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कौन हैं साई जाधव? जिन्होंने IMA का 93 साल पुराना पुरुष वर्चस्व तोड़ा, बनीं IMA की पहली महिला अफसर

साई जाधव ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) के 93 साल पुराने इतिहास में नया अध्याय बना दिया है. उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ते हुए IMA से पास आउट होने वाली पहली महिला अफसर बनकर इतिहास रच दिया. अफसर बनकर साई जाधव ने न केवल इतिहास रचा, बल्कि भविष्य की राह भी खोली है. उनका नाम भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज रहेगा. जानिए उनके संघर्ष, सफलता और इस ऐतिहासिक उपलब्धि की पूरी कहानी.

कौन हैं साई जाधव? जिन्होंने IMA का 93 साल पुराना पुरुष वर्चस्व तोड़ा, बनीं IMA की पहली महिला अफसर
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( Image Source:  SSBCrack )

इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) देहरादून को अब तक पुरुष अफसरों की नर्सरी माना जाता रहा है, लेकिन साई जाधव ने इस सोच को बदल दिया. 93 साल पुराने IMA के इतिहास में पहली बार कोई महिला अफसर यहां से पास आउट हुई हैं. साई जाधव की यह उपलब्धि न सिर्फ भारतीय सेना बल्कि देश की हर उस बेटी के लिए प्रेरणा है, जो वर्दी पहनकर राष्ट्र सेवा का सपना देखती है.IMA से पहली महिला अफसर बनकर साई जाधव ने न केवल इतिहास रचा, बल्कि भविष्य की राह भी खोली है.

कौन हैं साई जाधव?

साई जाधव भारतीय सेना की वह जांबाज अधिकारी हैं, जिन्होंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी से ट्रेनिंग पूरी कर इतिहास रच दिया. वे IMA से पास आउट होने वाली देश की पहली महिला अफसर बनी हैं. उनका नाम अब सेना के उस स्वर्णिम अध्याय में दर्ज हो गया है, जहां दशकों से केवल पुरुष कैडेट्स का दबदबा रहा.

23 साल की साई जाधव ने देहरादून में इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) से पास आउट होने वाली पहली महिला ऑफिसर हैं. साई की कमीशनिंग उनके परिवार की लंबे समय से चली आ रही मिलिट्री परंपरा को भी आगे बढ़ाती है. उनके परदादा ने ब्रिटिश सेना में सेवा की थी, उनके दादा इंडियन आर्मी में कमीशन ऑफिसर थे और उनके पिता, संदीप जाधव, आज भी सेवा कर रहे हैं.

सर्विस में शामिल होने के साथ ही, साई जाधव परिवार की चौथी पीढ़ी बन गई हैं जिसने यूनिफॉर्म पहनी है. साई को टेरिटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट के तौर पर कमीशन मिला है, जिससे वह IMA से इस फोर्स में शामिल होने वाली पहली महिला ऑफिसर बन गई हैं. यह एक ऐसी खासियत है जो उन्हें उस ब्रांच में भी अलग पहचान दिलाती है जिसमें पहले भी महिलाओं को शामिल किया गया है.

IMA महिला अफसर की एंट्री

IMA की स्थापना वर्ष 1932 में हुई थी. बीते 93 वर्षों में यहां से हजारों पुरुष अफसर देश की सेवा के लिए निकले, लेकिन महिलाओं को यह अवसर नहीं मिला. साई जाधव ने इस परंपरा को तोड़ते हुए यह साबित कर दिया कि नेतृत्व, साहस और अनुशासन किसी एक जेंडर की बपौती नहीं है.

कठिन ट्रेनिंग, सख्त अनुशासन

IMA की ट्रेनिंग को दुनिया की सबसे कठिन सैन्य ट्रेनिंग में गिना जाता है. फिजिकल फिटनेस, मानसिक मजबूती, हथियार प्रशिक्षण और लीडरशिप—हर स्तर पर साई जाधव ने खुद को साबित किया. पुरुष कैडेट्स के बीच समान मानकों पर ट्रेनिंग लेकर उन्होंने यह दिखाया कि महिलाएं किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हैं.

युवाओं के के लिए उपलब्धि अहम

साई जाधव की सफलता सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है. यह भारतीय सेना में जेंडर इक्वालिटी की दिशा में बड़ा कदम है. रक्षा बलों में महिलाओं की भूमिका को नई मजबूती मिली है. लाखों युवतियों को सेना में करियर बनाने की प्रेरणा मिली है.

साई जाधव आज सिर्फ एक अफसर नहीं, बल्कि एक प्रेरणास्रोत हैं. उनका सफर यह संदेश देता है कि अगर अवसर मिले और हौसले बुलंद हों, तो कोई भी परंपरा बदली जा सकती है.

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