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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, वक्फ कानून की 5 साल वाली मुस्लिम शर्त पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की उस धारा पर रोक लगाई है, जिसमें वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को पांच साल तक ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ होना जरूरी बताया गया था. कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान तब तक लागू नहीं होगा जब तक राज्य सरकारें स्पष्ट नियम न बनाएं. यह आदेश धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जबकि पूरा कानून अभी लागू रहेगा.

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, वक्फ कानून की 5 साल वाली मुस्लिम शर्त पर लगाई रोक
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 15 Sept 2025 11:14 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की उस धारा पर रोक लगा दी है, जिसमें यह अनिवार्य किया गया था कि वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम पांच साल तक 'प्रैक्टिसिंग मुस्लिम' यानी इस्लाम का अनुयायी होना चाहिए. कोर्ट ने निर्देश दिया कि जब तक राज्य सरकारें इस बात के लिए स्पष्ट नियम न बना लें कि कोई व्यक्ति इस्लाम का प्रैक्टिसिंग मुस्लिम है या नहीं, तब तक यह प्रावधान लागू नहीं होगा.

यह मामला उस वक्फ कानून से जुड़ा है, जिसे लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. कानून में कई बदलाव किए गए हैं, जिनका विरोध मुस्लिम संगठनों, राजनीतिक दलों और सामाजिक समूहों द्वारा किया जा रहा है. मुख्य विवादित बिंदुओं में यह शामिल है कि वक्फ संपत्तियों को ‘कोर्ट द्वारा वक्फ’, ‘यूज़र द्वारा वक्फ’ या ‘डीड द्वारा वक्फ’ घोषित किए जाने के बाद उन्हें वापस लेने या निरस्त करने का अधिकार सरकार को दिया गया है. इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं कि इससे धार्मिक संपत्तियों पर अनावश्यक सरकारी दखल बढ़ेगा.

22 मई को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा था आदेश

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई कर रहे हैं, ने 22 मई को इस मामले में अंतरिम आदेश सुरक्षित रखे थे. इसके बाद तीन दिनों तक लगातार सुनवाई हुई, जिसमें याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने संशोधित कानून को संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया. वहीं केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ संपत्तियों की निगरानी और पारदर्शिता लाना आवश्यक है तथा “मुस्लिम होने का प्रमाण शरिया के अनुरूप तय किया जा सकता है.”

कोर्ट ने की‍ 3 मुख्‍य आपत्तियों की पहचान

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई तीन मुख्य आपत्तियों को पहचाना और उन पर विचार करते हुए अंतरिम आदेश देने का निर्णय लिया. इनमें पहला मुद्दा था - वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति का पांच वर्षों तक मुस्लिम होना अनिवार्य करना. दूसरा मुद्दा - संपत्तियों को वक्फ घोषित किए जाने के बाद उन्हें निरस्त करने का अधिकार. तीसरा - वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान.

सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन विवादित प्रावधान को स्थगित कर दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक राज्यों द्वारा नियम नहीं बनाए जाते, तब तक यह प्रावधान लागू नहीं होगा. यह आदेश संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्ति की गरिमा की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

यह मामला न केवल वक्फ संपत्तियों से जुड़ा है, बल्कि देश में धार्मिक पहचान, अल्पसंख्यकों के अधिकार और सरकारी नियंत्रण जैसे व्यापक मुद्दों को छू रहा है. अब सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि राज्य सरकारें किस तरह से नियम बनाती हैं और अंतिम निर्णय में सुप्रीम कोर्ट किस तरह की दिशा तय करता है. यह फैसला आने वाले समय में वक्फ बोर्डों की संरचना और धार्मिक संस्थाओं पर प्रभाव डाल सकता है.

सुप्रीम कोर्टवक्फ बोर्ड
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