डल झील सूनी, शिकारे गायब... आतंक के बीच डूब गई कश्मीर की उम्मीदें; CM उमर ने बताया अब क्या-क्या होगी चुनौतियां
सीजफायर के बाद भी कश्मीर में डर कायम है. डल झील में शिकारा नहीं, पर्यटक नहीं, सिर्फ सन्नाटा है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, हालात काबू में हैं पर जमीनी हकीकत डरावनी है. अमरनाथ यात्रा की तैयारी, सीमाओं पर ड्रोन गतिविधियां और टूटी अर्थव्यवस्था सब मिलकर बताते हैं कि कश्मीर को अभी लंबा संघर्ष झेलना बाकी है.

डल झील सूनी है, शिकारे गायब हैं, और कश्मीर के आसमान में सन्नाटा पसरा है. सीजफायर के बाद भले ही नियंत्रण रेखा (LoC) पर गोलीबारी रुकी हो, लेकिन जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की नजर में असली चुनौती अब शुरू हुई है. उन्होंने कहा कि 36 घंटे से शांति है, लेकिन जब उन्होंने डल झील के ऊपर से उड़ान भरते हुए नीचे झांका और एक भी शिकारा नहीं देखा, तो दिल टूट गया.
पर्यटन की मौत ने उम्मीदों को निगल लिया है. उमर ने NDTV से बातचीत में साफ कहा कि इस बार का पर्यटन सीजन खत्म हो गया. वो डल, गुलमर्ग, पहलगाम और सोनमर्ग सभी की वीरानी का जिक्र करते हैं. जहां पहले शिकारों की भीड़ हुआ करती थी, आज वहां पानी में सन्नाटा है. उन्होंने कहा कि इस हालात में देशवासियों से पर्यटन को लेकर कोई अपील करना जल्दबाजी होगी.
अमरनाथ यात्रा की तैयारी
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अब सरकार की प्राथमिकता अमरनाथ यात्रा को शांतिपूर्वक और सुरक्षित रूप से सम्पन्न कराना है. यह यात्रा केवल धार्मिक महत्व की नहीं, बल्कि राज्य की सामाजिक स्थिरता और सुरक्षा व्यवस्था की परीक्षा भी है. पाकिस्तानी सीमा से हालिया गोलाबारी और आतंकवादी गतिविधियों के बाद सुरक्षा बल हाई अलर्ट पर हैं. उमर ने यह भी बताया कि कल उन्होंने ड्रोन गतिविधियों को सीमा पर देखा, जो खतरे की गहराई को रेखांकित करता है.
सीमा क्षेत्रों के ज़ख्म हैं गहरे
जहां बम गिरे, वहां सामान्य हालात बहाल करने में लंबा वक्त लगेगा. उमर अब्दुल्ला ने पुंछ, राजौरी और तंगधार जैसे इलाकों का दौरा कर देखा कि कैसे मकान, दुकानें और स्कूल तबाह हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि इन इलाकों में लोग अभी भी अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं. सरकार की कोशिश है कि पहले घायलों का उपचार हो, फिर नुकसान का सर्वेक्षण कर मुआवजा जल्द से जल्द वितरित किया जाए.
स्कूल खोलना मनोबल की कोशिश
सीमा से दूर के क्षेत्रों में स्कूल दोबारा खोले गए हैं ताकि सामान्य माहौल का आभास हो. मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई को रोकना आतंक का परोक्ष समर्थन है, इसलिए जब तक सुरक्षा बल इजाजत देंगे, सीमावर्ती गांवों में भी शिक्षा फिर से शुरू कराई जाएगी. यह कश्मीरी समाज को यह विश्वास दिलाने का प्रयास है कि संघर्षों के बावजूद जीवन को आगे बढ़ना होगा.
पर्यटन उद्योग की टूटती कमर
डल झील से लेकर गुलमर्ग, पहलगाम और सोनमर्ग तक, कश्मीर का हर पर्यटन स्थल खाली पड़ा है. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस बार का टूरिज़्म सीज़न पूरी तरह से खत्म हो चुका है. पहले जहां शिकारे आपस में भिड़ जाते थे, वहां आज पानी में सन्नाटा है. उन्होंने देशवासियों से फिलहाल कोई पर्यटन अपील न करने का फैसला भी लिया क्योंकि हालात अनिश्चित हैं और पहले ही अतिशय आशावाद ने घाटी को नुकसान पहुंचाया.
पहलगाम हमले पर जन प्रतिक्रिया
पहलगाम आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर की जनता सड़कों पर उतरी और पहली बार विधानसभा ने विशेष सत्र में एक सुर में विरोध दर्ज किया. यह कश्मीरी समाज में उभरती राजनीतिक चेतना का संकेत है. लेकिन उमर अब्दुल्ला ने अफसोस जताया कि पाकिस्तानी शेलिंग में मारे गए स्थानीय नागरिकों की शहादत को न तो मीडिया और न ही बाकी देश ने उतनी गंभीरता से लिया जितनी अपेक्षित थी.
शहादत और मुआवज़े की संवेदनशीलता
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके लिए कोई भी मुआवज़ा पर्याप्त नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि "दुनिया में इतना पैसा नहीं है जो एक शहीद परिवार के दर्द को दूर कर सके." इस संघर्ष की सबसे बड़ी कीमत उन घरों ने चुकाई है जिनके दरवाज़े अब कभी नहीं खुलेंगे.
हम अमन पसंद लोग हैं
मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि कश्मीरी समाज का चरित्र हिंसा या संघर्ष से नहीं, शांति से परिभाषित होता है. उन्होंने कहा, "हम वो लोग नहीं हैं जो खून खराबा पसंद करते हैं. हम वो लोग नहीं हैं जो जंग की आग में अपनी पहचान जलाएं. हम हमेशा अमन के हामी रहे हैं, लेकिन बार-बार हम ही जलाए जाते हैं."