क्या कोई सॉफ्टवेयर चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट से मतदाताओं के नाम हटा सकता है? जानें असलियत क्या है
कई बार सोशल मीडिया या कमर्शियल टूल्स कहते हैं कि हम आपका नाम वोटर-लिस्ट से हटा देंगे, पर असलियत यह है कि निर्वाचन सूची से किसी का नाम सीधा कोई थर्ड पार्टी सॉफ्टवेयर नहीं हटा सकता. यह काम तय नियमों के तहत होते हैं. चुनाव आयोग का दावा है कि वोटों को ऑनलाइन नहीं हटाया जा सकता. इस मामले में राहुल गांधी तर्क गलत है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर अपना हमला तेज कर दिया कि और उस पर 'वोट चोर' कहे जाने वाले लोगों को बचाने का आरोप लगाया है. गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने दावा किया कि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान एक केंद्रीकृत, सॉफ्टवेयर-आधारित अभियान के जरिए हजारों कांग्रेस समर्थकों के नाम हटाने का लक्ष्य बनाया गया था.
उन्होंने कहा कि अलांद निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 6 हजार नाम एक ऐसे प्रोग्राम द्वारा चुने गए थे जो स्वचालित रूप से 'हर बूथ के पहले मतदाता' का इस्तेमाल करके नाम हटाने के इच्छुक आवेदक का रूप धारण कर लेता था. उन्होंने मंच पर एक मतदाता, जिसका नाम हटाने का प्रयास किया गया था और एक पड़ोसी, जिसके विवरण का दुरुपयोग किया गया था, दोनों को परेड कराई, दोनों ने कोई भी अनुरोध दायर करने से इनकार किया.
मोबाइल फोन और ओटीपी डाटा जारी करे EC
राहुल गांधी ने तर्क दिया कि यही प्रणाली कई राज्यों में इस्तेमाल की जा रही है. महाराष्ट्र के राजुरा निर्वाचन क्षेत्र को लेकर उन्होंने आरोप लगाया कि 6,815 नाम धोखाधड़ी से जोड़े गए थे, जिससे पता चलता है कि सॉफ्टवेयर हटाने और जोड़ने, दोनों में सक्षम था. उन्होंने कहा कि यह तरीका केवल कर्नाटक और महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक भी लागू है. उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग एक हफ्ते के भीतर इन एप्लीकेशन में इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन और ओटीपी का डाटा जारी करें.
चुनाव आयोग का जवाब - राहुल ने गलत समझा
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. उसने कहा कि वोटों को ऑनलाइन नहीं हटाया जा सकता. इस प्रक्रिया को राहुल गांधी ने गलत समझा है. पोर्टल और ऐप्स केवल आवेदन दाखिल करने की अनुमति देते हैं, जिनकी फिर जांच की जाती है. उसने जोर देकर कहा कि नोटिस जारी किए बिना और मतदाता को सुनवाई का अवसर दिए बिना कोई भी नाम नहीं हटाया जा सकता.
अलंद मामले में आयोग ने साफ किया कि 2023 में विसंगतियों को स्वयं चुनाव आयोग ने ही चिह्नित किया था और प्राथमिकी दर्ज की थी. उसने बताया कि वास्तव में कांग्रेस ने 2023 में अलंद सीट जीती थी, जिसके व्यवस्थित रूप से निशाना बनाए जाने के दावों को कमजोर कर दिया गया. चुनाव आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि मतदाता सूची से नाम हटाना कानून द्वारा नियंत्रित होता है, तकनीक द्वारा नहीं.
1. नाम हटाने की प्रक्रिया क्या है?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम 1960, मतदाता सूची से नाम हटाने की रूपरेखा निर्धारित करते हैं. यह प्रक्रिया दुरुपयोग को रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है कि बिना सूचना दिए या चुनौती देने का मौका दिए बिना कोई भी अपना वोट न खो दे.
2. यह काम फॉर्म 7 भरने से शुरू होता है
अगर कोई मतदाता का नाम हटाना चाहता है या मतदाता सूची में किसी नाम पर आपत्ति करता है, तो उसे निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ERO) को फॉर्म 7 जमा करना होगा. अगर मतदाता किसी दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में स्थानांतरित हो गए हैं, तो वे स्वयं भी इस फॉर्म का उपयोग कर सकते हैं. इसमें निर्वाचन क्षेत्र का नाम, मतदाता को EPIC नंबर, नाम हटाने का कारण और आवेदक का अपना विवरण और हस्ताक्षर जैसी प्रमुख जानकारी देनी होती है. जमा करने के बाद स्थानीय बूथ स्तरीय अधिकारी (BLO) एक पावती जारी करता है.
3. नाम हटाने के वैध आधार सीमित
कानून केवल कुछ ही कारणों का उल्लेख करता है. जिन आधार का जिक्र है उनमें मतदाता स्थायी रूप से किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया है, पंजीकृत पते पर नहीं पाया जाता है, दो बार दर्ज किया गया है, उसकी मृत्यु हो गई है, या वह भारतीय नागरिक नहीं है. मनमाने या राजनीतिक आधार पर नाम हटाने की मांग नहीं की जा सकती. इसके बाद ईआरओ अनुरोध की जांच करता है. प्रत्येक आवेदन को आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है. यदि कोई फॉर्म अधूरा या दोषपूर्ण है तो उसे प्रारंभिक चरण में ही अस्वीकार किया जा सकता है.
4. मतदाता को सूचना देनी होगी
यदि नाम हटाने का प्रस्ताव है, तो ईआरओ को मतदाता को एक सूचना देनी होगी, जिसमें सुनवाई की तिथि, समय और स्थान का उल्लेख हो. यह सूचना व्यक्तिगत रूप से पंजीकृत डाक द्वारा या व्यक्ति के निवास पर चिपका कर दी जा सकती है.
5. सत्यापन जमीनी स्तर पर
एक बीएलओ संबंधित पते पर जाकर जांच करता है कि क्या मतदाता अभी भी वहां रह रहा है, उसकी मृत्यु हो गई है या सूची डुप्लिकेट है. इसकी रिपोर्ट ईआरओ को वापस भेजी जाती है.
6. मामला सुनवाई के लिए जाता है
जिस आवेदक ने नाम हटाने की मांग की है और जिस मतदाता का नाम संदिग्ध है, दोनों को सुनवाई का अधिकार है. ईआरओ दस्तावेज मांग सकता है, व्यक्तिगत उपस्थिति की मांग कर सकता है और निर्णय लेने से पहले शपथ-पत्र पर बयान भी दर्ज कर सकता है.
7. ईआरओ आदेश पारित करता है
साक्ष्यों पर विचार करने के बाद, ईआरओ या तो आवेदन को अस्वीकार कर देता है या नाम हटाने को मंजूरी देता है. यदि मंजूरी मिल जाती है तो नाम हटा दिया जाता है.
8. अपील करने का भी अधिकार है
जो मतदाता मानता है कि उसका नाम गलती से हटा दिया गया है, वह ईआरओ के आदेश को चुनौती दे सकता है. वे निवास और पहचान के प्रमाण के साथ फॉर्म 6 भरकर नाम शामिल करने के लिए नए सिरे से आवेदन भी कर सकते हैं. फॉर्म 7 आवेदन में की गई झूठी घोषणाएं जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 31 के तहत दंडनीय हैं.
क्या कोई पड़ोसी आपका वोट हटा सकता है?
कानूनी तौर पर उसी निर्वाचन क्षेत्र का कोई भी मतदाता किसी अन्य मतदाता के नाम पर आपत्ति जताते हुए फॉर्म 7 दाखिल कर सकता है, लेकिन इससे वोट स्वतः नहीं हटता. निर्वाचन अधिकारी (ईआरओ) द्वारा कोई भी आदेश पारित करने से पहले नोटिस जारी करना, सत्यापन करना और सुनवाई करना आवश्यक है. इन चरणों के बिना, नाम हटाना गैरकानूनी है. झूठा आवेदन दाखिल करना एक दंडनीय अपराध है.
क्या कोई सॉफ्टवेयर या ऑटोमेशन वोटों को हटा सकता है?
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि फर्जी मोबाइल नंबर और ओटीपी का उपयोग करके एक स्वचालित प्रणाली के माध्यम से हजारों आवेदन दाखिल किए गए थे. नियमों के तहत ऑनलाइन पोर्टल केवल आवेदन स्वीकार करते हैं. वे स्वयं नाम नहीं हटा सकते. हर मामले में सत्यापन और सुनवाई की आवश्यकता होती है.संदिग्ध सामूहिक हेरफेर के मामलों में भी, ईआरओ को उचित प्रक्रिया का पालन करना होता है. यदि गलत तरीके से ऐसा किया गया तो यह धोखाधड़ी और आपराधिक षडयंत्र के समान माना जाता है. यह स्वयं कानूनी सुरक्षा उपायों को दरकिनार नहीं करेगा. सॉफ्टवेयर सिस्टम में आवेदनों की बाढ़ ला सकता है. यह स्वयं मतदाता सूची से नाम नहीं मिटा सकता.
नाम हटाना सिर्फ क्लिक प्रक्रिया तक सीमित नहीं
भारत में किसी मतदाता का नाम हटाना एक क्लिक की प्रक्रिया नहीं है. चाहे पड़ोसी द्वारा शुरू किया गया हो या ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से, कानून के अनुसार किसी भी नाम को हटाने से पहले जांच, नोटिस, फ़ील्ड सत्यापन और सुनवाई आवश्यक है. इस मामले में राहुल गांधी आरोप गलत है. धोखाधड़ी वाले आवेदन दायर किए जा सकते हैं, लेकिन ये अकेले किसी मतदाता को मतदाता सूची से नहीं हटा सकते. उचित प्रक्रिया को दरकिनार करने का कोई भी प्रयास गैरकानूनी और दंडनीय है.