दर्ज होगा? क्या पुरानी जगह से बिना वेरिफिकेशन के उनका नाम हटा दिया जाएगा? वे पूछती हैं कि “क्या हम नागरिक नहीं? फिर इतनी मशक्कत क्यों?”

कम नेटवर्क, ऑनलाइन फॉर्म और अनिश्चितता

SIR शुरू होते ही आश्रम के 24 और बुजुर्गों की तरह दोनों बहनों ने भी फॉर्म भरने की प्रक्रिया शुरू की. लेकिन कम नेटवर्क वाले क्षेत्र से फॉर्म सबमिट करना किसी युद्ध से कम नहीं था. कई बार कोशिश करने के बाद एक दयालु व्यक्ति ने उनके फॉर्म ऑनलाइन अपलोड किए. पर सवाल वहीं का वहीं, क्या ऑनलाइन फॉर्म मान्य होंगे? क्या उनका नाम अंतिम सूची में रहेगा? इस पर ऊषा का कहना है कि अगर अधिकारी वेरिफिकेशन के लिए पुराने पते पर गए, तो हमें तो ढूंढ ही नहीं पाएंगे. तब क्या हमें ‘अनट्रेसएबल’ कहकर नाम हटा दिया जाएगा?

क्या वोट देने का अधिकार भी छिन जाएगा?

एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि अगर किसी ने शिकायत की, तो उन्हें कोलकाता में सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा. लेकिन 70 और 67 की उम्र में बीमारियों से जूझ रही ये बहनें कैसे जाएं? न पुराना घर, न रुकने की जगह, न पैसे, क्या ऐसे में न्याय मिल पाएगा?

सैकड़ों ओल्ड-एज होम और हज़ारों बुजुर्ग, क्या इनके लिए कोई व्यवस्था है?

पश्चिम बंगाल में सरकारी और गैर-सरकारी मिलाकर करीब 200 से ज्यादा ओल्ड-एज होम हैं, जिनमें हजारों बुजुर्ग रहते हैं. लेकिन इनमें से अधिकांश के पास न सही दस्तावेज हैं, न रिश्तेदारों का सहारा. क्या ऐसे लोगों को भी वही कठिन प्रक्रिया झेलनी होगी? खालना से 8 किमी दूर अमरागरी वृद्धाश्रम में रहने वाली 80 वर्षीय माया मजूमदार तो अब तक फॉर्म भी नहीं भर पाईं. वह पूछती हैं कि हम जैसे लोग अधिकारियों को कहां ढूंढें? हमारे पास फोन भी नहीं. क्या मेरी आखिरी इच्छा वोट देने की भी पूरी नहीं होगी?

क्या चुनाव आयोग इन तक पहुंचेगा?

चुनाव आयोग कहता है कि BLOs को ओल्ड-एज होम में जाकर फॉर्म भरवाने चाहिए, लेकिन कई जगह अब तक कोई नहीं पहुंचा. तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बुजुर्गों की इस आवाज़ तक सरकार और आयोग पहुंचेगा? क्या उनकी पहचान, उनका वोट देने का अधिकार सुरक्षित रहेगा? इन सवालों के जवाब उन्हें अब भी नहीं मिले और यही उनके मन की सबसे बड़ी बेचैनी है.

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