कानूनी पचड़े में फंसी Yami Gautam और Emraan Hashmi की फिल्म Haq, रिलीज पर रोक की मांग
यामी गौतम और इमरान हाशमी ऐतिहासिक शाह बानो बेगम मामले से प्रेरित अपनी आगामी कोर्टरूम ड्रामा फिल्म 'हक़' की रिलीज़ की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि यह फिल्म कानूनी पचड़े में पड़ गई है क्योंकि शाह बानो बेगम के कानूनी उत्तराधिकारियों, जिनका प्रतिनिधित्व एडवोकेट तौसीफ वारसी कर रहे हैं, ने इंदौर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर यामी गौतम धर और इमरान हाशमी स्टारर अपकमिंग फिल्म 'हक़' की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की है.
यामी गौतम और इमरान हाशमी स्टारर फिल्म 'हक़' की रिलीज़ से पहले ही विवादों ने जोर पकड़ लिया है. यह फिल्म चर्चित शाह बनो बेगम मामले से इंस्पायर्ड बताई जा रही है, जिसने साल 1985 में पूरे भारत में कानूनी और धार्मिक बहस को जन्म दिया था. हाल ही में शाह बानो बेगम के कानूनी उत्तराधिकारियों की ओर से इंदौर हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है.
परिवार के प्रतिनिधि एडवोकेट तौसीफ वारसी ने अदालत से फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की है. उनका कहना है कि फिल्म में शरिया कानून को गलत ढंग से दिखाया गया है और यह मुस्लिम समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है. याचिका में यह भी कहा गया है कि फिल्म निर्माताओं ने शाह बानो के परिवार से इस कहानी का इस्तेमाल करने के लिए किसी प्रकार की कानूनी अनुमति नहीं ली. इस मामले पर कोर्ट जल्द सुनवाई करेगा.
शाह बानो का ऐतिहासिक मामला
फिल्म की कहानी की प्रेरणा भारत के इतिहास के एक अहम मुकदमे मोहम्मद अहमद खान वर्सेज शाह बनो बेगम, 1985 से ली गई है. यह वही फैसला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला को तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने के अधिकार को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. उस वक्त यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली और धार्मिक कानूनों के बीच एक तगड़ा टकराव बना था. पत्रकार जिग्ना वोरा की किताब 'बनो : भारत की बेटी' से रूपांतरित इस फिल्म में समाज की पितृसत्तात्मक सोच, धार्मिक मान्यताओं और महिलाओं के अधिकारों को लेकर गहरी चर्चा की गई है.
फिल्म की कहानी और किरदार
निर्देशक सुपर्ण वर्मा ने 'हक़' को एक स्ट्रांग 'कोर्टरूम ड्रामा' बताया है जो धर्म और न्याय के बीच खींची गई रेखा को चुनौती देती है. फिल्म में यामी गौतम शाज़िया बनो का किरदार निभा रही हैं. एक ऐसी महिला जो समाज और कानून दोनों से अकेले लड़ती है ताकि उसे उसका हक मिल सके. शाज़िया का किरदार एक मजबूत, एडुकेटेड और संवेदनशील महिला का प्रतीक है जो अपने अधिकारों के लिए सब कुछ दांव पर लगा देती है. इमरान हाशमी फिल्म में उनके पति और वकील अब्बास खान का किरदार निभा रहे हैं. यह किरदार दिलचस्प इसीलिए है क्योंकि अदालत के भीतर वही उनके विपक्ष में खड़ा होता है. दोनों के बीच कानूनी बहस के साथ-साथ व्यक्तिगत और भावनात्मक टकराव भी चलता रहता है. यह संघर्ष सिर्फ कानून नहीं बल्कि प्रेम, सम्मान और अस्तित्व के बीच की लड़ाई को उजागर करता है.
कलाकारों की मजबूत मौजूदगी
फिल्म में यामी गौतम और इमरान हाशमी के अलावा शीबा चड्ढा, दानिश हुसैन, असीम हट्टंगडी और नई एक्ट्रेस वर्तिका सिंह जैसे कलाकार भी अहम भूमिकाओं में नजर आएंगे. हर किरदार इस कहानी में समाज और विश्वास की किसी न किसी परत को उजागर करता है. फिल्म को भावनाओं, संघर्ष और विचारों के बीच एक तीव्र बहस के रूप में पेश किया गया है. दर्शकों के लिए यह सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि सोचने पर मजबूर करने वाला अनुभव होगा.





