Swami Chakrapani: साधू के पास ‘धन’ शर्म की बात, मां-बाप फिर भी बच्चों को ‘प्रोडक्ट’ बना रहे हों तो ‘संत’ कैसे बनेंगे?
अखिल भारत हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी महाराज ने स्टेट मिरर हिंदी को दिए विशेष पॉडकास्ट में कहा कि धन साधु-संत के लिए सबसे बड़ा संकट है. उन्होंने बताया कि कैसे आजकल संत समाज धन, आश्रम और मठ की होड़ में फंस गया है. चक्रपाणी ने खुद की जमीन बेचकर राममंदिर के लिए समर्पित किया और खुद को 'शिष्य नहीं, सैनिक' बनाने वाला संत बताया.

‘साधु-संत-सन्यासी के लिए धन की क्या आवश्यकता है? धन तो विनाश-सर्वनाश का प्रमुख कारण है. साधु के पास आशीर्वाद और श्राप देने की ताकत होनी चाहिए. साधू-संत समाज के पास समस्या तब आती है जब वह ‘धन्नासेठ’ बनने के फेर में फंसता है. वरना साधु-संत को भला किसका डर और किस बात की चिंता? साधु-संत के धन होना स्वाभिमान-सम्मान की नहीं, शर्म की बात है. आज दुनिया-समाज बहुत बदल चुका है. अब तो मोटी कमाई के लिए मां-बाप खुद ही अपने बच्चे को ‘प्रोडक्ट’ बनाकर उन्हें बेचने पर तुले हैं. ऐसे में समाज को ‘साधु-संत’ सोचिए जरा कैसे मिल सकते हैं?’
यह तमाम दो टूक खरी-खरी बातें कही हैं अखिल भारत हिंदू महासभा (Akhil Bharat Hindu Mahasabha) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और, गौरक्षा-राममंदिर, राष्ट्र निर्माण के लिए अपनी जमीन-जायदाद तक बेच डालने वाले, 24 कैरेट के खांटी संत स्वामी चक्रपाणी महाराज (Swami Chakrapani Maharaj) ने. चक्रपाणी महाराज 20 अप्रैल 2025 को नई दिल्ली स्थित महासभा के मुख्यालय में स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर (क्राइम) से ‘पॉडकास्ट’ के लिए बात कर रहे थे. बातचीत के दौरान स्वामी जी ने माना कि, उनकी 50 साल की अवस्था में अब तक का यह पहला और ऐसा एक्सक्लूसिव इंटरव्यू है, जिसके बाद अब उनके पास बताने-छिपाने को कुछ भी बाकी नहीं बचा है.
जिंदगी में स्टेट मिरर से पूर्व कोई नहीं झांक सका
अब से पहले देश-दुनिया के किसी छोटे-बड़े चैनल ने, उनकी निजी-जिंदगी-अतीत और वर्तमान इतने अंदर तक पहुंच कर न तो झांकने की कोशिश की. न ही उन्होंने किसी को अपने अतीत और निहायत निजी जिंदगी में स्टेट मिरर हिंदी से पहले कभी किसी पत्रकार को, हर हद से पार जाकर निजी जिंदगी में झांकने देने की इजाजत दी. स्वामी चक्रपाणी महाराज खुद को बाल-ब्रह्मचारी-कुंआरा संत कहते हैं, जबकि इंटरनेट-गूगल का समुंदर, उन्हें लेकर उनके बीबी और दो-दो बच्चे होने की खबरों से अटा पड़ा है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘यह सब गूगल और पत्रकारों-इंटरनेट की दुनिया की देन है. आप खुद मेरा निवास स्थान, रिश्तेदारियां छान-खंगाल लीजिए, अगर स्टेट मिरर हिंदी को दुनिया में कहीं मेरी बीबी-बच्चे मिल जाएं.’
साधू-संत के लिए धन सबसे बड़ा संकट
आज के साधु-संतो सोने-चांदी-हीरे-जवाहरात से लदे रहते हैं. उनके बड़े-बड़े महल हैं. क्या ऐसे धन्नासेठ, साधु संत सन्यासी कहलाने के हकदार है? स्वामी चक्रपाणी महाराज बोले, “जिसका जितना बड़ा टैंट या तंबू होता है. उसी साधु संत के दरबार में जनमानस की उतनी ही ज्यादा भीड़ लगती है. मैंने तो कई मठों की मठाधीशी के भी प्रस्ताव छोड़ दिए. जो जमीन-जायदाद थी बेचकर रामलला के मुकदमें में होम कर दी. थोड़ी बहुत जो जमीन बची है उसे भी बेचने की कोशिश कर रहा हूं. एक कार जो खरीदी वो भी अखिल भारत हिंदू महासभा की राष्ट्रीय सचिव इंद्रेश जी के हवाले कर दी. साधु के लिए ‘धन’ उसकी संतई के ऊपर सबसे बड़े संकट कारण होता है. साधू जितना धन दौलत से दूर रहेगा, उतनी उसकी गरिमा बची रहेगी. चाहे आम-आदमी हो या फिर साधू-सन्यासी. जिसकी जेब धन से भरी होगी. संकट भी उसी के लिए सबसे पहले तैयार खड़े मिलेंगे.”
आश्रम, मठ, शिष्य बनाने का ‘रोगी’ नहीं हूं
हर साधु-संत-मठ के पास ‘चेलों-शिष्यों’ की भरमार है? जबकि आप कह रहे हैं कि संत का इससे कोई मतलब ही नहीं होना चाहिए? स्टेट मिरर द्वारा पूछने पर स्वामी चक्रपाणी महाराज बोले, “कौन क्या कर रहा है..मुझे इससे लेना-देना नहीं. मैं इस सबसे मगर दूर हूं. मैं शिष्य नहीं सैनिक बनाता हूं. जो मेरी सेवा नहीं बल्कि राष्ट्र सेवा के लिए तैयार रहें. मुझे आश्रम शिष्य, मठ बनाने का मैं रोगी नहीं हूं. मैं तो गौरक्षा, राममंदिर और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित था हूं और जीवन पर्यन्त रहूंगा.”
'बेचारी' ममता कुलकर्णी को मीडिया ने...
कई साल तक अबू सलेम जैसे खूंखार और भारत के मोस्ट वान्टेड अबू सलेम के साथ रह चुकी ममता कुलकर्णी को भी ‘मठाधीशी’ मिल गई? क्या यह साधू-संत की जमात को लिए शोभा देता है? जो कई मठों-आश्रमों के बीच बैठे-बिठाए ही सिर-फुटव्वल की वजह बन गईं? मठ और मठाधीशों के लिए क्या यह बदनामी का दाग नहीं है? स्वामी चक्रपाणी महाराज बोले, “ममता कुलकर्णी तो बिचारी हैं. महाकुंभ 2025 प्रयागराज में उनके संग तो कुछ बबाल कटा, उसके लिए काफी हद तक हिंदुस्तान का मीडिया-पत्रकार ज्यादा जिम्मेदार हैं. बिचारी ममता कुलकर्णी के मुद्दे को तो जबरिया ही उछाकर मीडिया ने तिल का ताड़ बना डाला.”