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Allopathic vs Homeopathy: महाराष्ट्र में हड़ताल पर क्यों गए लाखों डॉक्टर? ठप हुई स्वास्थ्य सेवाएं

महाराष्ट्र में 1.80 लाख एलोपैथिक डॉक्टरों ने 24 घंटे की हड़ताल कर दी है. OPD और नियमित स्वास्थ्य सेवाएं बंद हैं. विवाद की जड़ है सरकार का फैसला, जिसमें होम्योपैथी डॉक्टरों को फार्माकोलॉजी कोर्स के बाद एलोपैथिक दवाएं लिखने की अनुमति दी गई है. डॉक्टरों ने इसे मरीजों की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है. जानिए पूरा विवाद और इसकी पृष्ठभूमि.

Allopathic vs Homeopathy: महाराष्ट्र में हड़ताल पर क्यों गए लाखों डॉक्टर? ठप हुई स्वास्थ्य सेवाएं
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( Image Source:  sora ai )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 20 Sept 2025 1:48 PM

महाराष्ट्र में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं क्योंकि करीब 1.80 लाख एलोपैथिक डॉक्टर 24 घंटे की हड़ताल पर चले गए हैं. इस दौरान आपातकालीन सेवाएं और आईसीयू को छोड़कर ओपीडी, ऑपरेशन थिएटर और नियमित इलाज ठप पड़ा है. यह कदम केवल स्वास्थ्य संकट ही नहीं, बल्कि चिकित्सा व्यवस्था के भविष्य को लेकर गहराई से उठे विवाद को भी सामने लाता है.

हड़ताल की सबसे बड़ी वजह है राज्य सरकार का वह निर्णय, जिसमें होम्योपैथिक डॉक्टरों को आधुनिक फार्माकोलॉजी का कोर्स करने के बाद एलोपैथिक प्रैक्टिस की अनुमति दी गई है. यानी, होम्योपैथ्स अब सीमित स्तर पर एलोपैथिक दवाएं लिख सकेंगे. डॉक्टरों का कहना है कि इससे इलाज की गुणवत्ता पर गंभीर खतरा मंडराएगा.

एलोपैथिक डॉक्टर क्यों नाराज़?

भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) महाराष्ट्र के अध्यक्ष डॉ. संतोष कदम का कहना है कि यह फैसला मरीजों की सुरक्षा से खिलवाड़ है. उनका आरोप है कि सरकार ‘क्वैक प्रैक्टिस’ को बढ़ावा दे रही है. उनका मानना है कि होम्योपैथी डॉक्टरों को एलोपैथिक इलाज की अनुमति देना पूरे चिकित्सा तंत्र को कमजोर करेगा और मरीजों की जिंदगी दांव पर लग सकती है.

सरकार के फैसले पर गुस्सा

डॉक्टरों ने साफ कहा है कि अगर सरकार पीछे नहीं हटी तो यह आंदोलन केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देशव्यापी हड़ताल होगी. अखिल भारतीय चिकित्सा संघों के महासंघ के अध्यक्ष डॉ. अक्षय डोंगरदिवे ने चेतावनी दी है कि इससे मरीजों के गलत इलाज, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस और यहां तक कि मौतों का खतरा बढ़ जाएगा.

मरीजों की नजर से हड़ताल

इस हड़ताल का सबसे ज्यादा असर उन मरीजों पर पड़ रहा है जो नियमित उपचार या ऑपरेशन के लिए अस्पतालों में आ रहे थे. ग्रामीण इलाकों में पहले से ही डॉक्टरों की भारी कमी है, ऐसे में यह हड़ताल उनकी मुश्किलें और बढ़ा रही है. लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर इलाज के नाम पर राजनीति क्यों हो रही है.

कब क्या हुआ?

यह मुद्दा नया नहीं है. 2014 में ही महाराष्ट्र सरकार ने कानून में संशोधन कर होम्योपैथी डॉक्टरों को एलोपैथी प्रैक्टिस की अनुमति दी थी, लेकिन विरोध के बाद इसे वापस लेना पड़ा. 2016 में महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (MUHS) ने CCMP नाम से एक साल का कोर्स शुरू किया. इसी को आधार बनाकर जुलाई और फिर 5 सितंबर 2025 को सरकार ने नया आदेश जारी कर दिया.

क्या है डॉक्टरों की मुख्य मांग?

डॉक्टरों की साफ मांग है कि सरकार इस आदेश को तुरंत रद्द करे. उनका कहना है कि अगर किसी को एलोपैथी करनी है तो उसे पूरी MBBS और MD की पढ़ाई करनी चाहिए. छोटा-सा कोर्स करके मरीजों की जान खतरे में डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

अब आगे क्या होगा?

अब निगाहें सरकार और डॉक्टरों के बीच बातचीत पर टिकी हैं. अगर सरकार पीछे नहीं हटी तो देशव्यापी चिकित्सा संकट खड़ा हो सकता है. यह विवाद सिर्फ महाराष्ट्र का नहीं, बल्कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था के भविष्य का सवाल बन चुका है.

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