SIR पर उठते सवाल! EC ड्राफ्ट में था नागरिकता कानून, अंतिम आदेश में ‘अधूरा पैराग्राफ’; व्हाट्सऐप पर मिली मंज़ूरी
चुनावी मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर नया खुलासा हुआ है. The Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार, 24 जून को जारी आदेश के ड्राफ्ट में नागरिकता अधिनियम 1955 और 2004 संशोधन का स्पष्ट उल्लेख था, लेकिन अंतिम आदेश से यह हिस्सा हटा दिया गया. चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू ने प्रक्रिया में बुज़ुर्ग, बीमार, दिव्यांग और गरीब जैसे वास्तविक मतदाताओं को परेशान न करने की लिखित चेतावनी दी थी, जिसे अंतिम आदेश में शामिल तो किया गया, लेकिन “citizens” शब्द हटा दिया गया. आदेश और बदलाव पर अब तक EC की कोई टिप्पणी नहीं मिली है.
चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को देशभर में मतदाता सूची की Special Intensive Revision (SIR) शुरू करने के आदेश के बाद मामला लगातार राजनीतिक और कानूनी बहस का केंद्र बना हुआ है. शुरुआत में यह अभ्यास मात्र एक चुनावी प्रक्रिया की तरह दिखा, लेकिन अब दस्तावेज़ सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो रहा है कि आदेश जारी करने की प्रक्रिया के भीतर भी महत्वपूर्ण मतभेद और सावधानियां दर्ज की गई थीं.
द इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल के अनुसार, 24 जून को जिस दिन SIR आदेश जारी हुआ, उसी दिन आदेश के ड्राफ्ट संस्करण में चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू ने एक लिखित टिप्पणी दर्ज कर आयोग को सचेत किया था. संधू ने स्पष्ट शब्दों में लिखा था कि “वास्तविक मतदाता/नागरिकों, विशेषकर बुजुर्ग, बीमार, दिव्यांग, गरीब और अन्य वल्नरेबल समूहों को किसी भी तरह की परेशानी न हो और उन्हें पूरी सुविधा दी जाए.”
यह चेतावनी इसलिए अहम मानी जा रही है क्योंकि SIR के तहत सभी मौजूदा मतदाताओं को एन्यूमरेशन फॉर्म भरना अनिवार्य किया गया था और कुछ श्रेणियों के लोगों को पात्रता साबित करने के लिए अतिरिक्त दस्तावेज़ भी देने थे. ऐसे में आशंका थी कि लाखों लोगों को दस्तावेज़ी मुश्किलों, पहचान पुनर्पुष्टि और सत्यापन प्रक्रिया के कारण उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है.
ड्राफ्ट से Citizenship Act का लिंक हटाया गया
इंडियन एक्सप्रेस की जांच में यह भी सामने आया कि ड्राफ्ट आदेश में Citizenship Act को स्पष्ट रूप से SIR प्रक्रिया से जोड़ा गया था. ड्राफ्ट में लिखा था कि 2004 में नागरिकता कानून में हुए संशोधनों के बाद कभी देशभर में व्यापक मतदाता सूची पुनरीक्षण नहीं किया गया और इसलिए यह अभ्यास जरूरी है.
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लेकिन जब आदेश 24 जून की शाम को सार्वजनिक किया गया, तो Citizenship Act और 2004 संशोधन का पूरा संदर्भ हटा दिया गया. अंतिम आदेश में केवल यह कहा गया कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार मतदाता सूची में वही व्यक्ति शामिल हो सकता है जो भारतीय नागरिक हो. हैरानी की बात यह भी है कि पैराग्राफ 8 में यह पंक्ति अधूरी रह गई और वाक्य सेमीकोलन के बाद ही समाप्त हो जाता है. आज तक इस अधूरे पैराग्राफ पर चुनाव आयोग की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है.
ड्राफ्ट आदेश को उसी दिन व्हाट्सऐप पर मंज़ूरी दिए जाने की जानकारी भी सामने आई है, जो आदेश की तत्परता और जल्दबाज़ी के संकेत के रूप में देखा जा रहा है.
क्या संधू की चेतावनी शामिल की गई?
हालांकि Citizenship Act से जुड़ा पूरा हिस्सा अंतिम आदेश से हटा दिया गया, लेकिन संधू की दूसरी चेतावनी - यानी असली मतदाताओं को परेशान न किया जाए - अंतिम दस्तावेज़ में शामिल की गई. अंतर बस इतना रहा कि इसे बिना संधू का नाम दर्ज किए शामिल किया गया. अंतिम आदेश के पैराग्राफ 13 में लिखा गया, “एन्यूमरेशन फॉर्म 25 जुलाई, 2025 तक जमा न करने पर नाम मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जा सकेगा. हालांकि CEO/DEO/ERO/BLO को यह सुनिश्चित करना होगा कि वास्तविक मतदाताओं, विशेषकर बुजुर्ग, बीमार, PwD, गरीब और असुरक्षित समूहों को कोई उत्पीड़न न हो और संभव हद तक सहायता दी जाए, जिसमें स्वयंसेवकों की तैनाती भी शामिल है.”
दिलचस्प बात यह है कि संधू ने ड्राफ्ट नोट में “citizens” शब्द का प्रयोग किया था, लेकिन अंतिम आदेश में इसे हटा दिया गया. यानी अंतिम संस्करण में संदेश तो वही रखा गया, लेकिन शब्दों और संकेतों की मंशा बदली गयी.
EC की चुप्पी और आगे का रास्ता
इंडियन एक्सप्रेस ने 28 नवंबर को चुनाव आयोग के प्रवक्ता से संपर्क कर ड्राफ्ट और अंतिम दस्तावेज़ में Citizenship Act हटाने के कारण पर प्रतिक्रिया मांगी, लेकिन कोई टिप्पणी उपलब्ध नहीं कराई गई. इसी तरह, चुनाव आयुक्त संधू से भी उनके नोट और इसे अंतिम आदेश में संबोधित करने के तरीके पर टिप्पणी मांगी गई, लेकिन वह उपलब्ध नहीं हुए.
यह पूरा विवाद SIR प्रक्रिया के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव को एक बार फिर केंद्र में ला देता है. SIR सीधे देश की मतदाता सूची और नागरिकता की पुष्टि से जुड़ा है और ऐसे में आदेश के शब्द, प्रक्रियाएं और आशय केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संवेदनशीलता के प्रश्न बन जाते हैं.
फिलहाल, SIR प्रक्रिया जारी है, लेकिन आदेश में मौन बदलावों और आयोग के अंदर दर्ज नोट्स ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस अभ्यास के भीतर भी एक गहरी सावधानी और असहमति दर्ज थी, जिसका अर्थ सार्वजनिक चर्चा में अब सामने आ रहा है.





