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स्वर्ण मंदिर में टैंक, गोलियां और आग... भिंडरावाले का अंत, कहानी ऑपरेशन ब्लू स्टार की जिसने बदल दी पंजाब की तकदीर

1984 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय इतिहास की सबसे विवादास्पद सैन्य कार्रवाई थी. स्वर्ण मंदिर में छिपे उग्रवादियों को निकालने के लिए सेना को भेजा गया, जिसमें जरनैल सिंह भिंडरांवाले मारा गया. इस ऑपरेशन ने सिख समुदाय में गहरा रोष पैदा किया और इसके दुष्परिणाम इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में सामने आए.

स्वर्ण मंदिर में टैंक, गोलियां और आग... भिंडरावाले का अंत, कहानी ऑपरेशन ब्लू स्टार की जिसने बदल दी पंजाब की तकदीर
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नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Updated on: 6 Jun 2025 7:23 AM IST

हरमंदिर साहिब, जिसे स्वर्ण मंदिर या दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे पवित्र सिख धार्मिक स्थलों में से एक है. लेकिन ठीक 41 साल पहले, 6 जून 1984 को यह धार्मिक स्थल भारतीय सेना और उग्रवादियों के बीच खूनी संघर्ष का केंद्र बना. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' नामक सैन्य अभियान के तहत जरनैल सिंह भिंडरांवाले और उसके हथियारबंद साथियों को मंदिर परिसर से निकालने का आदेश दिया.

यह ऑपरेशन एक जून से छह जून तक चला. पूर्व रॉ अधिकारी जी.बी.एस सिद्धू की किताब 'खालिस्तान षड्यंत्र की इनसाइड स्टोरी' के अनुसार, इस ऑपरेशन में चार अधिकारी सहित 83 सैनिक शहीद हुए, जबकि 514 उग्रवादी और नागरिकों की मौत हुई. इस अभियान के दौरान मंदिर परिसर के भीतर स्थित अकाल तख्त को भी गंभीर क्षति पहुंची, जो सिख धर्म में सर्वोच्च धार्मिक प्रतीक माना जाता है.

ऑपरेशन ब्लू स्टार ने न केवल सिख समुदाय में गहरी नाराजगी और भावनात्मक चोट पहुंचाई, बल्कि इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी दूरगामी रहे. कई सिखों ने इस अभियान को अपनी धार्मिक अस्मिता पर हमला माना, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया. यही गुस्सा आगे चलकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और सिख विरोधी दंगों की भयावह घटनाओं में तब्दील हो गया. ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41वीं बरसी पर यह जरूरी है कि हम समझें कि आखिरकार यह सैन्य कार्रवाई क्यों हुई, इसके पीछे की रणनीति क्या थी और वह कौन था जरनैल सिंह भिंडरांवाले जिसके उदय और अंत ने भारत के इतिहास को झकझोर कर रख दिया.

कौन था जरनैल सिंह भिंडरांवाले?

भिंडरांवाले का जन्म 2 जून 1947 को पंजाब के रोड़े गांव में हुआ. 30 की उम्र में वह दमदमी टकसाल का प्रमुख बना और सिख धार्मिक उपदेशक से धीरे-धीरे कट्टरपंथी विचारों का प्रतीक बन गया. उसने सिख युवाओं को शस्त्रधारी बनने को प्रेरित किया और खालिस्तान एक स्वतंत्र सिख राष्ट्र की मांग को सार्वजनिक मंचों पर दोहराना शुरू कर दिया.

भिंडरांवाले का प्रभाव

1978 में निरंकारी-सिख झड़पों के बाद भिंडरांवाले का प्रभाव तेजी से बढ़ा. पंजाब में सिखों और हिंदुओं के बीच वैमनस्य बढ़ने लगा. अकालियों की सियासी पकड़ ढीली होने लगी. इसी दौरान डीआईजी एएस अटवाल की हत्या स्वर्ण मंदिर की सीढ़ियों पर कर दी गई, जिसकी जिम्मेदारी भिंडरांवाले के समर्थकों पर आई. राज्य सरकार पूरी तरह पंगु साबित हो रही थी.

अकालतख्त पर कब्जा और सरकार की बेचैनी

15 दिसंबर 1983 को भिंडरांवाले ने हथियारबंद साथियों के साथ अकालतख्त पर कब्जा कर लिया. अकालतख्त पर कब्जे का धार्मिक और राजनीतिक अर्थ था यह सीधी चुनौती केंद्र सरकार को थी. मंदिर परिसर में हथियार, बंकर और गोला-बारूद जमा होने लगा. भिंडरांवाले ने हिंदुओं को पंजाब छोड़ने के लिए उकसाना शुरू किया. हालात भयावह हो चले थे.

ऑपरेशन की तैयारी

1 जून 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को हरमंदिर साहिब में कार्रवाई की अनुमति दी. ऑपरेशन का नाम रखा गया "ब्लू स्टार". कमान सौंपी गई मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार को. पत्रकारों को शहर से हटा दिया गया, बॉर्डर सील कर दी गई, और आम नागरिकों को बाहर निकलने की अपील की गई लेकिन सिर्फ 129 लोग ही निकल सके. भिंडरांवाले के लोग बाकी को रोक रहे थे.

फायरिंग, टैंक और जलते ग्रंथालय

5 जून की शाम से 6 जून की रात तक लगातार गोलीबारी हुई. सेना को अंततः टैंकों का इस्तेमाल करना पड़ा. अकालतख्त पर हमला हुआ. गोलीबारी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब से जुड़ी दुर्लभ पांडुलिपियां और ग्रंथालय जलकर राख हो गया. भिंडरांवाले समेत प्रमुख उग्रवादी मारे गए. 7 जून की सुबह तक ऑपरेशन खत्म हुआ लेकिन इसके पीछे गहरे घाव छोड़ गया.

ऑपरेशन के बाद की राजनीतिक उठापटक

ऑपरेशन के बाद पंजाब में सिख कट्टरता और भड़क उठी. भिंडरांवाले शहीद का दर्जा पाने लगा. मांगें तेज हुईं चंडीगढ़ पर दावा, नदियों के पानी का बंटवारा, और अधिक स्वायत्तता. सिख राजनीति भटकी और कांग्रेस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया. ऑपरेशन के विरोध में अकालियों ने अनंतपुर साहिब रिजॉलूशन की ओर वापसी की.

पहले की राजनीतिक गलतियां

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में लिखा कि भिंडरांवाले को कांग्रेस, खासकर संजय गांधी और ज्ञानी जैल सिंह ने शुरुआत में बढ़ावा दिया था ताकि अकालियों को कमजोर किया जा सके. लेकिन यह प्रयोग उल्टा पड़ गया. भिंडरांवाले आतंक की राह पर बढ़ चुका था और अब सरकार के नियंत्रण से बाहर था. उसे राजनीतिक मोहरा बनाने का परिणाम बहुत महंगा पड़ा.

इंदिरा गांधी की हत्या

ऑपरेशन ब्लू स्टार के चार महीने बाद 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सिख अंगरक्षकों ने कर दी. देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे. हजारों सिख मारे गए. ऑपरेशन ब्लू स्टार सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी. यह एक ऐसे दौर की शुरुआत थी जिसने भारतीय राजनीति, सामाजिक ताने-बाने और सिख समुदाय के साथ रिश्तों पर गहरी छाया छोड़ दी.

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