Indigo जैसी घटना कैसे हुई? हालात नहीं संभाले गए तो इन सेक्टर्स का भी होगा वही हाल, Competition Commission कर क्या रहा है?
इंडिगो से जुड़ी हालिया घटनाओं ने भारत के प्रतिस्पर्धा कानून और Competition Commission of India की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. नियमों से परे जाकर प्रतिस्पर्धा और गलत कारोबार का यह खेल केवल उड्डयन क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि, टेलीकॉम, सीमेंट, जहाजरानी, आनलाइन ट्रेडिंग, गैस एक्सप्लोरेशन, आधारभूत ढांचा विकास क्षेत्र सहित कई अन्य क्षेत्र में भी है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. क्या सीसीआई इस घटना से सीख लेगी?
भारत में मुक्त बाजार और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नियमानुसार बनाए रखने की जिम्मेदारी Competition Commission of India (CCI) के हाथों में है, लेकिन जब इंडिगो जैसी बड़ी कंपनी पर मनमानी, प्रभुत्व के दुरुपयोग और प्रतिस्पर्धा खत्म करने के आरोप लगते हैं, तो सवाल उठता है. CCI था कहां? वह समय रहते दखल क्यों नहीं देती. क्या इस मामले में कानून कमजोर है या उस पर अमल नहीं हो रहा है. अब सब कुछ ठीक हो तो यह घटना कैसे हुई.
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इंडिगो जैसी घटना क्यों?
जब कोई एक या कुछ बड़ी कंपनियां किसी भी क्षेत्र में हावी होती हैं, तो वे सेवा की गुणवत्ता गिरा सकती हैं, कीमतें बढ़ा सकती हैं और सप्लाई चेन या स्टाफिंग में गड़बड़ी होने पर पूरे सेक्टर पर असर पड़ता है, जैसे इंडिगो के मामले में हुआ.
CCI की नाकामियों पर क्यों उठे सवाल?
CCI का मुख्य काम बाजार में प्रतिस्पर्धा (Competition) को बढ़ावा देना और एकाधिकार को रोकना है. वे कंपनियों के मर्जर (विलय), कार्टेल (गठबंधन) या अनुचित व्यापार प्रथाओं की जांच करते हैं. बावजूद इसके इंडिगो जैसी बड़ी एयरलाइन से जुड़े विवाद सामने आने के बाद यह बहस तेज हो गई है कि जब देश में Competition Commission of India (CCI) जैसी मजबूत नियामक संस्था मौजूद है, तो फिर ऐसी घटनाएं कैसे और क्यों होने दी गई. इसके पीछे कई संरचनात्मक और प्रशासनिक कारण हैं, जिनकी वजह से CCI समय रहते प्रभावी हस्तक्षेप नहीं कर पाया. जबकि एविएशन सेक्टर के अलावा टेलीकॉम, सीमेंट, जहाजरानी, आनलाइन ट्रेडिंग, गैस एक्सप्लोरेशन, शिपमेंट, बैंकिंग, ऊर्जा, हैवी इंडस्ट्रीज व आधारभूत ढांचा विकास क्षेत्र सहित कई अन्य क्षेत्र में भी गलत प्रतिस्पर्धा बदस्तूर जारी है. बावजूद इसके सीसीआई (CCI) इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझता.
दरअसल, CCI मुख्य रूप से शिकायत मिलने पर ही जांच की प्रक्रिया शुरू करता है. छोटे एयरलाइंस या उपभोक्ता अक्सर कानूनी खर्च और लंबी लड़ाई से डरते हैं. नतीजा यह होता है कि बड़े प्लेयर्स के खिलाफ शिकायत ही नहीं होती. CCI के पास Suomoto (स्वतः संज्ञान) का अधिकार होने के बावजूद इसका सीमित इस्तेमाल होता है.
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग: कब और क्यों बना?
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India) की स्थापना 14 अक्टूबर 2003 को हुई थी. उस समय देश के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी थी. यह प्रभाव में 2009 से है. उस समय यूपीए टू का शासन काल था.कारोबार के क्षेत्र में गलत प्रतिस्पर्धा को रोकने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का गठन Competition Commission Act 2002 के तहत हुआ था.
CCI का मकसद क्या था?
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के गठन का मकसद बाजार में किसी भी कंपनी की मोनोपॉली (एकाधिकार) रोकना था. कंपनियों की मनमानी और कीमतों पर नियंत्रण रखना था. उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और निष्पक्ष व स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना की जिम्मेदारी भी इसी की है.
शक्ति क्या है?
Competition Commission निम्न मामलों की जांच कर सकता है. कार्टेलाइजेशन (कंपनियों की मिलीभगत), प्रभुत्व का दुरुपयोग (Dominant Position Abuse), अनुचित कीमत निर्धारण, बड़े विलय और अधिग्रहण (M&A) को मंजूरी देना, किसी सेक्टर में गलत प्रतिस्पर्धा खत्म करने वाले कदम उठाना, एयरलाइंस, IT, FMCG, बैंकिंग व हर निजी सेक्टर CCI के दायरे में आता है.
इंडिगो जैसी घटना को CCI कैसे रोक सकता था?
CCI इंडियों के एकाधिकारिक सोच को काबू करने के लिए Suomoto जांच (खुद संज्ञान) ले सकता था. प्रभुत्व के दुरुपयोग पर 10% तक टर्नओवर का जुर्माना, कंपनियों को व्यवसाय मॉडल बदलने का आदेश, अनुचित करार और एक्सक्लूसिव डील पर रोक, अगर समय रहते कार्रवाई होती तो बाजार में डर बना रहता.
CCI से कहां हुई चूक?
सीसीआई ने इंडिगो के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया. CCI अधिकांश मामलों में शिकायत आने का इंतजार करता है. इस मामले में भी वही हुआ. सीसीआई की जांच प्रक्रिया बहुत लंबी है. शुरुआती जांच, DG रिपोर्ट, कंपनी की सफाई और फैसला आने में सालों लग जाते हैं. कीमत और प्रतिस्पर्धा के लिए CCI अधिकारों की टकराहट से देरी, कंपनियों में जुर्माने का डर कम होना भी प्रमुख कारकों में से एक है. फिर, बड़ी कंपनियों के लिए जुर्माना कॉस्ट ऑफ बिजनेस बन चुका है.





