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100 साल के इतिहास में RSS पर कब-कब लगे बैन, 3 बातों से संघ क्यों नहीं कर सकता समझौता?

100 Years Of RSS: आरएसएस ने पिछले 100 वर्षों में सांस्कृतिक संगठन से वैचारिक शक्ति तक का सफर तय किया है. कभी प्रतिबंध झेला, कभी भूमिगत रहकर संघर्ष किया और आज भाजपा सरकार में इसका प्रभाव निर्णायक माना जाता है. साल 2004 सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ विचारधारा के आधार पर किसी संगठन को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता.

100 साल के इतिहास में RSS पर कब-कब लगे बैन, 3 बातों से संघ क्यों नहीं कर सकता समझौता?
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( Image Source:  @Therajatmourya )
स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Updated on: 1 Oct 2025 3:27 PM IST

RSS 100 Year Celebration: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने 100 साल में कई उतार-चढ़ाव देखे. इस दौरान संघ को तीन बार प्रतिबंध झेलना पड़ा, लेकिन हर बार और मजबूत होकर उभरा. हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और संगठन की विचारधारा से जुड़े कुछ मूल सिद्धांत ऐसे हैं जिन पर संघ ने कभी समझौता नहीं किया. यही कारण है कि सत्ता हो या विपक्ष, आरएसएस अपनी पहचान बनाए रखता है. आरएसएस का दावा है कि उसकी राजनीति से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन उसी के संरक्षण में गठित जनसंघ और अब भाजपा ने देश की राजनीति गहराई से प्रभावित किया और उसी की 2014 के बाद से केंद्र में सरकार है.

स्थापना, शुरुआती दौर और संघ का मकसद

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में की थी. इसके पीछे उनका मकसद हिंदू समाज को संगठित करना, उसकी संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करना, राष्ट्रीय चेतना जगाना, अनुशासन और संगठनात्मक शक्ति पर बल देना था. शुरुआती दौर में यह एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में विकसित हुआ. देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को संघ की राजनीतिक इकाई माना जाता है. हालांकि, संघ हमेशा से यह कहता है कि राजनीति से संघ को कोई लेना देना नहीं है.

किस-किस दौर से गुजरा संघ

1925 से 1940: इस दौर में आरएसएस ने शाखाओं के जरिए युवाओं में अनुशासन और राष्ट्रवाद का प्रसार किया. कांग्रेसी आंदोलन से दूरी बनाए रखी, लेकिन स्वयंसेवक सामाजिक और धार्मिक कार्यों में सक्रिय रहे.

1947 में देश की आजादी और विभाजन

देश विभाजन और दंगों के समय आरएसएस कार्यकर्ताओं ने राहत और शरणार्थी सेवा कार्य किए, लेकिन महात्मा गांधी की हत्या (1948) के बाद आरएसएस से आरएसएस विवादों में घिरा रहा है.

RSS पर कब कब लगे बैन

1948-49: साल 1948 में गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके पीछे मुख्य वजह यह माना जाता है कि गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे संघ से जुड़ा था. जब आरएसएस ने संविधान और अहिंसा के प्रति आस्था जताई, तब जाकर 1949 में उस पर से प्रतिबंध हटा.

1975-77: पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातकाल के दौरान संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था. उस समय संघ ने भूमिगत रहकर आंदोलन और विपक्षी दलों को अपना सहयोग दिया. 1977 में जनता पार्टी सरकार बनी तो आरएसएस पर से प्रतिबंध हटा लिया गया.

1992-93: बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद नरसिंह राव सरकार ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया. अदालत ने सबूत न मिलने पर कुछ ही समय बाद प्रतिबंध हटा दिया था.

संघ खुद चुनाव नहीं लड़ता, सत्ता को प्रभावित करता है

  • आरएसएस खुद चुनाव नहीं लड़ता, लेकिन जनसंघ (1951) उसके बाद उसी का नया अवतार भाजपा (1980) के वैचारिक और संगठनात्मक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है.
  • साल 2014 में मोदी सरकार के गठन के बाद से संघ की भूमिका सरकारी कामकाज में बढ़ी है.
  • सरकार की नीतियों जैसे राम मंदिर, अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता, तीन तलाक, शिक्षा नीति आदि में संघ का वैचारिक प्रभाव साफ तौर पर देखा जाता है.

किस बात पर सबसे ज्यादा जोर देता है संघ?

  • भारत को हिंदू संस्कृति पर आधारित राष्ट्र मानता है.
  • संघ शाखाओं के जरिए देश के नागरिकों के चरित्र निर्माण और सामूहिकता पर जोर देता आया है.
  • स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के तहत आर्थिक नीतियों और जीवनशैली में भारतीयता पर जोर उसी का प्रतीक है.
  • आरएसएस सामाजिक समरसता और जातिगत भेदभाव मिटाने और सामाजिक एकता पर बल देता है.
  • राष्ट्रभक्ति और सेवा प्रकल्प के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य और आपदा राहत जैसे सामाजिक कार्य करता रहता है.

सुप्रीम कोर्ट की RSS पर राय

साल 2004 सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ विचारधारा के आधार पर किसी संगठन को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, जब तक उसके खिलाफ ठोस आपराधिक सबूत न हों. शीर्ष अदालत ने आरएसएस की शाखाओं को सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का हिस्सा माना, लेकिन सरकार को यह छूट दी कि अगर राष्ट्रविरोधी गतिविधियां साबित हों तो कार्रवाई हो सकती है.

इन बातों से संघ नहीं कर सकता समझौता - मोहन भागवत

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की व्याख्यानमाला '100 वर्ष की संघ यात्रा- नए क्षितिज' में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि तीन बातों पर आरएसएस कभी समझौता नहीं कर सकता. संघ में सबकुछ बदल सकता है लेकिन ये तीन बातें उसकी जड़ है और ये कभी नहीं बदलेंगीं. इन तीनों बातों पर पहली है पहला व्यक्ति निर्माण से समाज के आचरण में परिवर्तन संभव. दूसरी बात यह कि पहले समाज बदलना पड़ता है, तो व्यवस्था अपने आप ठीक हो जाती है. तीसरी अहम बात ये है कि हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है.

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