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बाकी राज्यों की तरह असम में SIR क्यों नहीं? ECI के फैसले पर बड़ा सवाल, सुप्रीम कोर्ट में याचिका

असम में मतदाता सूची संशोधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा राज्य में केवल “स्पेशल रिवीजन” कराने के फैसले को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता मृणाल कुमार चौधरी ने तर्क दिया है कि बिहार और 12 अन्य राज्यों में “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” (SIR) लागू किया गया है, लेकिन असम में नहीं, जो भेदभावपूर्ण है. याचिका में अवैध प्रवासियों के मतदाता सूची में नाम जुड़ने और इससे राज्य के जनसांख्यिकीय और राजनीतिक संतुलन पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है.

बाकी राज्यों की तरह असम में SIR क्यों नहीं? ECI के फैसले पर बड़ा सवाल, सुप्रीम कोर्ट में याचिका
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 1 Dec 2025 10:28 AM IST

असम में मतदाता सूची संशोधन (SIR) को लेकर बड़ा कानूनी विवाद खड़ा हो गया है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनाव आयोग द्वारा राज्य में “स्पेशल रिवीजन” (Special Revision) कराने के फैसले को चुनौती दी गई है. याचिका में सवाल उठाया गया है कि जब बिहार और अन्य 12 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” (Special Intensive Revision - SIR) की प्रक्रिया चल रही है, तो असम में उसी अभ्यास को लागू क्यों नहीं किया जा रहा.

Bar & Bench की रिपोर्ट के मुताबिक, यह याचिका गुवाहाटी हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मृणाल कुमार चौधरी ने दायर की है, जिसमें 17 नवंबर के चुनाव आयोग के आदेश को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया गया है. याचिका के अनुसार, आयोग ने चूंकि खुद हलफनामे में SIR को देशभर में लागू करने की बात कही थी, इसलिए असम के लिए अलग दिशा-निर्देश जारी करना असंवैधानिक है.

'अपनी ही नीतियों का उल्लंघन कर रहा चुनाव आयोग'

याचिका में कहा गया है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गोवा, केरल, छत्तीसगढ़, अंडमान–निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और पुदुचेरी में SIR लागू किया गया है, लेकिन असम के लिए केवल “स्पेशल रिवीजन” का आदेश जारी कर चुनाव आयोग अपनी ही नीतियों का उल्लंघन कर रहा है. इससे असम के मतदाता सूची की सटीकता प्रभावित होगी और चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर असर पड़ेगा.

'लाखों अवैध प्रवासियों के नाम वोटर लिस्‍ट में'

याचिका में असम के पूर्व राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा की रिपोर्ट और तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता के बयानों का भी हवाला दिया गया है, जिनमें साफ तौर पर कहा गया था कि वर्ष 1997 में राज्य में 40 से 50 लाख अवैध प्रवासी रह रहे थे. याचिकाकर्ता का दावा है कि वर्तमान में भी लाखों अवैध प्रवासी असम में निवास कर रहे हैं और उनके नाम मतदाता सूची में शामिल किए जा चुके हैं. ऐसे में SIR के बिना आगामी विधानसभा चुनाव में उन्हें अनुचित रूप से मतदान का अधिकार मिल जाएगा, जो राज्य के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे पर दूरगामी असर डालेगा.

सुप्रीम कोर्ट खुद अवैध प्रवासन पर जता चुका है चिंता

याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट स्वयं अवैध प्रवासन से उत्पन्न जनसांख्यिकीय खतरे पर चिंता जता चुका है - चाहे वह सरबानंद सोनोवाल I और II निर्णय के संदर्भ हों या नागरिकता कानून की धारा 6A से जुड़ी सुनवाई के दौरान की गईं टिप्पणियां. ऐसे में जब शीर्ष न्यायालय इस मुद्दे को लेकर सजग है, तब चुनाव आयोग द्वारा असम में SIR न कराना न्यायसंगत नहीं ठहरता.

आधार को पहचान पत्र न माना जाए

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की है कि चुनाव आयोग द्वारा केवल स्‍पेशल रिवीजन कराने के फैसले को रद्द किया जाए और असम में भी बिहार व अन्य राज्यों की तरह SIR अनिवार्य किया जाए. इसके अलावा, याचिका में यह भी मांग की गई है कि मतदाता सूची संशोधन के दौरान आधार कार्ड को पहचान प्रमाण या योग्यता प्रमाण के रूप में मान्यता न दी जाए, क्योंकि इसका कोई कानूनी आधार नहीं है.

याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा तैयार की गई है और अधिवक्ता अनासूया चौधरी के माध्यम से दायर की गई है. अब सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई यह तय करेगी कि असम में मतदाता सूची के संशोधन की प्रक्रिया देश के बाकी राज्यों जैसी होगी या वर्तमान ढांचा ही बरकरार रहेगा.

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