Indira’s Emergency 1975: काले 'आपातकाल' को इंदिरा गांधी के बेकाबू ‘बछड़े’ ने और 'कुरूप' बनाया - केसी त्यागी Exclusive
पूर्व सांसद केसी त्यागी ने 1975 के आपातकाल को इंदिरा गांधी का गुस्से में लिया गया आत्मघाती फैसला बताया है. उनका कहना है कि जय प्रकाश नारायण के बढ़ते प्रभाव से डरकर इंदिरा ने सत्ता बचाने के लिए आपातकाल थोपा, पर अंत में वही उनके पतन का कारण बना. संजय गांधी और वंशी लाल जैसे 'बिगड़ैल बछड़े' ने हालात और खराब कर दिए. प्रेस पर पाबंदी, नेताओं की गिरफ्तारी और जनता का गुस्सा - सबने कांग्रेस की जड़ें हिला दीं.

“इंदिरा गांधी को जैसे ही लगा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से आने वाला फैसला उनके खिलाफ जा सकता है. तो इतना सोचने भर से ही वे बौखला चुकी थीं. अगर वह फैसला आने तक तसल्ली रखतीं तो संभव था कि समय के साथ कोई बेहतर रास्ता इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी को मिल जाता. लेकिन सत्ता का सिंहासन खिसकने की आशंका भर ने ही इंदिरा गांधी का दिमाग गरम कर दिया था. और गरम दिमाग यानी गुस्से में इंसान हो या जानवर, उल्टे ही काम करता है. वही इंदिरा गांधी और कांग्रेस ने किया. आपातकाल तो दरअसल ऐसा गढ्ढा था जिसे कांग्रेस ने खोदा तो अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को धक्का देने के इरादे से था. मगर हुआ उल्टा कि देश में आपातकाल लगाने के चलते उस अपने द्वारा दूसरों को खोदे गए गडढे में इंदिरा गांधी अपनी पार्टी को लेकर खुद ही कूद गईं.”
यह तमाम बेबाक बातें बयान की हैं देश की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी होने के बाद भी, बेहद सधी-संतुलित भाषा में बात करने के लिए राजनीतिक गलियारों में पहचाने जाने वाले पूर्व लोकसभा और राज्यसभा सांसद के सी त्यागी ने. केसी त्यागी स्टेट मिरर हिंदी से नई दिल्ली में विशेष बातचीत कर रहे थे. बातचीत का मुद्दा था 25 जून 1975 को भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश के बदन पर थोपा गया ‘आपातकाल’.
इंदिरा गांधी ने भी नहीं सोचा होगा कि...
“ऐसे बदनाम काले दाग आपातकाल को लगे हुए 25 जून 2025 को पचास साल पूरे हो चुके हैं. उस काले कांड के चश्मदीद रहकर, युवावस्था में ही महीनों मेरठ जेल में बंद रह चुके के सी त्यागी कहते हैं, “इंदिरा गांधी ने जब अपने आसपास मंडराती रहने वाली दगाबाज नेताओं की चांडाल चौकड़ी के इशारे पर, अपनी कुर्सी और अपनी खाल बचाने की बदनियती से आपातकाल लगाने की ठानी होगी. तब उन्होंने कल्पना नहीं की होगी कि यही आपातकाल उनकी पुश्तों को भी नहीं पनपने देगा.”
देख लो देश में न कांग्रेस है न कांग्रेसी बचे
उस काले-मनहूस आपातकाल की यादें साझा करते हुए केसी त्यागी कहते हैं, “दरअसल उस दौर में हमारे मंझे हुए और बेहद शांत नेता जय प्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ा खतरा लगने लगे थे. इंदिरा जी और कांग्रेस पार्टी जय प्रकाश नारायण जी के नाम-काम और उनके साए से भी खौफजदा रहती थी. कांग्रेस और इंदिरा को लगता था कि अगर देश की राजनीति में जय प्रकाश नारायण जम गए तो फिर, भारत में इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी का कोई नाम भी लेना वाला नहीं होगा. आज देख लीजिए राहुल गांधी-प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी को. किस आलम में बैठे हैं संसद के भीतर मुंह छिपाए हुए. इससे साबित होता है कि बुजुर्गों का करा-धरा बच्चों को भी भुगतना पड़ता है.”
इंदिरा और कांग्रेस को इस बात का डर था
जय प्रकाश नारायण से कांग्रेस और इंदिरा गांधी किस कदर खौफजदा रहती थीं इसका उदाहरण देते हुए पूर्व दबंग और साफ-सुथरी छवि सांसद के सी त्यागी कहते हैं, “मई-जून 1975 में हमारे नेता जय प्रकाश नारायण को दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली करनी थी. भीड़ बेइन्तहा पहुंचने की सौ फीसदी उम्मीद थी. यह बात इंदिरा और कांग्रेस को भी पता चल गई. उन्हें लगा कि जय प्रकाश नारायण की रामलीला मैदान वाली जनसभा अगर कामयाब हो गई तो गजब हो जाएगा. पहले से ही जिस कांग्रेस पार्टी का भट्ठा बैठा पड़ा है. जय प्रकाश नारायण की रामलीला मैदान वाली जनसभा की सफलता तो, उस कांग्रेस और उन इंदिरा गांधी के ऊपर जलजला बनकर टूट पडेगी. लिहाजा जय प्रकाश नारायण को कोलकता से दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए, इंदिरा गांधी ने उधर से दिल्ली आने वाली सभी हवाई जहाज फ्लाइट्स रुकवा दीं. इसके बाद भी जयप्रकाश नारायण दिल्ली के रामलीला मैदान में पहुंचे और उस ऐतिहासिक भीड़ वाली जनसभा को संबोधित किया.”
इंदिरा पर जयप्रकाश, विपक्षी एकता भारी पड़ी
आखिर आयरन लेडी के नाम से दुनिया में पहचानी जाने वाली इंदिरा गांधी कमजोर कैसे पड़ गईं? आपातकाल के पचास साल पूरे होने पर स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से विशेष बातचीत करते हुए पूर्व सांसद के सी त्यागी बोले, “जय प्रकाश नारायण का जज्बा, विपक्ष की एकता और आंदोलन इंदिरा गांधी के कुकर्मों पर भारी पड़े. रही सही बाकी बची कसर इंदिरा गांधी के बिगड़ैल बछड़े यानी छोटे बेकाबू बेटे संजय गांधी ने मां इंदिरा गांधी के राजनीतिक ताबूत में अपने हाथों से कीलें ठोंक कर पूरी कर दी.”
संजय गांधी-वंशी लाल भी ले डूबे कांग्रेस को
एक सवाल के जवाब में पूर्व सांसद और महज 24-25 साल की युवावस्था में ही इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल में कई महीने मेरठ जेल में बंद करके रखे जा चुके केसी त्यागी कहते है, “कांग्रेस की लुटिया डुबोकर उसे इतिहास के पन्नों तक से गायब कराने में इंदिरा गांधी के कर्म-कुकर्मों का जो सहयोग रहा वह तो रहा ही. इसके अलावा उनके बिगड़ैल बछड़े यानी बेटे संजय गांधी व हरियाणा कांग्रेस की ठेकेदारी करने वाले चौधरी वंशी लाल ने, कांग्रेस का बेड़ा गर्क करने-कराने में दिल खोकर अपनी-अपनी बुद्धिहीनता-निजी-स्वार्थ-नीति और बाकी तमाम कर्म-कुकर्मों के जरिए काफी सहयोग किया था. कांग्रेस को डुबोने वाली इसी चौकड़ी के प्रमुख दो और भी ‘पासे’ थे ओम मेहता, आर के धवन.”
वंशी लाल हरियाणा में कांग्रेसियों का इलाज करते..
वंशी लाल ने कैसे संजय गांधी और इंदिरा गांधी के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी का बेड़ा गर्क किया? पूछने पर विस्तृत चर्चा के दौरान पूर्व सांसद के सी त्यागी कहते हैं, “वंशी लाल ने एक बार नहीं कई बार संजय गांधी और इंदिरा गांधी के सामने खुला प्रस्ताव रखा था कि वे मां-बेटा सभी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को वंशी लाल के हवाले कर दें. वंशी लाल इंदिरा और संजय से कहते थे कि मैं उन सब कांग्रेसी नेताओं का इलाज हरियाणा ले जाकर कर दूंगा. जिस कांग्रेस पार्टी में सोचिए वंशी लाल जैसे बड़बोले नेता अपने ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का इलाज हरियाणा ले जाकर करने पर आमादा हों, तो भला ऐसे वंशी लाल वाली कांग्रेस पार्टी, इंदिरा गांधी और संजय गांधी को विरोधी पार्टियां विरोधी दल के नेता कैसे आसानी से हजम हो सकते थे. हां, यह है कि वंशी लाल ने कांग्रेस और इंदिरा के साथ जो वफादारी निभाई उसका उन्हें कांग्रेस ने इनाम देकर ही तो देश का रक्षा मंत्री बनाया था.”
इसलिए प्रेस पर पाबंदी लगाई थी
देश में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने वाली यानी 25 जून 1975 की डरावनी यादों के फटे-पुराने- पीले पड़ चुके पन्नों को पलट कर पढ़ने की कोशिश करते हुए वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद के सी त्यागी कहते हैं, “उस रात सबसे पहले तो देश के अधिकांश हिस्सों की सबसे पहले बिजली काटी गई थी. 29 जून 1975 को कुलदीप नैय्यर के नेतृत्व में करीब 100 पत्रकार जुलूस के रूप में सड़कों पर निकले. तो उन पर पुलिस टूट पड़ी. कुछ पत्रकार भाग गए कुछ पकड़े गए. प्रेस पर प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था कि आपातकाल में बरपाए गए कहर किसी भी तरह से जनमानस तक न पहुंच सकें. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मिसेज गांधी और कांग्रेस पार्टी को कभी किसी की खुशी-शांति तो हजम ही नहीं हुई.”
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
“जब इंदिरा गांधी ने देश को आपातकाल के गहरे अंधेरे कुएं में धकेला तो मैं चौधरी चरण सिंह के साथ लोकदल में था. रामलीला मैदान में उस दौरान हुई ऑल पार्टी की जनसभा में मैं भी मंच पर ही था. जितनी भीड़ रामलीला मैदान के भीतर थी उससे ज्यादा बाहर भीड़ भरी हुई थी. उन दिनों मदन लाल खुराना (अब स्वर्गवासी) जनसंघ के नेता हुआ करते थे. वह उस विशाल जनसभा के संयोजक-संचालक थे. लोकदल नेता सतपाल मलिक और मैं मंच पर ही बैठे हुए थे. जैसे ही जय प्रकाश नारायण जी भाषण देने के लिए मंच पर खड़े हुए वैसे ही रामधारी सिंह दिनकर की कविता “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” काफी देर तक भीड़ में गूंजती रही. मिनट तक जय प्रकाश नारायण की उस ओजस्वी कविता का नारा भीड़ लगाती रही और जयप्रकाश नारायण जी जन-समूह के शांत होने पर बोलने का खड़े खड़े इंतजार करते रहे.” स्टेट मिरर हिंदी के साथ विशेष लंबी बातचीत के दौरान पूर्व लोकसभा और राज्यसभा सांसद के सी त्यागी (K C Tyagi Politician) बेबाकी से बयान करते हैं आपातकाल की खट्टी-मीठी यादें.
जेपी ने इंदिरा सरकार को ‘अवैध’ करार दिया
रामलीला मैदान की उस विशाल जनसभा में ही अपने संबोधन के दौरान जय प्रकाश नारायण ने घोषणा की थी कि, देश की जनता इंदिरा गांधी हुकूमत के किसी भी आदेश को मानने के लिए बाध्य नहीं है. क्योंकि इंदिरा गांधी की हुकूमत अवैध हो चुकी है. फिर चाहे वो सेना-पुलिस या सरकारी कर्मचारी कोई भी हो. देश की जनता ऐसी अवैध सरकार में किसी की बात नहीं मानेगी. उस घटना का जिक्र करते हुए केसी त्यागी कहते हैं कि, “मंच से जय प्रकाश नारायण जी के उस भाषण को संजय गांधी और कांग्रेस ने पब्लिक के बीच ऐसे ले जाकर परोसा जैसे कि, जेपी जनता को सेना, सरकार, पुलिस के खिलाफ विद्रोह के लिए भड़का रहे थे. आपातकाल को लगाने के पीछे इंदिरा गांधी और उनकी हुकूमत ने रामलीला मैदान की जनसभा में जय प्रकाश नारायण के उस भाषण को कुछ अंशों का भी बेजा इस्तेमाल किया गया था कि, आपातकाल इसलिए लगाना जरूरी है क्योंकि जेपी देश की जनता को सेना-पुलिस के खिलाफ भड़का रहे हैं.”
इंदिरा गांधी और जेपी की शांति वार्ता विफल रही
क्या आपातकाल को टाला नहीं जा सकता था, सभी राजनीतिक दलों की संयुक्त-शांति बैठक के जरिए? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में पूर्व सांसद केसी त्यागी कहते हैं, “हां, क्यों नहीं टल सकता था आपातकाल. जे पी तो कभी देश में आपातकाल की कल्पना ही नहीं कर सकते थे. उनकी तो हरसंभव कोशिश थी कि किसी तरह से राजनीतिक टकराव टले. चंद्रशेखर जी, इंदिरा गांधी और जेपी दोनों वरिष्ठ नेताओं के करीबी थे. उन्होंने दो बार जय प्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी की बैठक भी कराई. मगर इंदिरा और संजय गांधी के साथ बुरे साए की मानिंद भटकती रहने वाली उनकी चांडाल चौकड़ी को कौन समझाता और कैसे समझा पाता, जो इंदिरा गांधी और कांग्रेस का बेड़ा गर्क करने की कसम खाए बैठी थी.”