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17 साल से देश की सेवा, BSF जवान पूर्णम कुमार शॉ की नौकरी रहेगी या चली जाएगी? जानें हर एक डिटेल

पश्चिम बंगाल के हुगली निवासी 40 वर्षीय पूर्णम कुमार शॉ पिछले 17 वर्षों से बीएसएफ में सेवा दे रहे हैं. 10 अप्रैल से पंजाब सीमा पर तैनात थे, जहां गलती से पाकिस्तान की सीमा में चले गए थे. 20 दिन की हिरासत के बाद उनकी सुरक्षित वापसी हुई. परिवार और देशभर में उनके लौटने पर खुशी की लहर है.

17 साल से देश की सेवा, BSF जवान पूर्णम कुमार शॉ की नौकरी रहेगी या चली जाएगी? जानें हर एक डिटेल
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नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Updated on: 15 May 2025 11:19 AM IST

कूटनीतिक धैर्य और सैन्य सम्मान की एक मिसाल के तौर पर, भारत ने अपने जवान को पाकिस्तान की गिरफ्त से सकुशल वापस लाने में सफलता हासिल की है. पश्चिम बंगाल के रहने वाले बीएसएफ कांस्टेबल पूर्णम कुमार शॉ को पाकिस्तान ने 20 दिन बाद वाघा बॉर्डर पर भारतीय अधिकारियों को सौंपा. इस वापसी ने न सिर्फ उनके परिवार को राहत दी बल्कि भारत की रणनीतिक सूझबूझ और गरिमा को भी रेखांकित किया.

23 अप्रैल 2025 को पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में ड्यूटी के दौरान गलती से सीमा पार कर जाने वाले जवान को पाकिस्तानी रेंजर्स ने हिरासत में ले लिया था. सामान्यतः ऐसी घटनाएं फ्लैग मीटिंग के जरिए सुलझ जाती हैं, लेकिन इस बार मामला अटका रहा. कारण था पिछले ही दिन पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत-पाक के बीच तनाव की लकीरें और गहरी कर दी थीं.

पूर्णम की तबीयत थी खराब

बीएसएफ सूत्रों के अनुसार, कांस्टेबल पूर्णम की तबीयत खराब होने के चलते वह अनजाने में जीरो लाइन पार कर पाकिस्तान की तरफ चले गए थे. वहां एक पेड़ की छांव में बैठते ही उन्हें पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने हिरासत में ले लिया. इस गलती के बावजूद पाकिस्तान का व्यवहार आक्रामक रहा और जवान की वापसी में देरी की गई.

फ्लैग मीटिंग्स पर पाकिस्तानी रेंजर्स को नहीं था इंट्रेस्ट

बीएसएफ ने मामले को शुरू से शांतिपूर्वक सुलझाने की कोशिश की. स्थानीय स्तर पर कई बार फ्लैग मीटिंग्स का अनुरोध भेजा गया, लेकिन पाकिस्तानी रेंजर्स ने मौन साध लिया. इसके बाद भारत सरकार ने उच्चस्तरीय कूटनीतिक प्रयास शुरू किए. MEA के माध्यम से इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों की दृष्टि से उठाया गया.

किस आधार पर छोड़ा?

पाकिस्तान की हठधर्मिता को देखते हुए भारत ने राजनयिक दबाव तेज किया. न्यूयॉर्क, जिनेवा और इस्लामाबाद में भारतीय मिशनों ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह दर्शाया कि कैसे एक बीमार जवान को मानवीय आधार पर भी रिहा नहीं किया जा रहा. अंततः पाकिस्तान को झुकना पड़ा और जवान को सौंपने की सहमति देनी पड़ी.

पत्नी ने क्या कहा?

जवान की वापसी पर उनका परिवार अटारी बॉर्डर पर मौजूद था. उनकी पत्नी रजनी, जो गर्भवती हैं, ने कहा कि इन 20 दिनों ने पूरे परिवार को गहरे तनाव में डाल दिया था. उनका सात वर्षीय बेटा हर रोज यही पूछता था 'पापा कब आएंगे?' लेकिन अब उनके चेहरों पर राहत और गर्व दोनों झलक रहा है. पत्नी ने कहा कि पति की वापसी के बाद उनका विश्वास भारतीय सेना और केंद्र सरकार पर बढ़ गया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पूर्णम की वापसी पर खुशी जताई और उनके परिवार को बधाई दी. उन्होंने बताया कि उन्होंने जवान के परिजनों से तीन बार फोन पर बात की और उन्हें स्थिति की जानकारी दी.

कौन हैं पूर्णम कुमार शॉ?

पूर्णम कुमार शॉ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के निवासी हैं और 40 वर्ष के हैं. वे पिछले 17 वर्षों से सीमा सुरक्षा बल (BSF) में सेवा दे रहे हैं. उनके पिता एक सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी हैं. 10 अप्रैल 2025 से पूर्णम पंजाब सीमा पर तैनात एक एड-हॉक यूनिट के हिस्से के रूप में ऑपरेशनल ड्यूटी निभा रहे थे. 23 अप्रैल 2025 को फिरोजपुर सेक्टर में ड्यूटी के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई, जिसके चलते वे अनजाने में पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गए. पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया.

अभिनंदन की आई याद

पूर्णम की वापसी विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की याद दिलाती है, जिन्हें 2019 में बालाकोट स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने हिरासत में लिया था. जैसे अभिनंदन की वापसी ने भारत को कूटनीतिक जीत दिलाई थी, वैसे ही पूर्णम की वापसी ने एक बार फिर भारत की मानवतावादी नीति और सैन्य प्रतिष्ठा को बल दिया है.

बीएसएफ का क्या है कहना?

अब लोगों के मन में सवाल है कि आखिर पाकिस्तान से आने के बाद इनकी नौकरी रहेगी या चली जाएगी. इन सवालों के जवाब BSF ने दे दिया है. बीएसएफ की प्रक्रिया के अनुसार, ऐसे मामलों में जवान को तुरंत ऑपरेशनल ड्यूटी पर नहीं लगाया जाता. उन्हें मेडिकल जांच और मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग के बाद ही दोबारा सेवा में लगाया जाता है. इसका उद्देश्य जवान के मानसिक संतुलन और भावनात्मक स्थायित्व को सुनिश्चित करना होता है. पाकिस्तान ने इस घटना को भी एक राजनीतिक टूल की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन भारत ने प्रतिक्रिया की बजाय संयम, गरिमा और रणनीति से जवाब दिया.

'नो मैन लेफ्ट बिहाइंड'

यह घटना दोनों देशों के बीच विवादों की एक और कड़ी थी, लेकिन भारत ने इसे मानवीय आधार पर हल करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को और सशक्त किया. पूर्णम की वापसी इस बात का प्रतीक है कि भारतीय सैनिक सिर्फ बंदूक के दम पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मबल, कूटनीतिक चतुराई और संगठित सैन्य मर्यादा के सहारे भी युद्ध के मैदान से अपनों को वापस लाने का माद्दा रखते हैं. यह घटना भारत के "नो मैन लेफ्ट बिहाइंड" सिद्धांत की जीवंत मिसाल बन चुकी है.

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