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जब हिंदू कोड बिल आया तो.... केंद्र ने वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा अपना पक्ष? सुनवाई की 10 बड़ी बातें

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि वक्फ इस्लाम का एक हिस्सा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है. इसलिए इसे मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता. सरकार ने स्पष्ट किया कि वक्फ अधिनियम केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित है. यह धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करता. वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अधिनियम को मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का हनन बताया और इसकी वैधता पर रोक लगाने की मांग की.

जब हिंदू कोड बिल आया तो....  केंद्र ने वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा अपना पक्ष? सुनवाई की 10 बड़ी बातें
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Waqf Amendment act 2025 Supreme Court: केंद्र सरकार ने 21 मई को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वक्फ इस्लाम का एक धार्मिक अवधारणा जरूर है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इसलिए इसे संविधान के तहत मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता. यह बयान वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता पर लगाई गई याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया गया. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों पर राज्य का नियंत्रण बढ़ाता है और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि जब तक यह साबित नहीं होता कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है, तब तक इसके पक्ष में दिए गए अन्य तर्क असफल होंगे. उन्होंने कहा कि सरकार 140 करोड़ नागरिकों की संपत्ति की संरक्षक है. यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि सार्वजनिक संपत्ति का अवैध रूप से दुरुपयोग न हो.

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के 10 प्रमुख बिंदु

  1. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वक्फ इस्लाम का एक हिस्सा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है, इसलिए इसे मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता. सरकार ने स्पष्ट किया कि वक्फ अधिनियम केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित है और यह धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करता.
  2. सरकार ने तर्क दिया है कि 'वक्फ बाय यूज़र' की अवधारणा, जिसमें किसी संपत्ति को लंबे समय से धार्मिक या परोपकारी उपयोग के आधार पर वक्फ घोषित किया जाता है, एक वैधानिक नीति के तहत मान्यता प्राप्त थी. इसे वापस लिया जा सकता है. नए कानून में 'वक्फ बाय यूज़र' की मान्यता समाप्त करने का प्रावधान है, जिससे बिना पंजीकरण के वक्फ संपत्तियों पर दावा करना मुश्किल होगा.
  3. सरकार ने कहा कि यह कानून केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है. इसका मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों या प्रथाओं में कोई हस्तक्षेप नहीं है. सरकार ने कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी भूमि पर वक्फ का दावा नहीं कर सकता, भले ही वह लंबे समय से धार्मिक उपयोग में रही हो.
  4. सरकार ने अदालत से कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों की वैधता की एक धारणा होती है. जब तक स्पष्ट असंवैधानिकता न हो, उन्हें रोका नहीं जा सकता.
  5. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ दान के लिए है. वक्फ बोर्ड केवल धर्मनिरपेक्ष कार्य करता है. उन्होंने सवाल किया कि वक्फ निकायों में दो गैर मुस्लिम होने से क्या बदलाव आएगा? यह किसी भी धार्मिक गतिविधि को प्रभावित नहीं कर रहा है.
  6. तुषार मेहता ने बताया कि संयुक्त संसदीय समिति की 36 बैठकें हुई, जिसके बाद विभिन्न मुस्लिम निकायों से विभिन्न इनपुट लिए गए. इसके बाद एक रिपोर्ट तैयार की गई. इसके बाद सुझाव लिए गए, जिन्हें स्वीकार या अस्वीकार करते हुए बिल के जरिए संसद से पारित कराया गया.

  7. सीजेई गवई ने कहा, जो तस्वीर पेश की जा रही है, वह यह है कि एक बार कलेक्टर द्वारा जांच कर लिए जाने के बाद संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं रह जाएगी.पूरी संपत्ति सरकार अपने कब्जे में ले लेगी. इस पर तुषार मेहता ने कहा कि सरकार को संपत्ति को अपने कब्जे में लेने के लिए टाइटल सूट दायर करना होगा.

  8. सॉलिसिटर जनरल मेहता ने हिंदी बंदोबस्ती और वक्फ के बीच अंतर बताते हुए कहा कि हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती केवल धार्मिक होती है, लेकिन मुस्लिम वक्फ में स्कूल, मदरसे, अनाथालय और धर्मशालाएं आदि जैसी कई धर्मनिरपेक्ष संस्थाएं शामिल हैं.

  9. मेहता ने बताया कि वक्फ के दो कार्यालय होते हैं- एक सज्जादानशीन का, जो आध्यात्मिक प्रमुख होता है और धार्मिक कार्य करता है, और दूसरा मुतवल्ली का कार्यालय, जो प्रशासन या प्रबंधक होता है. पहला इस वक्फ मामले का विषय नहीं है, क्योंकि इस कानून का धार्मिक और आध्यात्मिक अभ्यास से कोई लेना-देना नहीं है.

  10. सॉलिसिटर जनरल ने 1956 के हिंदू कोड बिल का उदाहरण देते हुए कहा कि जब यह बिल आया तो हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, जैनियों पर्सनल लॉ अधिकार छीन लिए गए, तब किसी ने यह नहीं कहा कि केवल मुसलमानों को ही क्यों छोड़ दिया गया और अन्य को क्यों नहीं. तुषार मेहता ने तमिलनाडु बंदोबस्ती अधिनियम का भी हवाला दिया, जो बोर्ड को मठाधिपति को पद के नियमों का उल्लंघन करने पर हटाने का अधिकार देता है.
  11. मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने की मांग की. उन्होंने तर्क दिया कि यह नया कानून मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों को कमजोर करने का एक सुनियोजित प्रयास है, जो वक्फ संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लाने की अनुमति देता है. सिब्बल ने यह भी बताया कि मस्जिदों को मंदिरों की तरह 'चढ़ावा' नहीं मिलता, जिससे वे वक्फ बोर्डों पर वित्तीय रूप से निर्भर रहती हैं.

बता दें कि मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अप्रैल में संसद द्वारा पारित किया गया था और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून प्रभावी हुआ. सरकार का तर्क है कि अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है, न कि धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. वहीं, याचिकाकर्ताओं का तर्क है यह कानून वक्फ संपत्तियों के अधिकार का उल्लंघन करता है.

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