लाश की उंगलियां काटने वाले डाकू के सीने में धड़कता था चंबल की डांसर हसीना का दिल, जिसने फांसी चढ़ाया उसी अफसर को दे गया बेटा
सुल्ताना डाकू की कहानी भारतीय अपराध इतिहास की सबसे रहस्यमयी और विरोधाभासी दास्तानों में से एक है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जन्मा सुल्तान सिंह उर्फ सुल्ताना एक ऐसा डाकू था, जिसे अंग्रेज हुकूमत भी लंबे समय तक पकड़ नहीं पाई. वह लूट का माल गरीबों में बांटता था, इसलिए उसे भारतीय रॉबिनहुड कहा गया. लेकिन उसकी क्रूरता भी कम नहीं थी - हत्या के बाद लाशों की उंगलियां काटना उसकी सबसे खौफनाक पहचान थी.
अमूमन पुलिस और अपराधी का रिश्ता तुम डाल डाल हम पात पात वाला ही रहता है. साथ ही यह भी कहा जाता है कि खूंखार डाकुओं के सीने में मोहब्बत या उससे भरा दिल नहीं धड़कता है. डाकू क्रोधी, संहारी बेरहम होते हैं. जो सिर्फ और सिर्फ लूट पाट मारकाट यानी कत्ल-ए-आम में ही विश्वास करते हैं. इन तमाम कहावतों को दुनिया भर में कुख्यात और 100 साल के इतिहास में सबसे खूंखार रहे डाकू सुल्तान सिंह उर्फ सुल्ताना डाकू ने फरेब-झूठा करार दिया था.
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आज यहां जिक्र कर रहा हूं सुल्ताना डाकू का. उस सुल्ताना डाकू का जिसका जन्म 1890 के दशक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में बंजारा भांतू समुदाय में हुआ माना जाता रहा है. वही भांतू समुदाय जो आज भी सड़क किनारे डेरा डालकर जिंदगी बसर कर रहा है. और खुद को वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का वंशज बताते हैं. जिक्र उसी सुल्ताना डाकू का जिसे दबोचने में भारत में शासन करने वाली ब्रिटिश हुकूमत भी नाकाम हो चुकी थी.
डाकू या दानवीर
जिक्र उसी सुल्ताना डाकू का जिसे गिरफ्तार करने के लिए ब्रिटेन से फ्रेडी यंग नाम के उस जमाने के सबसे तजुर्बेकार युवा पुलिस अफसर को इंग्लैंड से भारत बुलाया गया था. आज के धाकड़ में जिक्र कर रहा हूं उसी खौफनाक और पुलिस व कानून की नजर में बेरहम खूंखार मोस्ट वॉन्टेड सुल्ताना डाकू का, जो डकैतियों में हाथ आए लूट के पूरे माल को जस का तस बांट देता था गरीबों और जरूरतमंदों में.
ब्रिटिश पुलिस अफसर फ्रेडी यंग
अब से करीब 98 साल पहले इंग्लैंड से सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए भारत बुलाए गए ब्रिटिश पुलिस अफसर फ्रेडी यंग ने 23 जून 1923 को जिंदा दबोच भी लिया. जिसे बाद में 7 जुलाई 1924 को यानी अब से करीब 100 साल पहले, कुछ लोगों के मुताबिक आज के उत्तराखंड की हल्द्वानी जेल में और कुछ लोगों के मुताबिक आगरा सेंट्रल जेल के फांसी घर में टांग दिया गया था.
हिंदू था या मुस्लिम नहीं पता
यहां जिक्र कर रहा हूं उस जमाने के रॉबिनहुड समझे जाने वाले डाकू सुल्तान सिंह उर्फ सुल्ताना का. उस सुल्ताना डाकू का जिक्र जिसके बारे में 100 सवा सौ साल बाद भी कोई यह पुष्ट रूप से नहीं कह सका है कि.. सुल्ताना मुस्लिम था या हिंदू. हालांकि कहीं-कहीं इतिहास के पन्नों में उसके बारे में यह जरूर पढ़ने को मिलता है कि उसने धर्म-परिवर्तन की खुलकर खिलाफत की थी. यह खिलाफत उसने हिंदू से मुस्लिम धर्म में परिवर्तन की करी थी या फिर मुस्लिमों का हिंदू धर्म परिवर्तन करने के लिए की थी. ऐसे और भी न मालूम कितने बे सिर पैर के सैकड़ों हजारों किस्से कहानियों से रहस्यमयी डाकू सुल्ताना का इतिहास पटा पड़ा है.
इसलिए रॉबिनहुड से तुलना
14वीं सदी के खतरनाक कैरेक्टर रॉबिनहुड से सुल्ताना डाकू की तुलना इसलिए भी हमेशा की जाती रही क्योंकि दोनों की जीवन शैली में कई समानताएं थीं. मसलन, जिस तरह रॉबिनहुड काउंटी नॉटिंघम शायर के शेरवुड के घने डरावने और अंधेरे जंगलों में रहता था. उसी तरह सुल्ताना डाकू भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर-मुरादाबा रामपुर के ऐसे घने जंगलों के बीच छिप कर रहता था, जिन जंगलों में सूरज की रोशनी तक देखने को नसीब नहीं होती थी. जिन जंगलों में सिर्फ और सिर्फ खतरनाक सांप बिच्छू जंगली जानवर रहते थे. उन जंगलों के चप्पे चप्पे से सुल्ताना डाकू वाकिफ था. ऐसे जैसे मानो वे घने डरावने अंधेरे जंगल, जंगल न होकर कोई इंसानी आबादी वाले शहर कस्बा हों. जिन जंगलों में कोई भी सरकारी एजेंसी तमाम लाव-लश्कर संग भी जाने की हिम्मत कभी नही जुटा पाती थी.
इसलिए खूंखार हुआ था रॉबिनहुड
जिस तरह से 14वीं सदी के बदनाम नाम रॉबिन हुड की जमीन उस जमाने में नॉटिघंम के कुख्यात शेरिफ ने जबरिया छीन ली थी... जिसकी वजह से रॉबिनहुड खूंखार डाकू बन गया. उसी तरह की कुछ कहानी सुल्ताना डाकू की भी सुनने में अक्सर आती रही है. ऐसे खतरनाक डाकू सुल्ताना की जिंदगी के पीले पड़ चुके पन्नों को बड़ी ही हिफाजत के साथ पलटने पर उन्हें पढ़ते वक्त जो कुछ लिखा नजर आता है. वह बेहद चौंकाने वाला है. मसलन, भले ही उसे अंतिम बार गिरफ्तार करने के लिए क्यों न ब्रिटिश हुकूमत ने इंग्लैंड के तजुर्बेकार पुलिस अफसर फ्रेडी यंग को बुलवाया गया था. उनके द्वारा पकड़े जाने के बाद ही सुल्ताना डाकू को सजा ए मौत यानी फांसी के तख्ते पर भी चढ़ाया गया था.
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ऐसा भी ईमानदार पुलिस अफसर
इससे पहले लेकिन तब ब्रिटिश काल में एक भारतीय पुलिस अफसर जफर उमर ने भी इस कदर के खूंखार या कहिए रहस्यमयी सुल्ताना डाकू जिंदा दबोचा था. जिसके बदले में जफर उमर को अंग्रेज हुकूमत की ओर से 5 हजार रुपए का इनाम दिया गया था. उस जमाने में बहुत मोटी समझी जाने वाली वह पांच हजार की इनामी राशि जफर उमर ने गरीबों और अपने मातहत पुलिस वालों में बांट दी थी. उस वक्त और जीवन में पहली बार गिरफ्तारी पर सुल्ताना डाकू को चार साल की सजा हुई. जिसे काटकर वह जेल से बाहर आने पर और भी ज्यादा खूंखार होकर दुबारा लूटपाट करने में जुट गया.
कौन हैं हमीदा अख्तर हुसैन राय पुरी
ब्रिटिश हुकूमत के कामयाब भारतीय पुलिस अफसर और उर्दू के पहले जासूसी उपन्यासकार उमर जफर की बेटी हमीदा अख्तर हुसैन राय पुरी अपनी किताब “नायाब हैं हम” में, अपने पुलिस अफसर पिता की इन तमाम हैरान करने वाली जानकारियों के बारे में बेबाकी से लिखती भी हैं. जफर उमर द्वारा कालांतर में लिखे गए नॉवेल ‘नीली छतरी’ का मुख्य पात्र भी यही सुल्ताना डाकू ही था. सुल्ताना डाकू के बारे में कहीं-कहीं दुनिया के मशहूर अंग्रेज शिकारी जिम कार्बेट द्वारा भी लिखा हुआ पढ़ने को मिलता है.
डकैती डालने से पहले लिखित पूर्व सूचना
ऐसा सुल्ताना डाकू जिसकी गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने अब से 100 साल पहले इंग्लैंड से कोई तेज तर्रार पुलिस अफसर भारत बुलवाया हो, उसकी खासियतों से इतिहास भरा पड़ा है. मसलन सुल्ताना डाकू जब भी कहीं और जहां भी डाका डालने जाता था. तो चिट्ठी लिखकर पहले उस घर या उस जगह वालों को पूर्व लिखित सूचना भेजता था कि, सुल्ताना डाकू और उसका गिरोह किस तारीख को कितने बजे डाका डालने पहुंचेंगे. इसके बाद भी मगर सुल्ताना के खौफ का ही कमाल था कि जिसके यहां डकैती पड़नी होती थी वह पुलिस को कोई सूचना नहीं देता. पीड़ित को सुल्ताना के हाथों लुटना मंजूर था. मगर पुलिस को सुल्ताना के अपने यहां आकर डकैती डालकर अपनी अकाल मौत सुल्ताना के हाथों बुलवाना कतई मंजूर नहीं था.
खून-खराबे से हमेशा बचता था
क्योंकि सुल्ताना के बारे में यह भी मशहूर था कि जहां से उसे लूट का माल आसानी से मिल जाता था. वहां वह कोई खून-खराबा नहीं करता था. विरोध किए जाने पर सुल्ताना डाकू और उसके साथी इस कदर की मौत देते थे जिसे देखकर पुलिस भी कांप जाती थी. पलक झपकते ही भेष बदलकर पुलिस और पुलिस के मुखबिरों को चकमा देने में माहिर सुल्ताना डाकू की एक और रूह कंपा देने वाली आदत थी कि, वह जिसका या जिनका भी कत्ल करता उन लाशों के एक हाथ की तीन उंगलियां जरूर काटकर साथ ले जाता था. इसके पीछे क्या टोटका या वजह रही यह राज सुल्ताना की मौत के साथ ही अब से सौ साल पहले दफन हो चुका है.
जिसने फांसी चढ़ाया उसी को दे दिया बेटा
भले ही सुल्ताना डाकू को अंग्रेज पुलिस अफसर फ्रेडी यंग ने ही भारत आकर क्यों न गिरफ्तार किया हो, मगर सुल्ताना डाकू को फांसी के फंदे पर लटकाए जाने के वक्त जब उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई, तो सुल्ताना डाकू ने जेल में मौजूद अपने 9-10 साल के इकलौते मासूम बेटे का हाथ उन्हीं पुलिस अफसर फ्रेडी यंग के हाथों में दे दिया, यह कहते हुए कि “मेरा बेटा मेरी तरह अपराधी न बने. आप इसे जहां चाहो अपने साथ ले जाकर इसका भविष्य संवार देना.” और बाद में वही लड़का पुलिस अफसर फ्रेडी यंग के साथ रहकर विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करके जब भारत लौटा, तो वह भारतीय पुलिस में बड़ा अफसर बनकर रिटायर हुआ.
सुल्ताना डाकू के सीने में भी प्यार भरा दिल
सोचिए ऐसे सुल्ताना डाकू के सीने में भी प्यार भरा किसी महिला का दिल हर वक्त धड़का करता था. और वह थी चंबल की हसीना महिला डाकू पुतलीबाई. जिसके नाच-गाने और पायल की झंकार की मधुर आवाज में मदहोश या कहिए प्यार में पागल सुल्ताना डाकू अक्सर महीनों महीनों तक आपराधिक वारदातों को अंजाम देना ही भूल जाता था.
सुल्ताना का ‘खौफ’ सबने ‘कैश’ किया
जिक्र कर रहा था उसी खूंखार डाकू सुल्ताना का जिसके नाम और खौफ को दुनिया के तमाम फिल्म निर्माताओं और उपन्यासकारों ने अपना हीरो या पात्र बनाकर ‘कैश’ किया. फिर चाहे वह हॉलीवुड, बॉलीवुड या लॉलीवुड क्यों न रहा हो. जहां इसी सुल्ताना को केंद्र में रखकर 3 फिल्मों का निर्माण किया गया. हॉलीवुड में बनी फिल्म ‘द लॉन्ग डेविल’ इसी सुल्ताना डाकू की कहानी बताई-मानी गई. जबकि पाकिस्तान में इसी सुल्ताना डाकू को केंद्र में रखकर साल 1975 में पंजाबी भाषा में फिल्म बनी थी. जिसमें सुल्ताना का किरदार कलाकार सुधीर ने अदा किया था. सुजीत सराफ द्वारा लिखित नॉवेल “द कन्फेशन ऑफ सुल्ताना डाकू” भी सुल्तान सिंह उर्फ सुल्ताना की ही जिंदगी पर आधारित माना गया.





