Misha Agrawal Death: 'इंस्टाग्राम के फॉलोअर्स हुए कम तो दे दी जान', इंफ्लुएंसर की मौत पर आया तापसी पन्नू का रिएक्शन
23 वर्षीय सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर मिशा अग्रवाल की आत्महत्या ने डिजिटल दुनिया की कड़वी सच्चाई उजागर कर दी है. फॉलोअर्स घटने के डर से मिशा ने जान दे दी. इस घटना पर तापसी पन्नू ने भावुक प्रतिक्रिया दी कि एक दिन ये नंबर इंसान की जीने की चाहत को खत्म कर देंगे. उन्होंने वर्चुअल प्यार की भूख को असली रिश्तों के लिए खतरा बताया.

एक नंबर... एक लक्ष्य... और एक जान. सोशल मीडिया की चमक-दमक के पीछे छिपा अंधेरा तब और डरावना हो गया, जब 23 वर्षीय इन्फ्लुएंसर मिशा अग्रवाल ने खुदकुशी कर ली. वजह? कथित रूप से इंस्टाग्राम पर फॉलोअर्स की गिरती संख्या और इस डर ने कि उसका करियर अब खत्म हो जाएगा.
इस खबर से पूरा देश हिल गया है, और बॉलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू ने इसे लेकर बेहद भावुक प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने लिखा, "मैंने हमेशा इस डर को महसूस किया है कि एक दिन ये 'नंबर' जीने की चाहत को हरा देंगे. वर्चुअल प्यार की भूख इतनी बढ़ जाएगी कि इंसान अपने आस-पास मौजूद असली प्यार को देख नहीं पाएगा. ये लाइक्स और कमेंट्स की दुनिया डिग्री, हुनर और असली काबिलियत को पीछे छोड़ देगी. दिल तोड़ देने वाला है ये."
मिशा की दुनिया बस एक स्क्रीन पर सिमट गई थी
मिशा के परिवार ने जो बयान जारी किया है, वो रोंगटे खड़े कर देने वाला है. उसकी बहन ने लिखा, "मेरी छोटी बहन ने अपनी दुनिया इंस्टाग्राम और अपने फॉलोअर्स के इर्द-गिर्द बुन ली थी. उसका एकमात्र लक्ष्य था 1 मिलियन फॉलोअर्स तक पहुंचना. उसके फोन की स्क्रीन लॉक पर यही टारगेट लिखा था." लेकिन जब फॉलोअर्स गिरने लगे, तो उसका आत्मविश्वास भी टूटने लगा. वो गहरे डिप्रेशन में चली गई. उसके जीजा ने बताया, "वो अक्सर मुझे गले लगाकर रोती और कहती, 'जीजा, अगर मेरे फॉलोअर्स कम हो गए तो मैं क्या करूंगी? मेरा करियर तो खत्म हो जाएगा.'''
परिवार ने बहुत समझाया
परिवार उसे समझाता रहा कि इंस्टाग्राम सब कुछ नहीं है. उन्होंने उसे याद दिलाया कि वो LLB ग्रेजुएट है, PCSJ की तैयारी कर रही है, और एक दिन जज बन सकती है. लेकिन सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया ने उसकी हकीकत पर पर्दा डाल दिया. अब सवाल उठते हैं कि क्या इंस्टाग्राम सिर्फ एक ऐप है, या ज़िंदगी पर हावी हो चुकी लत? ये घटना सिर्फ एक मौत नहीं, बल्कि पूरी पीढ़ी को आईना दिखाने वाली त्रासदी है. क्या हम अपने बच्चों को डिजिटल सफलता की दौड़ में भावनात्मक रूप से अकेला छोड़ रहे हैं?