राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बाहर करने वाले कौन हैं शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद?
जोशीमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राहुल गांधी को मनुस्मृति पर टिप्पणी के चलते हिंदू धर्म से बाहर कर दिया है. उनका कहना है कि जो अपने धर्मग्रंथों में विश्वास नहीं रखता, वह उस धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता. यह कदम केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक बड़ा वैचारिक और राजनीतिक संकेत बनकर उभरा है, जो धर्म और राजनीति के बीच नए तनाव को दर्शाता है.

जोशीमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बाहर कर दिया है. मनुस्मृति पर राहुल गांधी की टिप्पणी को लेकर शंकराचार्य ने उन्हें हिंदू धर्म से बाहर कर दिया है. उनका तर्क है कि जो व्यक्ति अपने ही धर्मग्रंथ में विश्वास नहीं रखता, वह उस धर्म का अनुयायी नहीं हो सकता. इस विवाद ने अब एक गहरे राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष का रूप ले लिया है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का नाम अकसर धार्मिक विवादों में आता है, लेकिन उनकी भूमिका केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है. राम मंदिर की अधूरी प्राण प्रतिष्ठा से लेकर गाय और गंगा की रक्षा तक, उन्होंने ऐसे विषयों पर सवाल उठाए हैं जो सीधे सत्ता के केंद्र को चुनौती देते हैं. कई लोग उन्हें कांग्रेस समर्थक कहकर खारिज करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि वे धर्म की मर्यादा की रक्षा के लिए किसी भी राजनैतिक दल से टकरा सकते हैं.
छात्रसंघ से संन्यास तक का सफर
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से निकले उमाशंकर उपाध्याय ने छात्र राजनीति से शुरुआत की थी और वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां हासिल कीं. 1994 में छात्रसंघ चुनाव जीतने वाले उमाशंकर बाद में ब्रह्मचारी राम चैतन्य और फिर स्वामी स्वरूपानंद के सानिध्य में आए, जहां उन्हें 2003 में सन्यास दीक्षा मिली और नाम मिला अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती. यह सफर केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि बौद्धिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से भी जुड़ा रहा है.
आंदोलनधर्मी साधु का चेहरा
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान मंदिरों को गिराए जाने के खिलाफ उनका मुखर विरोध हो या गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने के लिए किया गया अनशन. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद एक 'आंदोलनधर्मी साधु' के रूप में सामने आते हैं. 2008 में लंबे समय तक अनशन कर गंगा के सवाल को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना देना और फिर अपने गुरु के आदेश पर उसे तोड़ना, उनकी धार्मिक मर्यादा और लोकतांत्रिक सोच दोनों को दर्शाता है.
वाराणसी में मोदी के सामने चुनौती
2019 में जब उन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से उम्मीदवार उतारने की कोशिश की और 2024 में ‘गऊ गठबंधन’ के तहत प्रत्याशी खड़ा किया, तो यह धर्म और सत्ता के टकराव का स्पष्ट संकेत था. वह न केवल धार्मिक मंचों से बल्कि राजनीतिक अखाड़े से भी संदेश देना चाहते हैं कि सनातन धर्म केवल परंपरा नहीं, बल्कि जागरूक हस्तक्षेप की भी मांग करता है. उनकी उपस्थिति एक ऐसे धार्मिक नेता की है जो परंपरा और परिवर्तन दोनों का समन्वय चाहता है.
गुरु थे स्वतंत्रता सेनानी
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती न केवल शंकराचार्य थे बल्कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे हैं. इस परंपरा से निकले अविमुक्तेश्वरानंद ने आध्यात्मिक मार्ग को सिर्फ ध्यान-ध्यान तक सीमित नहीं रखा, बल्कि सामाजिक न्याय और धर्म के भीतर सुधार की मांगों को अपनी आवाज़ बनाया. 2022 में ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य बनाए जाने के बाद से वे लगातार सक्रिय हैं और उनका एजेंडा पारंपरिक धर्म की पुनर्परिभाषा और सामाजिक प्रश्नों पर आधारित रहा है.