भगवान हमें माफ कर देगा अगर... मद्रास हाईकोर्ट ने मंदिर की जमीन को लेकर दिया दिया यह फैसला
Madras HC: मद्रास हाई कोर्ट ने मंदिर की जमीन पर मेट्रो स्टेशन बनाने के लिए चेन्नई मेट्रो रेल लिमिटेड (CMRL) मंजूरी दे दी. कोर्ट ने कहा इस फैसले भक्तों का भला होगा. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की वैध अपेक्षाओं का उल्लंघन किया गया, क्योंकि CMRL ने पहले ही अपने मुख्यालय के निर्माण के लिए एनओसी दे दिया था.

Madras HC: मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान मंगलवार 11 मार्च को चेन्नई मेट्रो रेल लिमिटेड (CMRL) दो मंदिर की जमीन को मेट्रो स्टेशन स्थापना की अनुमति दे दी. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि मंदिर की जमीन पर मेट्रो स्टेशन बनाने से भगवान हमें माफ कर देगा.
हाईकोर्ट के जस्टिस एन आनंद वेंकटेश्वर ने कहा कि इस फैसले से भगवान के भक्तों को भी लाभ होगा. धार्मिक संस्थाओं की भूमि को सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए अभिग्रहीत किया जा सकता है. यह संविधान के अनुच्छेद 25 या 26 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है.
क्या है मामला?
CMRL ने 26 सितंबर, 2024 को यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को एक नोटिस जारी किया, जिसमें थाउजेंड लाइट्स मेट्रो स्टेशन के निर्माण के लिए इसकी 837 वर्ग मीटर भूमि अधिग्रहित करने का प्रस्ताव था. इसके बाद आलयम कपोम फाउंडेशन ने मंदिर की भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की. अदालत ने बीमा कंपनी के परिसर के अंदर स्टेशन के एंट्री और एग्जिट दिशा में बदलाव करने के सीएमआरएल के बात का जिक्र किया था. हालांकि, कंपनी न तो जनहित याचिका में पक्ष थी और न ही उसे सुनवाई का अवसर दिया गया.
जांच में पता चला कि स्टेशन के स्थान में बदजो मूल रूप से अलाव का फैसला रुल मिघु श्री रथिना विनयगर और दुर्गाई अम्मन मंदिर, व्हाइट्स रोड, चेन्नई के परिसर के अंदर बनाया जानमा था. जो कि बीमा कंपनी से बातचीत के बिना ही लिया गया था. बता दें कि कंपनी का नया ऑफिस स्टील डायग्रिड डिजाइन है. बिल्डिंग में 14 फ्लोर हैं,पार्किंग स्थान शामिल है और इसका कुल क्षेत्र लगभग 25,000 वर्ग मीटर है, जिसमें CMRL ने मेट्रो स्टेशन के लिए 837 वर्ग मीटर जमीन की मांग की है.
कोर्ट ने खारिज की याचिका
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की वैध अपेक्षाओं का उल्लंघन किया गया, क्योंकि CMRL ने पहले ही अपने मुख्यालय के निर्माण के लिए एनओसी दे दिया था. कंपनी ने इस आश्वासन पर भरोसा करते हुए इमारत के निर्माण में 250 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया. न्यायालय ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि मंदिरों की भूमि को अधिग्रहण से खुद ही छूट मिल जानी चाहिए.