जगजीत सिंह डल्लेवाल सबसे लंबे समय तक भूख हड़ताल करने वाले लोगों में हुए शामिल, कैसी है अब हालत?
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को भूख हड़ताल किए हुए 42 दिन हो गए हैं. उनकी हालत लगातार नाजुक होती जा रही है. वे ठीक से उठ भी नहीं पा रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि अब अगर वे अपना अनशन खत्म भी कर देंगे तो भी उनके अंग ठीक से काम नहीं करेंगे. आइए, जानते हैं कि अब तक कितने लोगों ने आमरण अनशन किया है...

Jagjit Singh Dallewal: संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के संयोजक जगजीत सिंह डल्लेवाल कई दिन से भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं. आज उनकी हड़ताल का 42वां दिन है. डॉक्टरों के मुताबिक, उनकी स्थिति नाजुक है. वे अब अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर भी दें तो उनके अंग ठीक से काम नहीं कर पाएंगे. वे कई दिनों से ठीक से खड़े नहीं हो पा रहे हैं. इससे उनका वजन मापना भी मुश्किल हो रहा है. एनजीओ 5 रिवर्स हार्ट एसोसिएशन ने बताया कि रविवार को डल्लेवाल का ब्लड प्रेशर 108/73, ऑक्सीजन लेवल 98, सांस लेने की दर 18 प्रति मिनट और हृदय गति 73 थी.
देश को आजादी मिलने के पहले से ही भूख हड़ताल विरोध का एक जरिया रहा है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसे सत्याग्रह के शस्त्रागार में एक महान हथियार बताया है. उन्होंने अपनी जिंदगी में कम से कम 20 बार इस तरह का विरोध किया था. उनकी सबसे लंबी भूख हड़ताल 1943 में थी, जब उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई गड़बड़ियों के कारण अपनी हिरासत के खिलाफ 21 दिनों तक उपवास किया था.
आजाद भारत में पहला आमरण अनशन कब हुआ?
देश को आजादी मिलने के बाद पहला बड़ा आमरण अनशन 1952 में हुआ था. पोट्टी श्रीरामुलु ने तत्कालीन मद्रास राज्य से अलग आंध्र प्रदेश राज्य की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए, जिसके 58 दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई. इससे राज्य में हिंसा भड़क उठी. लोग सड़क पर उतर आए. आखिरकार सरकार को 1953 में अलग आंध्र प्रदेश का गठन करना पड़ा. वहीं, 1969 में, सिख नेता दर्शन सिंह फ़ेरुमान ने चंडीगढ़ सहित पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब में शामिल करने के लिए आमरण अनशन किया था. अनशन के 74 दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई.
इरोम शर्मिला को 16 साल तक हिरासत में रखा गया
नवंबर 2000 में, मणिपुर में 8वीं असम राइफल्स द्वारा कथित तौर पर 10 नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिसके बाद 28 साल की इरोम शर्मिला ने हत्या और सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) के खिलाफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी. तीन दिन बाद उन्हें 'आत्महत्या का प्रयास' करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें 16 साल तक पुलिस हिरासत में रखा गया. आरोप है कि यहां अधिकारियों ने उन्हें नाक से जबरदस्ती खाना खिलाया.
इरोम शर्मिला को मणिपुर की आयरन लेडी का खिताब मिला. उन्होंने बिना मकसद पूरा किए 2016 में अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी. संयुक्त राष्ट्र से लेकर अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस तक ने शर्मिला को जबरन खाना खिलाने को 'यातना का एक रूप' और कैदियों के भोजन से इनकार करने के अधिकार का उल्लंघन बताया. साल 2021 में मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि भूख हड़ताल आत्महत्या का प्रयास नहीं माना जाएगा.
ममता बनर्जी ने 2006 में की थी भूख हड़ताल
2006 में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने टाटा समूह की नैनो फैक्ट्री के लिए पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार द्वारा कथित जबरन भूमि अधिग्रहण के विरोध में भूख हड़ताल की थी. हालांकि, तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अपील के बाद उन्होंने 25 दिनों की अपनी भूख हड़ताल वापस ले ली. आखिरकार टाटा को बंगाल से अपना कारोबार वापस लेना पड़ा. यह घटना बंगाल की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई. इसके 5 साल बाद 2011 के विधानसभा चुनावों में ममता सत्ता में आईं, जिससे तीन दशकों से अधिक समय तक चला वामपंथी शासन खत्म हो गया.
KCR ने 2009 में किया आमरण अनशन
तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के चंद्रशेखर राव (KCR) ने आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर 2009 में आमरण अनशन शुरू किया. उस समय राष्ट्रीय स्तर पर दबाव झेल रही कांग्रेस ने 10 दिनों के भीतर ही तेलंगाना राज्य के निर्माण का वादा करके उनकी मांगें मान लीं. राज्य की सीमा और राजधानी के चयन पर विस्तृत चर्चा के बाद, लगभग साढ़े चार साल बाद 2014 में तेलंगाना अस्तित्व में आया और केसीआर इसके पहले मुख्यमंत्री बने.
2011 में अन्ना हजारे ने किया भूख हड़ताल
2011 में, यूपीए सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल की मांग करने वाले कार्यकर्ता अन्ना हजारे के आंदोलन ने भूख हड़ताल को फिर से राष्ट्रीय चर्चा में ला दिया. उनके अनिश्चितकालीन अनशन के चार दिन से भी कम समय में सरकार ने उनकी मांगों पर सहमति जताई और लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति गठित की, जिसे अंततः 2013 में संसद ने पारित कर दिया. आम आदमी पार्टी की जड़ें हजारे के आंदोलन से जुड़ी हैं. भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल लोगों में अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं.
चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में की भूख हड़ताल
आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम और तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू ने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग को लेकर 2018 में भूख हड़ताल की थी. इस मांग को लेकर नायडू ने तत्कालीन सहयोगी भाजपा से नाता तोड़ लिया था. उसी साल, कार्यकर्ता से राजनेता बने हार्दिक पटेल ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा के साथ-साथ कृषि ऋण माफ़ी में पाटीदार युवाओं के लिए आरक्षण की मांग को लेकर अनशन शुरू किया.
2020 के अंत में, भाजपा सरकार द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को पारित करने के बाद किसानों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू किया, जिसमें कानूनों को निरस्त करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने के लिए भूख हड़ताल भी शामिल थी. हाल ही में, सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर कई अनशन किए हैं. फरवरी में, राज्य विधानसभा ने नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण पारित किया.
सोनम वांगचुक ने की 21 दिनों की भूख हड़ताल
पिछले साल अक्टूबर में जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों और औद्योगिक और खनन लॉबी से इसके नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा की मांग को लेकर 21 दिनों की भूख हड़ताल की थी. उन्होंने लेह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) तक 'पश्मीना मार्च' का भी आह्वान किया, लेकिन बाद में हिंसा की आशंका के चलते योजना वापस ले ली.