EXCLUSIVE: सेना अभी भी पहाड़ियों के रास्तों से अनजान, झाड़ियों में छिपे हैं पाक से आने के रास्ते; बोला- पूर्व Hizbul Terrorist
हिजबुल मुजाहिदीन के पूर्व आतंकी मोहम्मद कालू ने पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा कि निर्दोषों की हत्या इस्लाम के खिलाफ है. कालू, जिसे दो बार हिजबुल ने अगवा किया था, चार साल बाद भागकर AK-47 समेत सरेंडर कर चुका है. अब वह आतंकवाद से तौबा कर चुका है और आतंकियों का खुलकर विरोध कर रहा है.

पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 (Pahalgam Terrorist Attack) को निहत्थे पर्यटकों का कत्ल-ए-आम करने वाले, कुरान पढ़ने वाले मुसलमान तो हो ही नहीं सकते हैं. वे गली के गुंडे-मवाली रहे थे. जो चंद कौड़ियों की खातिर मुसलिम धर्म की शुद्ध मान्यताएं और, कुरान की पाकीजगी (पवित्रता) को भी नहीं जानते थे. कुरान में कहीं नहीं लिखा है कि निर्दोषों का कत्ल करो. उनका खून बहाओ. यह घिनौना काम कुरान को मानने वाला या ईमान वाला नमाजी मुसलमान तो कतई नहीं कर सकते हैं. मैं जानता हूं कि मेरी यह दो टूक खरी-खरी बात पाकिस्तानी आतंकवादियों और जम्मू कश्मीर घाटी-पाकिस्तान में छिपे बैठे उनके आकाओं को कितनी खलेगी. पहलगाम के गुंडों से मेरा मुकाबला होता तो मैं उन्हें पत्थरों से कुचकर मार डालता. चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाती.
हिजबुल मजाहिदीन के पूर्व आतंकवादी मो. कालू
पहलगाम के हमलावरों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं को यह तमाम खरी-खरी दो-टूक सुनाने वाला कोई और नहीं, हिजबुल मुजाहिदीन संगठन का ही पूर्व आतंकवादी मोहम्मद कालू शाकिर है. शाकिर जब 15-16 साल के थे तभी जम्मू घाटी में हिजबुल मुजाहिदीन आतंकवादियों ने उनका अपहरण कर लिया. एक बार नहीं दो-दो बार उनका अपहरण किया गया. पहली बार साल 2000 में तब जब वे भेड़ों को चराने निकले थे. पहली बार अपहरण किए जाने के बाद 20 दिन तक मोहम्मद कालू आतंकवादियों के साथ उनके ठिकाने पर रहे. मौका मिलते ही वे मगर 20 दिन बाद भाग आए. उसके बाद भारतीय फौज और जम्मू कश्मीर पुलिस ने उन्हें सुरक्षित उनके घर पहुंचाया.
आतंकवादियों के चंगुल से सुरक्षित भाग निकलने के चलते आतंकवादी मोहम्मद कालू से और भी ज्यादा खार खाने लगे थे. इसके बाद साल 2000 में ही छह महीने बाद उन्हीं आतंकवादियों ने फिर से मोहम्मद कालू का अपहरण कर लिया. पहले से चिढ़े बैठे आतंकवादियों ने पहले तो मोहम्मद कालू को डराने के लिए उसकी जबरदस्त पिटाई की. उसके बाद लाख न चाहते हुए भी मोहम्मद कालू को चार साल (साल 2004 तक) हिजबुल मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों के साथ रहना पड़ा.
हिजबुल मुजाहिदीन की AK-47 राइफलें लेकर भागे
यह बेबाकी से बयान किया है मोहम्मद कालू उर्फ शाकिर (Mohammad Kalu Shakir Ex Hizbul Mujahedeen Terrorist) ने 5 मई 2025 को स्टेट मिरर हिंदी के, एडिटर क्राइम-इनवेस्टीगेशन के साथ एक्सक्लूसिव वीडियो कॉल-इंटरव्यू में और भी काफी कुछ बयान किया. उनके मुताबिक, “ हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने उन्हें जम्मू कश्मीर घाटी की पाकिस्तान से जुड़ी सीमा के पास मौजूद जंगलों में रखा. जब दूसरी बार अपहरण किये जाने के बाद आतंकवादियों को मेरे ऊपर विश्वास हो गया कि, अब मैं उनके अड्डे से भागूंगा नहीं. तो उन्होंने मुझे AK-47 जैसी घातक मार वाली स्वचालित राइफल चलाना सिखाया. बाद में (चार साल बाद सन् 2004 में) मैं और मेरे ही गांव का एक और लड़का आतंकवादियों के अड्डे से भाग आए.”
4 तक हिजबुल मुजाहिदीन आतंकवादियों के बीच रहने के बाद भारतीय एजेंसियों के सामने सरेंडर कर देने वाले पूर्व आतंकवादी मोहम्मद कालू शाकिर कहते हैं, “अगर हम आतंकवादियों के कैंप से न भागे होते तो शर्तिया हम पुलिस या फौज की गोलियों से मार डाले गए होते. हमने साल 2004 में तब जम्मू कश्मीर पुलिस में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रहे जगदीश लाल शर्मा के सामने सरेंडर कर दिया.”
हिजबुल आतंकी बारे में पूर्व SSP GL Sharma बोले-
हिजबुल मुजाहिदीन के पूर्व आतंकवादी मोहम्मद कालू के बयानों की पुष्टि के लिए स्टेट मिरर हिंदी ने बात की, तब जम्मू कश्मीर पुलिस में तब (साल 2004) वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रहे जगदीश लाल शर्मा (SSP DIG Jagdish Lal Sharm) से. उन्होंने मोहम्मद कालू द्वारा स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इन्वेस्टीगेशन के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में किए गए तमाम खुलासों को सही बताते हुए, पूर्व आतंकवादी के ज्यादातर दावों पर मुहर लगाई. उन्होंने कहा, “मोहम्मद कालू साल 2000 से 2004 तक पुलिस के लिए सिरदर्द था. हम उसकी तलाश में हर पल लगे रहते थे. जब उसने सरेंडर कर दिया, उससे 15-20 दिन पहले हमने सोच लिया था कि, अगर अब भी मोहम्मद कालू हमें नहीं मिला, तो फिर चाहे जो हो जाए. हम उसे हर हाल में 20 दिन के भीतर घेरकर ही दम लेंगे. यह जम्मू कश्मीर पुलिस और उन दिनों हिजबुल मुजाहिदीन के साथ रहने वाले मोहम्मद कालू की किस्मत थी जो वह, पुलिस का दबाव बढ़ता देख कानून के पास आ गया. उसने अपने एक अन्य साथी के साथ एके-47 राइफलों सहित सरेंडर किया था.”
सरेंडर न करता तो उसके 20 दिन बाकी थे...पूर्व SSP
मोहम्मद कालू को अपने सामने सरेंडर कराने वाले जम्मू कश्मीर के पूर्व डीआईजी जीएल शर्मा बताते हैं, “दरअसल हमारे पास मोहम्मद कालू का रिकॉर्ड पहले से था. जिसमें उसने 4 साल तक हिजबुल मुजाहिदीन आतंकवादियों के साथ रहने के बाद भी किसी बड़ी आपराधिक वारदात को अंजाम नहीं दिया था.”
हिजबुल मुजाहिदीन से तौबा....
उधर दूसरी ओर हिजबुल मुजाहिदीन के पूर्व आतंकवादी मोहम्मत कालू जिंदगी के अपने उन सबसे बुरे दिनों की याद करते हुए बताते हैं कि, “मैं कानून की प्रताड़ना से इसलिए बच गया क्योंकि मैंने कभी किसी का कहीं भी कत्ल-ए-आम नहीं किया. इसीलिए मैं जम्मू कश्मीर पुलिस में उस समय वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रहे जी एल शर्मा सर के सामने जाकर पेश होने में भी नहीं घबड़ाया. हां, उन हिजबुल आतंकवादियों के अड्डे से भागकर दुबारा पुलिस के पास सरेंडर करने के बाद मैंने आतंकवाद-आतंकवादियों से तौबा कर ली. अब तो हिजबुल मुजाहिदीन आतंकवादी संगठन चलाने वाले मेरे नाम से भी खार खाते हैं. मैं जानता हूं वह सब अब भी मेरी तलाश में होंगे. मगर अब मेरा उन सबसे दूर-दूर तक का कोई वास्ता नही हैं.”