Operation Blue Star: 41 साल बाद भी चुभते हैं वो सवाल, जब स्वर्ण मंदिर बना था जंग का मैदान, सेना ने उठाई थी अपनों पर बंदूक
ऑपरेशन ब्लू स्टार जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना द्वारा खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ चलाया गया था. यह अब तक का सबसे दर्दनाक घरेलू सैन्य अभियान था, जिसमें जरनैल सिंह भिंडरांवाले और जनरल शाबेग सिंह जैसे आतंकी मारे गए. सीबीआई जांच में सामने आया कि यह अभियान 6 नहीं, बल्कि 10 जून तक चला और इसके दाग आज भी भारत के इतिहास पर बाकी हैं.

अब से 41 साल पहले भारत की फौज (Indian Army) ने अपनों के ही खिलाफ एक युद्ध लड़ा था. आजाद भारत में हिंदुस्तानी फौज द्वारा अपनों के ही खिलाफ लड़ा गया शायद अब तक का वह पहला और अंतिम युद्ध साबित हुआ. नाम था अमृतसर (Amritsar) में स्थित गोल्डन टैंपल (Golden Temple) यानी स्वर्ण मंदिर में हुआ “ऑपरेशन ब्लू स्टार” (Operation Blue Star). जिसमें कई भारत विरोधी वे बुजदिल ताकतें हमेशा- हमेशा के लिए भारतीय फौज द्वारा, रुह कंपाती अकाल मौत के मुंह में सुला दी गईं जो, भारत के टुकड़े करके खुद का देश खालिस्तान बनाने की मैली-बेईमान हसरत पाले बैठीं थीं.
इन सबका मास्टरमाइंड था खालिस्तान का कट्टर समर्थक और भारत का दुश्मन कुख्यात जरनैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwale). जिसका असली नाम जरनैल सिंह बरार (Jarnail Singh Barar) था. ऑपरेशन ब्लू स्टार में भारतीय फौज से मोर्चा लेने के लिए आतंकवाद के मास्टरमाइंड जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने, आमने-सामने अड़ा डाला था भारतीय फौज के ही बागी कहिए या फिर बर्खास्त लेकिन फौज की नजर से गजब के काबिल जनरल शाबेग सिंह (Shabeg Singh, PVSM, AVSM) को. वही जनरल शाबेग सिंह जिन्हें 1970 के दशक में पाकिस्तान को तोड़कर, भारतीय फौज द्वारा बांग्लादेश अलग करवाने के लिए बनाई गई “मुक्ति-बाहिनी” के गठन और उसे प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी दी गई थी.
सीबीआई ने की थी ऑपरेशन ब्लू स्टार की जांच
भारतीय हुकूमत और फौज के मुताबिक तो ऑपरेशन ब्लू स्टार का वह युद्ध 1 जून 1984 से शुरू होकर 6 जून 1984 यानी, छह दिन में खतम हो गया था. मगर उस खूनी शर्मनाक लोमहर्षक कांड के सीबीआई की ओर से पड़ताली अफसर रहे तब के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और अब सीबीआई के वही रिटायर्ड संयुक्त निदेशक शांतनु सिंह बताते हैं कि, “ऑपरेशन ब्लू स्टार उनकी नजर और सीबीआई तफ्तीश के हिसाब से 6 जून 1984 को नहीं बल्कि 10 जून 1984 को खतम हो सका था.”
ऑपरेशन ब्लू स्टार 6 निपटा या 9-10 जून 1984 को?
ऑपरेशन ब्लू स्टार 6 जून को खतम हुआ या फिर 9-10 जून को? इतिहास और गूगल यूट्यूब पर फैले पड़े इन बेतरतीब सवालों-तथ्यों के अंतर की इस खाई को मिटाने के जवाब में, पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर सीबीआई शांतनु सेन स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से एक्सक्लूसिव बातचीत में बताते हैं, “बेशक ऑपरेशन ब्लू स्टार में हमारी फौज ने 5-6 जून की रात और सुबह तक देश के दुश्मनों को खतम कर डाला हो. लेकिन 7 जून को जब मैं दिल्ली से सीबीआई टीम जिसमें मेरे दो कनिष्ठ सीबीआई पुलिस अधीक्षक भी शामिल थे, जब घटनास्थल पर (स्वर्ण मंदिर) पहुंचे तब फौज ने हमें अंदर नहीं घुसने दिया. यह कहकर कि अभी अंदर कुछ संदिग्ध लोग मौजूद होने की संभावना है.”
फिर राष्ट्रपति जैल सिंह पर किसने गोली चलाई?
1 जून 1984 से शुरु हुआ ऑपरेशन ब्लू स्टार छह दिन तक चलकर 6 जून 1984 को खतम हो गया था. ऐसा नहीं था. इसकी पुष्टि में इस लोमहर्षक कांड में सीबीआई के पड़ताली अफसर रहे शांतनु सेन कहते हैं अगर, 6 जून 1984 को छह दिन में ही ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) पूरा या खतम हो गया था. तब फिर 6 जून के दो तीन दिन बाद भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति (उस वक्त के मौजूदा) ज्ञानी जैल सिंह जब गोल्डन टैंपल के अंदर पहुंचे, तो उनके ऊपर स्वर्ण मंदिर के अंदर से किसने कैसे और क्यों गोलियां चला दीं? 6 जून के भी दो तीन दिन बाद स्वर्ण मंदिर परिसर में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के ऊपर गोलियां चलाने की घटना सिद्ध करती है कि, 6 जून के बाद भी खालिस्तान समर्थक हथियारबंद स्नाइपर्स (आतंकवादी) गोल्डन टैंपल के अंदर मौजूद थे.
ऑपरेशन ब्लू स्टार यानी कत्ल-ए-आम की शुरूआत
एक्सक्लूसिव बातचीत में ऑपरेशन ब्लू स्टार की इनसाइड स्टोरी सुनाते हुए पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर शांतनु सेन बताते हैं, ‘गोल्डन टैंपल पूरी तरह से खालिस्तान समर्थकों के कब्जे में जा चुका है. हमारी खुफिया एजेंसियां इसकी पुष्टि केंद्र में तब मौजूद कांग्रेस और प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से ठोंक कर कर चुकी थी. उसके बाद भी मगर अलग-अलग सोच के अलग-अलग नेताओं की अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग अलापा जाता रहा. और नौबत गोल्डन टैंपल के भीतर मौजूद आतंकवादियों को काबू करने के लिए भारतीय फौज को पैटन टैंकों के साथ मंदिर के अंदर घुसाने तक की आ पहुंची. उसका नतीजा यह रहा कि, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कत्ल कर डाली गईं. 1984 सिख विरोधी नरसंहार में, कितने बेकसूर सिख कत्ल कर डाले गए, इसकी सही गिनती हमारी आने वाली पीढियां भी नहीं कर सकेंगी. और आज भी कनाडा, पाकिस्तान, ब्रिटेन अमेरिका में मौजूद खालिस्तान समर्थक आएदिन मौका मिलने पर, खालिस्तान की मांग का शोरगुल मचाते रहते हैं.’
गोल्डन टैंपल और 25 अप्रैल 1983 की मनहूस तारीख
विशेष बातचीत के दौरान ऑपरेशन ब्लू स्टार के जांच अधिकारी (सीबीआई) रहे शांतनु सेन, 25 अप्रैल 1983 को मनहूस तारीख मानते हैं. उनके मुताबिक पंजाब पुलिस के डीआईजी 41 साल के अवतार सिंह अटवाल को इसी दिन अमृतसर स्थित गोल्डन टैंपल की देहरी पर गोलियों से भून डाला गया था. उनके सरकारी सुरक्षा-गार्ड जवाब में हथियार चलाने के बजाए बुजदिलों की तरह एक षडयंत्र के तहत मौके से भाग गए. जिन लोगों ने डीआईजी को कत्ल किया और जो मौके पर तमाशबीन थे. वह सब आपस में नाच-गाकर पंजाब पुलिस के दबंग डीआईजी अवतार सिंह अटवाल के कत्ल का जश्न मना रहे थे. असल में तो देखता हूं तो मुझे वही तारीख-दिन (जब डीआईजी अटवाल को गोल्डन टैंपल के प्रवेश द्वार पर कत्ल कर डाला गया) ऑपरेशन ब्लू स्टार की होली रखे जाने वाला दिन लगता है. डीआईजी अटवाल के कत्ल वाले दिन दिल्ली (तब केंद्र में मौजूद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार) ने तय कर लिया था कि, अब घी टेढ़ी उंगली से ही निकालना पड़ेगा. और वही टेढ़ी उंगली थी 1 से 9-10 जून 1984 तक भारतीय फौज द्वारा गोल्डन टैंपल में घुसकर चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार.”
इंदिरा गांधी हवा का रुख ताड़ने में नाकाम रहीं..!
ऑपरेशन ब्लू स्टार के सीबीआई की ओर से जांच में शामिल तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (CBI) शांतनु सेन के मुताबिक, “खालिस्तान समर्थकों का घिनौना खेल जब तक इंदिरा गांधी की समझ में आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. गोल्डन टैंपल की देहरी पर डीआईजी अटवाल के कत्ल ने तेज-तर्रार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सामाजिक, मानसिक, राजनीतिक तौर पर बुरी तरह से निचोड़ कर. एक बेबस-लाचार-निरीह या कहिए बेहद ‘कमजोर’ प्रधानमंत्री बनाकर, उन्हें दिल्ली में उन्हें उनके प्राइम मिनिस्टर हाउस और कार्यालय में बेहद बेचैनी के आलम में तन्हा ले जाकर छोड़ दिया था.”
ऑपरेशन ब्लू स्टार कोई नहीं भूल सकता है
आज ही के दिन यानी 6 जून 1984 को हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार को आज 41 साल बीत चुके हैं लेकिन, उस खूनी खेल की डरावनी कहानियां आज भी भारत की अखंडता सुरक्षा सैन्य और संप्रुभता के ऊपर किसी बज्रपात सी ही गिरती हुई महसूस होती हैं. क्योंकि खून के दाग धुल तो जाते हैं मगर वो मिटते कभी नहीं हैं. दूसरी बात, ऑपरेशन ब्लू स्टार सिर्फ देश के दुश्मनों का खात्मा करने का अभियान भर नहीं था. वह भारतीय फौज द्वारा अपनों के ही खिलाफ लड़ा गया खतरनाक युद्ध भी था.
क्या कहते हैं सीबीआई के पड़ताली अफसर?
बकौल शांतनु सेन, “1 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हुआ. मगर ऑपरेशन लांच के वक्त फौज ने नहीं सोचा था कि, वह युद्ध 6 या 8-10 दिन लंबा खिंचेगा. तफ्तीश में सामने आए तथ्यों के हिसाब से मैं जहां तक जानता समझता हूं, ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम देने पहुंची इंडियन आर्मी ने यह सोचा कि जब, गोल्डन टैंपल के अंदर छिपे बैठे दुश्मन दो दिन में घुटने टेक देंगे. हुआ एकदम उसके उलट था. 5 जून 1983 को आर्मी ने फिर ऑपरेशन शुरू किया. फिजिकल ऑपरेशन पांच जून को शुरू हुआ. पांच जून को आर्मी को अंदर गोल्डन टैंपल के भीतर घुसना पड़ा. स्वर्ण मंदिर के भीतर छिपे आतंकवादियों ने आसपास के 8 किलोमीटर एरिया कवर करने का इंतजाम अंदर करके रखा था. जबकि भारतीय फौज ने उन्हें घेरकर सिर्फ और सिर्फ गोल्डन टैंपल के अंदर तक समेट लिया था. इतिहास और मेरी जांच के मुताबिक तो ऑपरेशन ब्लू स्टार 6 नहीं 10 जून 1984 तक चलता रहा.”