31 साल बाद पिता की जीत, SC ने बच्चों का दावा खारिज किया; कहा- पैतृक संपत्ति के बंटवारे के बाद हर व्यक्ति अपने हिस्से का मालिक
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति के विभाजन के बाद, प्रत्येक सदस्य को मिली संपत्ति उसकी स्वयं की मानी जाएगी, जिसे वह बिना अन्य सदस्यों की सहमति के बेच या स्थानांतरित कर सकता है. यह फैसला एक पिता और उसके बच्चों के बीच 31 वर्षों से चले आ रहे संपत्ति विवाद में आया, जिसमें पिता ने बेंगलुरु के पास स्थित पैतृक संपत्ति के एक हिस्से को बेच दिया था.

Supreme Court Verdict on Bengaluru Ancestral Property Case: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जो आने वाले समय में कई परिवारों के लिए मिसाल बन सकता है. इस फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि अगर संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति का बंटवारा हो चुका है, तो हर व्यक्ति को मिली संपत्ति उसकी खुद की होती है. ऐसे में वह उसे बेच सकता है, चाहे परिवार के दूसरे सदस्य सहमत हों या नहीं.
यह मामला एक पिता और उसके बच्चों के बीच 31 साल से चल रहे संपत्ति विवाद का था. पिता ने बेंगलुरु के पास अपनी पैतृक संपत्ति का एक हिस्सा बेच दिया था. बच्चों ने इसे कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि यह संपत्ति संयुक्त है. इसलिए पिता को अकेले इसे बेचने का अधिकार नहीं था.
पूरा मामला क्या था?
- इस विवाद की शुरुआत 1994 में हुई, जब बेंगलुरु में एक जमीन का हिस्सा बेचने पर बच्चों ने पिता के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया. यह जमीन उसने अपने भाई से खरीदकर 1989 में 33 फीसदी लाभ पर अन्य व्यक्ति को बेच दिया था.
- बच्चों का दावा है कि यह जमीन संयुक्त परिवार की है. इसलिए उन्हें भी इस पर अधिकार है और बिना उनकी अनुमति यह बेची नहीं जा सकती.
- पिता का कहना है कि साल 1978 में परिवार में संपत्ति का बंटवारा हो चुका था. उन्हें जो हिस्सा मिला था, वह अब उनकी व्यक्तिगत संपत्ति है और वे उसे स्वतंत्र रूप से बेच सकते हैं.
- पिता ने कहा कि उसने जमीन खरीदने के लिए व्यक्ति से कर्ज लिया है. इसके अलावा, उसने कई छोटे-मोटे काम भी किए थे. बाद में, उसने अपनी बेटी की शादी के लिए संपत्ति को अच्छे मुनाफे में बेच दिया.
- बच्चों का कहना है कि उनकी दादी ने पिता को संपत्ति खरीदने के लिए पैसे दिए थे. इस लिहाज से यह पैतृक संपत्ति है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
22 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि अगर एक बार पैतृक संपत्ति का सही तरीके से बंटवारा हो गया है, तो हर व्यक्ति को मिली संपत्ति अब उसकी खुद की मानी जाएगी. इसलिए, पिता को अपने हिस्से को बेचने का पूरा अधिकार था और बच्चों की अनुमति की जरूरत नहीं थी.
कानूनी नजरिया
यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (और 2005 में इसमें किए गए संशोधन) के अनुसार दिया गया है. इसका सीधा मतलब है कि अगर पैतृक संपत्ति का बंटवारा हो गया है, तो उसे अब संयुक्त नहीं माना जाएगा. उस हिस्से पर व्यक्ति को पूरी आजादी होगी कि वह क्या करना चाहता है- बेचना, देना या अपने पास रखना.
इसका असर क्या होगा?
यह फैसला उन सभी मामलों में काम आएगा जहां परिवारों में बंटवारे के बाद भी संपत्ति को लेकर विवाद होता है. अब यह स्पष्ट हो गया है कि बंटवारे के बाद मिली संपत्ति पर व्यक्ति का व्यक्तिगत अधिकार होता है, और परिवार के अन्य सदस्य उसमें दखल नहीं दे सकते. यह फैसला सिर्फ एक पारिवारिक विवाद का अंत नहीं है, बल्कि हजारों ऐसे मामलों के लिए दिशा दिखाता है जो अदालतों में लंबित हैं. यह बताता है कि संपत्ति का बंटवारा होने के बाद उसका मालिक कौन होता है और वह क्या कर सकता है. यह पारिवारिक कानूनों की समझ को और स्पष्ट बनाता है.